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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की आर्कटिक नीति

  • 19 Mar 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्कटिक परिषद, जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक क्षेत्र, भारत की आर्कटिक नीति।

मेन्स के लिये:

भारत की आर्कटिक नीति, भारत के लिये आर्कटिक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत की आर्कटिक नीति का अनावरण किया है, जिसका शीर्षक है 'भारत और आर्कटिक: सतत् विकास हेतु साझेदारी का निर्माण'।

  • भारत, आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखने वाले 13 देशों में से एक है।
  • आर्कटिक परिषद एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो आर्कटिक क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण एवं सतत् विकास से संबंधित मुद्दों पर आर्कटिक देशों के बीच अनुसंधान को बढ़ावा और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)

1. डेनमार्क
2. जापान
3. रूसी संघ
4. यूनाइटेड किंगडम
5. संयुक्त राज्य अमेरिका

उपर्युक्त में से कौन 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5 
(d) केवल 1, 3 और 5

उत्तर: (d)

पृष्ठभूमि

  • आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव तब शुरू हुआ, जब भारत ने वर्ष 1920 में पेरिस में नॉर्वे, अमेरिका, डेनमार्क, फ्राँस, इटली, जापान, नीदरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, ब्रिटिश विदेशी डोमिनियन तथा स्वीडन के बीच स्पिट्सबर्गेन को लेकर स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर किये।
    • ‘स्पिट्सबर्गेन’ आर्कटिक महासागर में स्वालबार्ड द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है, जो नॉर्वे का हिस्सा है।
    • स्पिट्सबर्गेन, स्वालबार्ड का एकमात्र स्थायी रूप से बसा हुआ हिस्सा है। यहाँ की 50% से अधिक भूमि वर्ष भर बर्फ से ढकी रहती है। ग्लेशियरों के साथ यहाँ पहाड़ और फ्योर्ड भी मौजूद हैं।
  • संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद से भारत आर्कटिक क्षेत्र के सभी घटनाक्रमों की बारीकी से निगरानी कर रहा है।
  • भारत ने वर्ष 2007 में इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया था।
    • इसके उद्देश्यों में आर्कटिक जलवायु और भारतीय मानसून के बीच टेलीकनेक्शन का अध्ययन करना, उपग्रह डेटा का उपयोग करके आर्कटिक में समुद्री बर्फ को चिह्नित करना, ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव का अनुमान लगाना शामिल था।
  • भारत आर्कटिक ग्लेशियरों की गतिशीलता और बड़े पैमाने पर समुद्र के स्तर में परिवर्तन को लेकर अनुसंधान पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

भारत की आर्कटिक नीति के प्रमुख प्रावधान:

  • छह केंद्रीय पिलर:
    • विज्ञान एवं अनुसंधान।
    • पर्यावरण संरक्षण।
    • आर्थिक एवं मानव विकास।
    • परिवहन एवं कनेक्टिविटी।
    • शासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
    • राष्ट्रीय क्षमता निर्माण।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान एवं अन्वेषण, जलवायु तथा पर्यावरण संरक्षण, समुद्री व आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षता को मज़बूती प्रदान करना है।
    • यह आर्कटिक में भारत के हित में अंतर-मंत्रालयी समन्वय के माध्यम से सरकार और शैक्षणिक, अनुसंधान तथा व्यावसायिक संस्थानों के अंतर्गत संस्थागत एवं मानव संसाधन क्षमताओं को मज़बूत करना चाहता है।
    • यह भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा को लेकर आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की समझ को बढ़ाने का प्रयास करता है।
    • इसका उद्देश्य वैश्विक शिपिंग मार्गों, ऊर्जा सुरक्षा और खनिज संपदा के दोहन से संबंधित भारत के आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक हितों पर आर्कटिक में बर्फ पिघलने के प्रभावों के बेहतर विश्लेषण, भविष्यवाणी और समन्वित नीति निर्माण को बढ़ावा देना है।
    • यह वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान के साथ विशेषज्ञता प्राप्त करते हुए विभिन्न आर्कटिक मंचों के तहत ध्रुवीय क्षेत्रों एवं हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करने व भारत तथा आर्कटिक क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को और अधिक मज़बूत करने का प्रयास करता है।
    • इस नीति में आर्कटिक परिषद में भारत की भागीदारी बढ़ाने तथा आर्कटिक में जटिल शासन संरचनाओं, प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व क्षेत्र की भू-राजनीति समझ में सुधार करने का भी प्रयास किया गया है।
  • भारत के लिये आर्कटिक की प्रासंगिकता:
    • आर्कटिक क्षेत्र यहाँ से होकर गुज़रने वाले नौवहन मार्गों के कारण महत्त्वपूर्ण है।
    • मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, आर्कटिक के प्रतिकूल प्रभाव न केवल खनिज और हाइड्रोकार्बन संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि वैश्विक नौवहन/शिपिंग मार्गों में भी परिवर्तन ला रहे हैं।
      • विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत एक स्थिर आर्कटिक सुनिश्चित करने में निर्माणकारी भूमिका निभा सकता है
    • भू-राजनीतिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2050 तक आर्कटिक के बर्फ मुक्त होने का अनुमान है और विश्व शक्तियाँ प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस क्षेत्र का दोहन करने के लिये आगे बढ़ रही हैं।

आर्कटिक के बारे में:

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के तहत भूमि पर मौसमी रूप से अलग-अलग बर्फ और हिम का आवरण होता है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को  शामिल किया जाता है।

Arctic-Regions

आगे की राह

  • भारत की आर्कटिक नीति समयानुकूल है और इस क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव की रूपरेखा पर भारत के नीति निर्माताओं को एक दिशा प्रदान करने की संभावना है।
  • यह इस क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव पर पूर्ण रूप से सरकारी दृष्टिकोण विकसित करने की दिशा में पहला कदम है।
  • इस नीति के माध्यम से भारत और आर्कटिक में कार्यक्रमों, संगोष्ठियों के आयोजन द्वारा दोनों क्षेत्रों (भारत और आर्कटिक में) में आर्कटिक के बारे में जागरूकता बढ़ाए जाने की भी संभावना है।
  • हालाँकि भारत को आधिकारिक तौर पर 'आर्कटिक राजदूत/प्रतिनिधि' भी नियुक्त करना चाहिये जो आर्कटिक मामलों पर भारत के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करने और इसके विचारों को प्रस्तुत करने का कार्य करेगा।
  • भारत की आर्कटिक नीति की योजना, निगरानी, संचालन, कार्यान्वयन और समीक्षा के लिये एक समर्पित विशेषज्ञ समिति का गठन करने से देश के दृष्टिकोण को बेहतर तरीके से व्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।

विगत वर्षों के प्रश्न

'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल कोऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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