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जीवित कोशिकाओं में विद्यमान विसंगतियों को दूर करने हेतु नैनो-मशीनों का निर्माण

  • 04 Oct 2017
  • 6 min read

संदर्भ

हाल ही में एक युवा जीव-विज्ञानी के नेतृत्व में कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने ऐसी नैनो-मशीनों का निर्माण किया है जो ‘जीवित कोशिकाओं’ (living cells) में विद्यमान विसंगतियों को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। विदित हो कि इस प्रकार की विसंगतियों से ही प्रायः रोग होते हैं। अतः ये मशीनें निकट भविष्य में अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगी। 

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, ये नैनो-मशीनें एंटीबॉडी के टुकड़ों से बनाई गई हैं तथा ये जीवित कोशिका के अंदर होने वाली सांकेतिक घटनाओं (signalling events ) का पता लगाती हैं।
  • इन्हें इस तरीके से डिज़ाइन किया जाता है कि ये सांकेतिक प्रक्रिया के एक भाग का तो नियमन करती हैं जबकि दूसरे को स्पर्श किये बिना ही छोड़ देती हैं। 
  • वस्तुतः इस तकनीक में कुछ ऐसे रोगों जैसे-टाइप 1 मधुमेह और रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (retinitis pigmentosa) का उपचार करने की क्षमता हो सकती है, जिनका उपचार अन्य तकनीकों के माध्यम से नहीं किया जा सकता। विदित हो कि ये ऐसे आनुवंशिक विकार हैं जिनके परिणामस्वरूप दृष्टिबाधित हो जाती है।
  • वैज्ञानिकों ने दर्शाया कि विशेष रूप से तैयार किये गए एंटीबॉडी के ये टुकड़े कोशिका के भीटर मौजूद उन प्रोटीनों के एक वर्ग के कार्यों का पता लगाने में सक्षम हैं, जिन्हें ‘बीटा-अरेस्टिन’((beta-arrestin) कहा जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि बीटा-अरेस्टिन इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे रेसिप्टर ( Receptor) के परिवार जिन्हें ‘जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर’ (G-Protein-Coupled Receptors (GPCR) कहा जाता है, के कार्यों का नियमन करते हैं। ये जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर प्रत्येक जीवित कोशिका (living cell) की सतह पर पाए जाते हैं।
  • आई.आई.टी. कानपूर के शोधकर्त्ताओं के अलावा लखनऊ स्थित केन्द्रीय दवा अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute) और अमेरिका तथा कनाडा के कुछ विश्वविद्यालयों से उनके सहयोगी भी इस टीम का हिस्सा थे।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, बीटा-अरेस्टिन जीपीसीआर के सामान्य कार्यों (मुख्यतःसामान्य कोशिकाओं में) में अवरोध उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • जीपीसीआर प्रोटीनों (GPCR proteins) से जुड़ा हुआ बीटा-अरेस्टिन जीपीसीआर प्रोटीनों को कोशिकाओं के अन्दर धकेलता है तथा प्रोटीनों के दूसरे वर्ग (जिन्हें क्लैथरिन कहा जाता है) के साथ सम्मिश्रण (complex) का निर्माण करता है। 
  • यह पाया गया कि एंटीबॉडी के टुकड़े बीटा-अरेस्टिन (beta-arrestin) प्रोटीनों को क्लैथरिन(clathrin) से जुड़ने से रोकते हैं और इस प्रकार यह रेसिप्टर (receptors) को कोशिका की सतह पर लम्बे समय तक बनाए रखने में सहायता करते हैं, जहाँ वे अपना सामान्य कार्य करना जारी रखते हैं। परन्तु यहाँ पर ये एंटीबॉडी के टुकड़े बीटा-अरेस्टिन-जीपीसीआर जटिल को क्लैथरिन के साथ जुड़ने नहीं देते अथवा उनके जुड़ाव में अवरोध उत्पन्न करते हैं। अतः यह रेसिप्टर को नष्ट करने का एक अल्पमार्ग है।

क्या हैं शारीरिक रेसिप्टर?

  • रेसिप्टर हमारे शरीर की प्रत्येक ‘शारीरिक प्रक्रिया’ का केंद्र बिंदु हैं। उदाहरण के लिए, हम वस्तुओं को दृश्य रूप में केवल तभी देखते हैं, जब प्रकाश के कण अथवा फोटोन रोडोपसिन (rhodopsin) नामक अणुओं पर पड़ते हैं। ध्यान देने योग्य है कि जीपीसीआर रेसिप्टर रेटिना में उपस्थित होते हैं। इसके अतिरिक्त जब नाक की कोशिकाओं के रेसिप्टर सक्रिय होते हैं तो हमें गंध का एहसास होता है, जबकि खतरे का आभास होता है तो हम उस स्थान को छोड़ देते हैं। इसका कारण यह है कि कोशिकाओं में उपस्थित विभिन्न प्रकार के जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर हार्मोन्स के रूप में रासायनिक संकेत प्राप्त करते हैं।
  • ध्यातव्य है कि ये रेसिप्टर हृदय की धड़कनों से लेकर रोग प्रतिरोधक क्षमता तक सभी का नियमन करते हैं। वैज्ञानिक पहले ही मानव शरीर में मौजूद तकरीबन 1,000 विभिन्न जीपीसीआर की पहचान कर चुके हैं।

निष्कर्ष

इस कार्य के पश्चात् शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसे मार्ग की तलाश करने की योजना बनाई है जिसके माध्यम से इन छोटे एंटीबॉडी के टुकड़ों को प्रयोगशाला में बनाई गई कोशिकाओं के अन्दर प्रवेश कराया जा सकेगा, ताकि वे वहाँ भी अपनी वास्तविक क्षमता का प्रदर्शन कर सकें।

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