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भारत बना फ्लैश फ्लड के पूर्वानुमान हेतु नोडल केंद्र

  • 28 Jul 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) ने भारत को फ्लैश फ्लड के पूर्वानुमान तैयार करने के लिये नोडल केंद्र के रूप में नामित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका अर्थ है कि भारत को एक अनुकूलित मॉडल विकसित करना होगा जो वियतनाम, श्रीलंका, म्याँमार और थाईलैंड में बाढ़ की अग्रिम चेतावनी जारी कर सके।
  • आईएमडी कम-से-कम छह घंटे पहले फ्लैश फ्लड की चेतावनी ज़ारी करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विकसित और डब्लूएमओ को प्रदत्त एक अनुकूलित मौसम मॉडल पर काम करेगा।
  • भारतीय मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, इसका परीक्षण संस्करण एक घंटा पूर्व बाढ़ की चेतावनी देने में सक्षम था।
  • सैटेलाइट मैपिंग और ग्राउंड-आधारित अवलोकन के संयोजन के उपयोग की इस प्रणाली को फ्लैश फ्लड गाइडेंस सिस्टम कहा जाता है। जिसका लक्ष्य छह घंटे पहले पूर्वानुमान प्रदान करना है।
  • भारत की तरह ही कई दक्षि-पूर्व एशियाई देश मानसून पर निर्भर हैं और इसकी अनियमितताओं से ग्रस्त हैं। प्रस्तावित मॉडल संभावित बाढ़ की चेतावनी के लिये बारिश की संभावना और मिट्टी की नमी के स्तर की गणना के माध्यम से पूर्वानुमान प्रस्तुत करेगा।
  • इस योजना से लाभान्वित होने वाले देशों की सूची में पाकिस्तान भी शामिल था, किंतु उसने इस योजना में भागीदारी से इनकार कर दिया।
  • जबकि विज्ञान के माध्यम से बाढ़ की चेतावनी प्रक्रिया को विकसित किया जा सकता है, फिर भी भारत द्वारा इस क्षेत्र में यह कार्य किया जाना शेष है कि किस प्रकार सटीकता से अन्य देशों को संभावित जलप्लावन की चेतावनी दी जाए।
  • वर्तमान में भारत के पास सुनामी के लिये एक चेतावनी प्रणाली है जो कई एशियाई देशों के लिये चेतावनी प्रणाली की क्षमता को दोगुना करता है।
  • केंद्रीय जल आयोग जो भारत के बांधों पर नज़र रखता है, के द्वारा जलाशयों में बढ़ते पानी के स्तर की चेतावनी दी गई है जो आमतौर पर आसन्न बाढ़ के लक्षण के रूप में माना जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि संगठन ने हाल ही में भारी बारिश के दौरान बढ़ते पानी के स्तर को देखने हेतु सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन विकसित करने के लिये गूगल  के साथ करार किया है।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, फ्लैश फ्लड दुनिया भर में 85% बाढ़  कीघटनाओं के लिये ज़िम्मेदार है, जिससे प्रत्येक वर्ष 5,000 लोगों की मौत होती है।
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