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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में भारतीय न्यायाधीश दलवीर भंडारी के पुनर्निर्वाचन के मायने

  • 22 Nov 2017
  • 7 min read

संदर्भ

भारत के दलवीर भंडारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने दूसरे कार्यकाल (2018-2027) के लिये चुने गए हैं। इसे एक ओर जहाँ भारत की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह विश्व में भारतीय न्यायपालिका की स्वच्छ छवि का परिचायक भी है।

घटनाक्रम

  • ब्रिटेन के प्रत्याशी जज क्रिस्टोफर ग्रीनवुड और भारत के प्रत्याशी जज दलवीर भंडारी ICJ में नौ वर्ष के कार्यकाल हेतु निर्वाचन के लिये आमने-सामने थे।
  • इस चुनाव के लिये न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में अलग से मतदान करवाया गया।
  • ऐसा माना जा रहा था कि ब्रिटेन के अलावा सुरक्षा परिषद् के अन्य स्थाई सदस्य अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ग्रीनवुड के पक्ष में हैं तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा का समर्थन दलवीर भंडारी को प्राप्त है।
  • मतदान के पहले 11 दौर में भंडारी को महासभा में करीब दो तिहाई मत मिले थे, जबकि ग्रीनवुड को सुरक्षा परिषद् में लगातार नौ वोट मिल रहे थे। 
  • जहाँ सुरक्षा परिषद् में बहुमत ब्रिटेन को, तो वहीं महासभा में बहुमत भारत को मिलता दिखाई दे रहा था।
  • इस गतिरोध को समाप्त करने के लिये सुरक्षा परिषद् और महासभा की संयुक्त बैठक ( joint conference) का प्रस्ताव दिया गया। 
  • संयुक्त बैठक के प्रस्ताव से पहले वीटो पावर वाले देश ब्रिटेन के समर्थन में दिख रहे थे, लेकिन उनका यह समर्थन भी ब्रिटेन को बढ़त नहीं दिला सकता था।
  • संयुक्त बैठक के प्रस्ताव के बाद वीटो पावर वाले कुछ देशों ने भी अपनी स्थिति बदली। इसका संकेत मिलते ही ब्रिटेन ने 12वें दौर के मतदान के पहले ही अपने प्रत्याशी का नामांकन वापस ले लिया।

इस प्रकार अंत में दलवीर भंडारी को सुरक्षा परिषद् के सभी 15 मत (5 स्थायी और 10 अस्थायी) तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 में से 183 मत प्राप्त हुए और इसके साथ ही 71 वर्षों बाद पहली बार ऐसा होगा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ब्रिटेन का कोई भी जज नहीं होगा।

भारत के लिये इस निर्वाचन के मायने

  • यह निर्वाचन भारत की कूटनीतिक क्षमता को दर्शाता है, जिसके ज़रिये भारत ने न केवल महासभा के सदस्यों का समर्थन प्राप्त किया, बल्कि सुरक्षा परिषद् में अपने विपरीत जा रहे मतों को भी अपनी ओर करने में सफलता अर्जित की।
  • भारत को महासभा और सुरक्षा परिषद में जिस प्रकार का ज़बरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ है, उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संवैधानिक मूल्यों पर आधारित भारतीय न्यायपालिका की छवि और निखर कर सामने आई है। 
  • लोकतांत्रिक तरीके से हुई भारत की इस जीत ने सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों चीन, अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दे दिया है कि भारत भविष्य में भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इन शक्तियों को चुनौती देने की क्षमता रखता है।
  • यह जीत सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को लेकर अन्य स्थायी सदस्यों पर न्यूनाधिक दबाव अवश्य बनाएगी।
  • पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव का मामला अभी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में लंबित है। इस लिहाज़ से भी दलवीर भंडारी का पुनर्निर्वाचन मायने रखता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है।
  • इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में इसने कार्य करना प्रारंभ किया था।
  • इसका मुख्यालय (पीस पैलेस) हेग (नीदरलैंड) में स्थित है। 
  • इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ वहन करता है।
  • इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेजी और फ्रेंच हैं।
  • ICJ में 15 जज होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा नौ वर्षों के लिये चुने जाते हैं। इसकी गणपूर्ति संख्या (कोरम) 9 है। 
  • ICJ में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के लिये प्रत्याशी को महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों में ही बहुमत प्राप्त करना होता है।
  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है।
  • एक ही देश से दो न्यायाधीश नहीं हो सकते हैं।
  • ICJ में पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश डा.नगेन्द्र सिंह थे।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है वे भी यहाँ न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं।
  • न्यायालय द्वारा सभापति तथा उप-सभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
  • मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।
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