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भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की सौर चक्र की भविष्यवाणी की विधि

  • 11 Dec 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, IISER कोलकाता के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने पिछले 100 वर्षों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके अगले सौर चक्र (लगभग 2020 से 2031 तक) की गतिविधि की तीव्रता की भविष्यवाणी की है।

प्रमुख बिंदु

  • खगोलविदों ने लगभग 400 वर्षों तक सूर्य की सतह पर सौर कलंक (Sunspots) का अध्ययन किया है। वर्ष 1755 में अवलोकन शुरू होने के बाद से हम वर्तमान में 24वें सौर कलंक चक्र में हैं।
  • ज्ञातव्य है कि सौर कलंक चक्रीय प्रतिरूप का पालन करते हैं, पहले इनकी संख्या में वृद्धि होती है और लगभग 11 वर्षों में ये गायब हो जाते हैं, इसे सौर कलंक चक्र या सौर्यिक गतिविधि चक्र के रूप में जाना जाता है।
  • अन्य गणनाओं के विपरीत शोधकर्त्ता पाते हैं कि अगले चक्र के दौरान सौर्यिक गतिविधि कम नहीं होगी, बल्कि यह वर्तमान चक्र के समान होगी, या शायद पहले से भी मज़बूत हो। वे उम्मीद करते हैं कि यह चक्र 2024 के आस-पास चरम पर होगा।
    शोधकर्त्ता चुंबकीय क्षेत्र विकास क्रम मॉडल और अवलोकन संबंधी आँकड़ों का उपयोग कर सूर्य के व्यवहार का अनुकरण करते हैं। वे सौर गतिविधि का अनुकरण करते हैं और एक चक्र से प्राप्त आँकड़े का उपयोग करते हुए लगभग दस वर्ष पूर्व के अगले चक्र में सूर्य के व्यवहार की भविष्यवाणी करते हैं।
  • वर्ष 1913 से लेकर अब तक दर्ज आँकड़ों के साथ अपने अनुकरण की तुलना करने पर उन्हें ज़्यादातर मामलों में महत्त्वपूर्ण समानता दिखती है। उसी विधि का उपयोग करते हुए शोधकर्त्ता भविष्य में लगभग दस वर्षों के अगले चक्र की सौर गतिविधि की भविष्यवाणी करते हैं।
  • इस शोधपत्र के लेखक दिव्येंदु नंदी के अनुसार, "हमारे काम से पता चला है कि हम अगले सौर कलंक चक्र (यानी अगले 10 वर्षों) से परे भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं क्योंकि सूर्य की गतिशील 'स्मृति' (यानी, सूर्य की पिछली स्थितियों के समय की अवधि, जो कि भविष्य की स्थितियों को प्रभावित करती है) केवल एक सौर्य चक्र तक सीमित है और इससे परे नहीं है।
  • इस शोधपत्र का लेखन डॉ नंदी जो कि सेंटर फॉर एक्सलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया (Centre for Excellence in Space Sciences India) और डिपार्टमेंट ऑफ़ फिज़िकल साइंस (Department of Physical Sciences) IISER, कोलकाता से जुड़े हैं, ने शोध छात्र प्रंतिका भौमिक के साथ मिलकर किया।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, "इस प्रकार का कार्य सूर्य की दीर्घकालिक भिन्नताओं और हमारे जलवायु पर इसके प्रभाव को समझने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होगा जो आदित्य मिशन के उद्देश्यों में से एक है। यह पूर्वानुमान आदित्य मिशन की वैज्ञानिक परिचालन योजना के लिये भी उपयोगी होगा।"
  • सौर कलंक को समझने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि वे अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करते हैं। यह सूर्य के आस-पास के क्षेत्र में विकिरण, कण प्रवाह और चुंबकीय प्रवाह के प्रभाव को संदर्भित करता है।
  • चरम घटनाओं के दौरान, अंतरिक्ष का मौसम इलेक्ट्रॉनिक्स संचालित उपग्रह नियंत्रण, संचार प्रणाली, ध्रुवीय मार्गों पर हवाई यातायात और यहाँ तक कि बिजली ग्रिड को भी प्रभावित कर सकता है। अन्य दिलचस्प कारण यह भी है कि यह माना जाता है कि सौर कलंक पृथ्वी की जलवायु से संबंधित हैं।
  • इस क्षेत्र में बहुत से शोध इस बात का अनुमान लगाने पर केंद्रित हैं कि अगला सौर कलंक चक्र किस प्रकार आकार लेगा- क्या सूर्य बेहद सक्रिय होगा और कई सौर धब्बे उत्पन्न करेगा या नहीं।
  • भविष्यवाणी की गई है कि अगला चक्र (चक्र 25) कम सौर कलंक की गतिविधि दिखाएगा। यहाँ तक अनुमान लगाया गया है कि सूर्य लंबे समय तक कम गतिविधि की अवधि की ओर बढ़ रहा है - सौर भौतिक विज्ञानी इसका वर्णन 'मौंडर लाइक मिनिमम' के रूप में करते हैं।
  • मौंडर मिनिमम वर्ष 1645 से 1715 तक की अवधि को संदर्भित करता है जहाँ पर्यवेक्षकों ने न्यूनतम सौर कलंक गतिविधि की सूचना दी, यहाँ 28 वर्षों की अवधि में सौर कलंक की संख्या लगभग 1,000 गुना कम हो गई।
  • इस दौरान और कम गतिविधि की ऐसी अन्य अवधि के दौरान यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में औसत से कम तापमान का अनुभव हुआ। जबकि मौंडर मिनिमम और पृथ्वी पर जलवायु के बीच संबंध अभी भी बहस का मुद्दा है, यह सौर कलंक के अध्ययन का एक और कारण प्रदान करता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने लिखा, "सौर कलंक चक्र-25 सौर गतिविधि की पर्याप्त रूप से कमज़ोर प्रवृत्ति को उलट सकता है, जिसके अनुसार, आसन्न मौंडर की तरह और अधिक तथा ठंडे वैश्विक जलवायु की अटकलें लगाई गई हैं।"

स्रोत : द हिंदू

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