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स्वस्थ जीवन और भविष्य: लैंसेट रिपोर्ट

  • 24 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

WHO, UNICEF

मेन्स के लिये

रिपोर्ट के निहितार्थ और समाधान संबंधी उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund-UNICEF) तथा ‘द लैंसेट’ द्वारा सम्मिलित रूप से गठित आयोग ने बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य के संदर्भ में एक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि विश्व का कोई भी देश बच्चों के स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा उनके भविष्य को संरक्षित करने की दिशा में गंभीरता पूर्वक प्रयास नहीं कर रहा है।
  • ‘अ फ्यूचर फॉर द वर्ल्डस चिल्ड्रेन (A Future for the World’s Children)’ नामक रिपोर्ट ने अपने शोध में पाया कि प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य और भविष्य पारिस्थितिक क्षरण, जलवायु परिवर्तन और हानिकारक वाणिज्यिक विपणन प्रथाओं (संसाधित फास्ट फूड, शराब तथा तंबाकू उत्पादों को प्रोत्साहन) जैसी समस्याओं के कारण खतरे में है।
  • विगत 20 वर्षों में बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार के बावजूद प्रगति रुक गई है तथा इसमें गिरावट भी देखी जा रही है।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 250 मिलियन बच्चें बौनेपन की समस्या से ग्रस्त हैं और गरीबी के छद्म उपायों के कारण इनकी विकास क्षमता में वृद्धि नहीं हो पा रही है।
  • रिपोर्ट में बाल और किशोर स्वास्थ्य के प्रति सभी देशों को अपने दृष्टिकोण में सुधार लाने की ज़रूरत पर बल दिया गया है, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि हम वर्तमान और भविष्य के संसाधनों को संरक्षित करने के प्रति गंभीर हैं।

जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिये रिपोर्ट में 180 देशों के स्वास्थ्य संबंधी सूचकांक को आधार बनाया गया है, इस सूचकांक में बाल अस्तित्व और कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सतत विकास, समानता एवं ग्रीन हाउस गैस जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले देशों के सापेक्ष निम्न प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को स्वस्थ जीवन तथा अपने बच्चों की क्षमता का संवर्द्धन करने के लिये अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • यदि वैश्विक तापन वर्तमान अनुमान के अनुसार वर्ष 2100 तक 4°C से अधिक हो जाता है तो समुद्र के बढ़ते जलस्तर, उष्मीय तरंग, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के प्रसार और कुपोषण के कारण बच्चों के लिये यह विनाशकारी स्वास्थ्य परिणाम की स्थिति उत्पन्न करेगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2 अरब लोग उन देशों में रहते हैं जहाँ मानवीय संकटों, संघर्षों प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के कारण विकास बाधित है।

हानिकारक वाणिज्यिक विपणन प्रथाओं का प्रभाव

  • रिपोर्ट में हानिकारक वाणिज्यिक विपणन से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी बताया गया है। साक्ष्यों के अनुसार, कुछ देशों में बच्चे एक वर्ष में केवल टेलीविज़न पर 30,000 से अधिक बार शराब और तंबाकू से संबंधित विज्ञापन देखते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में दो वर्षों में ई-सिगरेट के विज्ञापनों के कारण सिगरेट पीने वाले युवाओं की संख्या 250% से भी अधिक बढ़ गई है।
  • जंक फूड और शर्करा युक्त पेय पदार्थों के व्यावसायिक विपणन के कारण बच्चें अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की खरीद के चलते अधिक वजन और मोटापे जैसी समस्याओं से प्रभावित होते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों की संख्या वर्ष 1975 के 11 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2016 में 124 मिलियन हो गई है।

बच्चों के स्वास्थ्य सुधार संबंधी घोषणा-पत्र

  • बच्चों का स्वास्थ्यप्रद भविष्य सुनिश्चित करने के लिये तत्काल प्रभाव से कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन रोकना होगा,
  • स्थायी विकास सुनिश्चित करने के लिये बच्चों और किशोरों को प्रयासों के केंद्र में रखना चाहिये,
  • बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकार को संरक्षित करने के लिये नीतियों का निर्माण तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश आवश्यक है,
  • नीतिगत निर्णयों में बच्चों के मुद्दों को शामिल करना चाहिये,
  • हानिकारक वाणिज्यिक विपणन प्रथाओं का विनियमन करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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