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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आईआईएम विधेयक : क्या परिवर्तित हुआ, क्या नहीं?

  • 30 Jan 2016
  • 9 min read

पृष्ठभूमि

हाल ही में संसद में प्रस्तावित एक कानून जिसे यदि संसद की मंजूरी प्राप्त हो जाती है तो वह देश के तकरीबन 20 आईआईएम संस्थानों (Indian Institutes of Management –IIMs) यथा; आईआईटी, एनआईटी तथा एम्स को “राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान” (Institution of National Importance) घोषित करने की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा| दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस प्रस्ताव को अनुमति प्राप्त होने के साथ ही इन सभी संस्थानों को विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान करने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा| वर्तमान में, देश के सभी आईआईएम संस्थान सोसाइटी अधिनियम के तहत पजीकृत पृथक निकाय (Separate Bodies) हैं| 

  • विदित हो कि प्रबंधन में स्नातकोत्तर तथा फेलो ( डॉक्टरों को अध्ययन समाप्त करने के पश्चात् फेलो की उपाधि प्रदान की जाती है) की उपाधि को भारतीय विश्वविद्यालय संघ तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा एमबीए एवं पीएचडी के समकक्ष माना गया है|
  • वर्ष 2015 में जब पहली बार यह विधेयक प्रस्तुत किया गया था, उस समय आईआईएम द्वारा सरकार के अत्यधिक नियंत्रण के विषय में काफी आपत्ति जताई गई थी|
  • विशेषकर आईआईएम अहमदाबाद द्वारा इस विधेयक के दो खंडों पर विशेष आपत्ति दर्ज़ कराई गई| इन खंडों के अनुसार, आईआईएम को संस्थान के विषय में सरकार द्वारा लिये गए प्रत्येक फैसले (फीस संरचना, प्रवेश के मानदंड, शैक्षणिक विभागों के गठन, स्टाफ के वेतन तथा बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoGs) के गठन आदि) के विषय में छानबीन करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए| वर्तमान में यह अधिकार आईआईएम बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के पास है|


क्या इस विधेयक से संस्थान की स्वायत्ता प्रभावित होगी? 

  • इसका उत्तर है नहीं, ऐसा नहीं होगा| वास्तविकता यह है कि यह विधेयक आईआईएम संस्थानों को वर्तमान की अपेक्षा और अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगा| यदि सरकार इस विधेयक को पारित करने में सफल हो जाती है तो यह देश का पहला ऐसा शिक्षण संस्थान होगा जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होगा|
  • दूसरे अन्य संस्थानों यथा; आईआईटी एवं एनआईटी में राष्ट्रपति की भूमिका एक आगन्तुक की होती है जिसका कार्य मानव संसाधन मंत्रालय की सलाह पर संस्थानों के निर्देशकों एवं अध्यक्षों की नियुक्ति करना होता है|
  • परन्तु इस विधेयक के अंतर्गत आईआईएम संस्थानों को अपने निर्देशक एवं अध्यक्ष स्वंय चुनने का अधिकार प्राप्त होगा|
  • इसके अतिरिक्त बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स (Board of Governors - BoG) के संबंध में (इस विधेयक के तहत देश के सभी आईआईएम संस्थानों में बीओजी गठित किये जाएंगे) इस विधेयक के अंतर्गत एक समन्वय फोरम (Coordination Forum) गठित करने का प्रावधान किया गया है| इस फोरम के माध्यम से संस्थान के प्रदर्शन में सुधार करने हेतु सदस्यों के अनुभवों एवं दिशा-निर्देशों के माध्यम से कार्य करना सुनिश्चित किया जाएगा|
  • आईआईटी की परिषद् की भाँति (इसके माध्यम से देश के 23 आईआईटी संस्थानों को समन्वित करने का कार्य किया जाता है) आईआईएम संस्थानों में भी 33 सदस्यों से निर्मित एक फोरम का गठन किया जाएगा| हालाँकि इसकी अध्यक्षता मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा नहीं की जाएगी (जैसी कि आईआईटी में की जाती है), बल्कि इसके स्थान पर समिति द्वारा किसी अन्य “प्रतिष्ठित व्यक्ति”  को दो वर्ष के लिये इस फोरम का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा|
  • ध्यातव्य है कि इस फोरम की जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा समय-समय पर आईआईएम के प्रदर्शन की जाँच की जाएगी तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा समय-समय पर इसके खातों की ऑडिटिंग भी की जाएगी|


इस समस्या का समाधान 

  • हालाँकि इस विधेयक में वर्णित कुछ प्रावधानों के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा भी आपत्ति जताई गई है| उक्त विधेयक के पहले मसौदे में पीएमओ द्वारा इस बात पर विशेष बल दिया गया था कि उक्त विधेयक के सभी संदर्भों में से “आगंतुक” शब्द को हटाया जाना चाहिये|
  • ध्यातव्य है कि इस विधेयक के पहले प्रारूप में बीओजी में केंद्र सरकार के दो प्रत्याशियों को रखने का प्रावधान किया गया था जबकि पीएमओ द्वारा एक प्रत्याशी की नियुक्ति का सुझाव व्यक्त किया गया है |
  • इस विधेयक के अंतर्गत बीओजी में तीन भूतपूर्व छात्रों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है जबकि पीएमओ द्वारा कम से कम पाँच छात्रों को इसके अंतर्गत शामिल करने का सुझाव दिय गया है|
  • पीएमओ के सुझावानुसार, विधेयक में वर्णित समन्वय फोरम की अध्यक्षता किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिये न कि मानव संसाधन मंत्री द्वारा|


क्या आईआईएम शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण प्रदान करेगा? 

  • मानव संसाधन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि शिक्षकों की भर्ती के संबंध में “लॉ ऑफ़ द लैंड” (law of the land) का अनुपालन किया जाएगा| हालाँकि इस विधेयक में संकाय आरक्षण के विषय में एक  अस्पष्ट समर्थन प्रदान किया गया  है|
  • गौरतलब है कि इस विधेयक में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि आईआईएम संस्थानों द्वारा  अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को आरक्षण प्रदान किया जाएगा, साथ यह भी वर्णित किया गया है कि आईआईएम द्वारा कमज़ोर वर्ग से आने वाले शिक्षकों की भर्ती को भी बढ़ावा प्रदान किया जाएगा|


इस आईआईएम विधेयक के कारण अन्य व्यवसायिक स्कूलों को होने वाली परेशानियाँ

  • पिछले कुछ दशकों में, आईआईएम संस्थानों द्वारा अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर प्रबंधन के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा postgraduate diploma in management (PGDM) प्रदान करने हेतु एक निश्चित धनराशि का संचयन किया गया है| यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो वे संस्थान जो अभी तक पीजीडीएम प्रदान करते आए हैं उनके लिये आईआईएम के रूप में प्रतिस्पर्द्धा का माहौल उत्पन्न हो जाएगा|
  • भारत में शिक्षा को प्रोत्साहन प्रदान करने वाले समुदायों द्वारा निजी प्रबंधन स्कूलों की ओर से मानव संसाधन मंत्रालय को पत्र लिखकर यह प्रार्थना की गई है कि पीजीडीएम स्कूलों को एमबीए डिग्री प्रदान करने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये|
  • हालाँकि जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक निजी शिक्षा संस्थान केवल उस स्थिति में विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान कर सकता है जब उसे राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय अथवा डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्ज़ा प्रदान किया जाए अथवा किसी राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय से इसे संबद्ध किया जाए|
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