लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

सोशल मीडिया पर गलत सूचना व फेक न्यूज़ का नियंत्रण

  • 28 Sep 2019
  • 5 min read

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश देते हुए सख्त टिप्पणी की थी कि हमें ऐसे दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को नियंत्रित किया जा सके।

क्या था मामला?

  • केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 तथा 35A को समाप्त करने से ठीक पहले मोबाइल व इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी थीं ताकि फेक न्यूज़ और भड़काऊ संदेशों के फैलने से घाटी की शांति व्यवस्था भंग न हो।
  • कश्मीर में संचार सेवाओं पर लगाई गई सरकार की रोक के खिलाफ बहुत से लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

अन्य देशों में फेक न्यूज़ का नियंत्रण?

मलेशिया: मलेशिया दुनिया के उन अग्रणी देशों में से एक है, जिसने फेक न्यूज़ रोकने के लिये सख्त कानून बनाया है। इसके तहत फेक न्यूज़ फैलाने पर 5 लाख रिंग्गित (रिंग्गित, मलेशिया की आधिकारिक मुद्रा है) का जुर्माना या छह साल का कारावास अथवा दोनों का प्रावधान है।

यूरोपीय यूनियन: अप्रैल 2019 में यूरोपीय संघ की परिषद ने कॉपीराइट कानून में बदलाव करने और ऑनलाइन प्लेटफार्म को उसके यूज़र्स द्वारा किये जा रहे पोस्ट के प्रति ज़िम्मेदार बनाने वाले कानून को मंज़ूरी प्रदान की थी। इससे किसी और की फोटो या पोस्ट को अपने प्रयोग के लिये चोरी (कॉपी-पेस्ट) कर लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

चीन: चीन के पास हज़ारों की संख्या में साइबर पुलिसकर्मी हैं, जो सोशल मीडिया पोस्ट विशेषकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील, फेक न्यूज़ और भड़काऊ पोस्ट पर नज़र रखते हैं। इसके अलावा यहाँ इंटरनेट के बहुत से कंटेंट पर सेंसरशिप भी लगी है।

ध्यातव्य है कि चीन ने फेक न्यूज़ को रोकने के लिये पहले से ही सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सेवाओं जैसे-ट्विटर, गूगल और व्हाट्सएप आदि को प्रतिबंधित कर रखा है।

  • रूस, फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी सख्त नियमों व जुर्माने का प्रावधान है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

यद्यपि भारत में भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) है और इसके तहत विभिन्न तरह के प्रावधान भी किये गए हैं। लेकिन इस अधिनियम के बावजूद निम्नलिखित चुनौतियों/समस्याओं का सामना करना पड़ता है-

  • अधिनियम के प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव है।
  • ज़्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम/कानून के बारे में बहुत कम जानकारी है।
  • भारत में साइबर अपराध के अधिकतर मामले भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के तहत दर्ज़ किये जाते हैं, न कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत।
  • ज़्यादातर सोशल मीडिया व सर्च इंजनों का न तो भारत में सर्वर है और न ही कार्यालय। इसलिये ये भारतीय नियमों को मानने के लिये बाध्य नहीं होते।

निष्कर्ष

चूँकि भारत में अक्सर फेक न्यूज़ के मामले सामने आते रहे हैं जो राष्ट्र की एकता व अखंडता को बाधित करते हैं तथा सांप्रदायिक दंगों आदि को प्रेरित करते हैं। इसलिये विभिन्न देशों की भाँति भारत में भी फेक न्यूज़ या गलत सूचना फैलाने के विरुद्ध सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है। साथ ही जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिये ताकि लोग प्रसारित हो रही सूचनाओं के मूल तथ्यों व इनके पीछे की मंशा को समझने में सक्षम हों।

स्रोत: द टाइम्स ऑफ इंडिया

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2