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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

महामारी और राज्यों की वित्तीय स्थिति

  • 29 Oct 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

सकल राजकोषीय घाटा, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये

राज्यों की राजकोषीय स्थिति और महामारी पर उनका प्रभाव, महामारी से मुकाबले में केरल और धारावी मॉडल

चर्चा में क्यों?

राज्यों की वित्तीय स्थिति पर भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में राज्यों के सकल राजकोषीय घाटे (Gross Fiscal Deficits- GFDs) में दोगुनी वृद्धि हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्यों के सकल राजकोषीय घाटे की स्थिति
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश के लगभग आधे राज्यों ने अपने सकल राजकोषीय घाटे (GFDs) और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात को 3 प्रतिशत या उससे अधिक सीमा पर निर्धारित किया है।
    • अधिकांश राज्यों द्वारा इस अनुपात में संशोधन किये जाने की संभावना इस तथ्य से स्पष्ट है कि महामारी की शुरुआत से पूर्व प्रस्तुत किये गए बजटों में सकल राजकोषीय घाटे (GFDs) को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का औसतन 2.4 प्रतिशत निर्धारित किया गया है, जबकि जिन राज्यों ने महामारी के बाद अपना बजट प्रस्तुत किया उनका यह अनुपात औसतन 4.6 प्रतिशत के आस-पास है।
      • बजटीय अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत के सभी राज्यों का समग्र सकल राजकोषीय घाटा (GFD), सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 2.8 प्रतिशत रह सकता है, हालाँकि यह केवल बजटीय अनुमान है और वास्तविकता इससे कहीं अधिक हो सकती है।
    • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत के लगभग सभी राज्य उच्च राजकोषीय घाटे और राजस्व में कमी के साथ महामारी का मुकाबला कर रहे हैं। ऐसे में राज्यों के लिये महामारी के विरुद्ध यह लड़ाई और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। 
  • कब तक रहेगी यह स्थिति?
    • वर्तमान में भारत के राज्य एक ऐसी स्थिति में पहुँच गए हैं जहाँ एक तरफ मांग में कमी के कारण राजस्व में कमी आ रही है, वहीं दूसरी ओर महामारी के कारण सरकारी व्यय में लगातार वृद्धि हो रही है। इसे ‘सीज़र इफेक्ट’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • राज्यों की वित्तीय स्थिति पर तनाव की अवधि मुख्य तौर पर लॉकडाउन की अवधि और वायरस संक्रमण के बढ़ते जोखिम जैसे कारकों पर निर्भर करेगी। यद्यपि देश के लगभग सभी हिस्सों में लॉकडाउन को समाप्त कर दिया गया है किंतु भारत अभी भी विश्व में कोरोना वायरस के मामलों में दूसरे स्थान पर बना हुआ है।
      • ऐसे में आगामी कुछ वर्ष राज्य सरकारों के लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
  • राज्यों पर प्रभाव
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मानें तो आगामी कुछ वर्षों के लिये राज्यों के राजस्व, खासतौर पर कर राजस्व में कमी आ सकती है। विकास और कर राजस्व के बीच स्पष्ट संबंध होता है और विकास के नकारात्मक होने पर कर राजस्व जीडीपी की तुलना में अधिक तेज़ी से गिरता है। 
    • महामारी से संबंधित व्यय, खासतौर पर स्वास्थ्य और अन्य सहायक उपायों पर किये जाने वाले व्यय के कारण राज्य सरकारों के कुल व्यय में बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण ‘सीज़र इफेक्ट’ की अवधि और लंबी हो सकती है।
    • ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों को निवेश संबंधी परियोजनाओं पर रोक लगाने जैसे कठिन निर्णय लेने पड़ सकते हैं। हालाँकि निवेश संबंधी विकास परियोजनाओं पर रोक लगाने से राज्य की आर्थिक वृद्धि पर काफी प्रभाव पड़ सकता है।
    • इस प्रभाव के कारण राज्यों की ऋणग्रस्तता में बढ़ोतरी होगी और यदि ऐसे में राज्यों की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होता है तो उनकी राजकोषीय स्थिरता प्रभावित होगी और राज्यों द्वारा अब तक इस दिशा में जो प्रयास किये गए हैं वे सभी व्यर्थ हो जाएंगे। 

पूर्व में ऐसी स्थिति?

  • भारत में पूर्व की चार महामारियों- प्लेग (वर्ष 1896), स्पैनिश फ्लू (वर्ष 1918), एशियाई फ्लू (वर्ष 1957) और चेचक (वर्ष 1974) के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इन सभी महामारियों के दौरान आर्थिक संकुचन देखा गया था। 
    • विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 1918 में स्पैनिश फ्लू के कारण तत्कालीन अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक तकरीबन 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
  • अधिकांश महामारियों के दौरान लगभग 2 वर्ष की अवधि में आर्थिक विकास की गति वापस अपने स्थान पर आती है, किंतु वर्ष 1918 की महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को महामारी के पूर्व की आर्थिक गति प्राप्त करने के लिये चार वर्ष का समय लग गया था।

केरल और धारावी मॉडल

  • केरल मॉडल: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के मुताबिक सशक्त स्थानीय संस्थानों और सामुदायिक भागीदारी के कारण केरल सरकार को महामारी से प्रभावित लोगों तक पहुँचने में काफी मदद मिली है।
    • कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के साथ केरल इस मामलों से निपटने के लिये सक्रीय रूप से स्थानीय स्वशासन (LSGs) की सेवाओं का उपयोग कर रहा है।
    • केरल में स्थानीय स्वशासन (LSGs) को सूचनाओं के संग्रह, जागरूकता फैलाने, संवेदनशील वर्ग की पहचान करने, क्वारंटाइन और लॉकडाउन संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करवाने, सार्वजनिक स्थानों को कीटाणुरहित करने और क्वारंटाइन केंद्रों पर आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।
    • यही कारण है कि राज्य में महामारी के शुरुआती दौर में संक्रमण को रोकने में काफी सफलता मिली थी, किंतु जैसे-जैसे विदेश से लोग केरल आ रहे हैं और नियमों में छूट दी जा रही है वैसे-वैसे मामलों में भी बढ़ोतरी हो रही है।
  • धारावी मॉडल: रिज़र्व बैंक ने अपने अध्ययन में कहा है कि मुंबई के धारावी में महामारी से मुकाबले में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और सामुदायिक भागीदारी ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • महामारी से इस मुकाबले के दौरान प्रशासन ने स्थानीय निजी डॉक्टरों, अस्पतालों, गैर-सरकारी संगठनों, स्वयंसेवकों और चुने हुए प्रतिनिधियों तथा नागरिक समाज संगठनों के साथ करार किया और साथ ही अधिक-से-अधिक परीक्षण, प्रोएक्टिव स्क्रीनिंग, कांटैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन जैसे उपाय भी अपनाए गए।
    • सामुदायिक भागीदारी और सामूहिक एकजुटता ने धारावी में महामारी के प्रकोप को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाई। 
    • ध्यातव्य है कि बीते दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी धारावी द्वारा किये गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा था कि अन्य देशों को भी इस तरह के उपाय अपनाने पर विचार करना चाहिये। 

आगे की राह 

  • आवश्यक है कि राज्य सरकारों द्वारा अपने व्यय को ऐसी निवेश परियोजनाओं पर केंद्रित करना चाहिये, जिनमें उत्पादकता काफी अधिक हो। वहीं सीमित राजस्व वाले राज्यों को उच्च उत्पादकता वाली विकास परियोजनाओं के स्थान पर श्रम-गहन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • राज्यों को कर अनुपालन में सुधार करके और कर आधार में विस्तार करने के लिये प्रशासन के अधिक-से-अधिक डिजिटलाइज़ेशन के माध्यम से कर संग्रहण में सुधार करना होगा।
    • डिजिटलाइज़ेशन के ज़रिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रणाली में सुधार किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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