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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जीएसटी – अभी और क्या करने की आवश्यकता है?

  • 16 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
वस्तु एवं सेवा कर’ परिषद की अगली बैठक 18-19 मई को होगी| इस बैठक में देश में लागू की जाने वाली नई कर व्यवस्था के क्रियान्वयन से संबंधित विभिन्न नियमों को अंतिम रूप दिया जाएगा| 

इस व्यवस्था में क्या - क्या किया जा चुका है?

  • उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व जी.एस.टी. से संबंधित पाँच नियमों को अंतिम रूप देने के लिये जी.एस.टी. परिषद की बैठक 13 बार हो चुकी है| वस्तुतः ये कानून नई कर व्यवस्था को वास्तविक रूप प्रदान करेंगे| इनमें से चार नियमों को संसद द्वारा पारित किया जा चुका है| 
  • पाँचवे नियम (SGST) को सभी राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों की विधानसभाओं द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है| फिलहाल जी.एस.टी. परिषद द्वारा उत्पादों और सेवाओं के मूल्यों को अंतिम रूप दिया जाना अभी शेष है| 

आवश्यकता क्या है?

  • विशेषज्ञों के मुताबिक, जिन नियमों को होने वाली बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा उनमें दुकानदारों, वितरकों और सेवा प्रदाताओं को प्रभावित करने वाले मुद्दे शामिल नहीं किये गए हैं| इन मुद्दों में सेवा कंपनियों के लिये ‘आपूर्ति नियम’ शामिल हैं| इन नियमों को स्पष्ट करने से यह ज्ञात होगा कि सेवा अंतर-राज्यीय स्तर पर उपलब्ध कराई गई है अथवा अंतर-राज्यीय स्तर पर, जिसके कारण अंततः यह निर्धारित होगा कि सेवा पर एकीकृत जीएसटी (IGST) लगाया जाएगा अथवा नहीं?
  • अन्य मुद्दा ऐसे मामलों का समाधान करने से जुड़ा है जहाँ बिल का पता वितरण वाले पते से भिन्न होता है| चूँकि अधिकांश कंपनियों ने अपने ई.आर.पी. कार्यक्रम का उचित तरीके से क्रियान्वयन नहीं किया है, अतः इस बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि यदि बिल का पता वस्तुओं के वितरण वाले पते से भिन्न हुआ तो कर की दर किस प्रकार आरोपित की जाएगी| उदाहरण के लिये, यदि कोई कंपनी दिल्ली के समाचार पत्र के मुंबई प्रकाशन में एक विज्ञापन देती है तो इस पर बिल मुंबई में केवल तभी दिया जा सकता है  जब समाचार पत्र में यह प्रदर्शित होता है कि इसकी कोई कंपनी मुंबई में भी है तथा वह वहाँ इसकी प्रतियाँ छाप सकती है अन्यथा इसका बिल दिल्ली के पते पर बनाया जाएगा| उद्योग संघ इस प्रकार के मुद्दों पर सरकार से स्पष्ट राय की अपेक्षा कर रहे  हैं|
  • इसमें एक अन्य मुद्दा ऑनलाइन माध्यम से बिल का भुगतान करने का भी है जिसकी आवश्यकता देश में सामान के परिवहन के लिये होगी| इस ई-वे बिल(e-waybill) को विक्रेता, ट्रांसपोर्टर तथा प्राप्तकर्ता द्वारा लेन-देन को पूर्ण करने के लिये प्राप्त किया जाना आवश्यक है| कर विशेषज्ञ यह कहते हैं कि वर्तमान में ई-वे बिल का विवरण एक बड़ी समस्या है क्योंकि प्राप्तकर्ता प्रायः इस बिल को प्राप्त नहीं कर पाते हैं फलस्वरूप लेन-देन पूर्ण नहीं होता है| ई-वे बिल व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिये इसके स्वरूप में बदलाव की आवश्यकता होगी|
  • एक अन्य बड़ा मुद्दा यह है कि जीएसटी को एकीकृत करने से छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों को अपनी प्रणालियों को कंप्यूटर से जोड़ना आवश्यक होगा क्योंकि एक भी उत्पाद के लिये नामकरण प्रणाली (Harmonized System of Nomenclature -HSN) के कोड की आवश्यकता होगी| ये कोड 10 अंकीय होंगे जिनमें प्रथम चार अंक श्रेणी को परिभाषित करेंगे और शेष अंक मुख्य उत्पाद को प्रदर्शित करेंगे| उदाहरण के लिये, लेज़ के चिप्स और कुरकुरे के प्रथम चार अंक तो समान होते हैं परन्तु शेष अंक भिन्न होते हैं| इस प्रकार की व्यवस्था और नए ई.आर.पी. व्यवस्था के  लागू होने में अभी काफी समय लगेगा| व्यवसायी लोग यह शिकायत कर रहे हैं कि 18-19 मई को जिन नियमो को अंतिम रूप प्रदान किया जाना है उससे वे अपने सॉफ्टवेयर को केवल जून के प्रथम सप्ताह तक ही अंतिम रूप देने में सक्षम होंगे| 

कर की दरें कब तक सार्वजनिक की जा सकती हैं?

  • संभव है कि कर की दरें जीएसटी परिषद की अगली बैठक में सार्वजानिक नहीं की जाएंगी| ई.आर.पी. प्रणाली पर कार्य कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी तत्काल कोई आवश्यकता भी नहीं है| इस संदर्भ में बने नियम बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं|
  • कर की दरों को शीघ्र ही सार्वजानिक करने से लोग उन वस्तुओं को एकत्रित करना प्रारंभ कर देंगे जिनका मूल्य जीएसटी लागू होने पर अधिक हो जाएगा|
  • हालाँकि, कुछ सामानों का मूल्य जानने के पश्चात कंपनियों को जुलाई से सितम्बर की तिमाही में अपने निर्णय लेने में कुछ सहायता अवश्य मिल सकती है|
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