लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के क्रियान्वयन की महत्ता

  • 18 Aug 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों है?

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा झारखंड और बिहार राज्य में उत्‍तरी कोयल जलाशय परियोजना के बकाया काम को इस परियोजना के फिर से प्रारंभ होने के तीन वर्षों के भीतर 1,622.27 करोड़ रुपए के अनुमानित खर्च से पूरा किये जाने की मंज़ूरी प्रदान की गई है। मंत्रिमंडल द्वारा बाँधके जल स्‍तर को पहले के परिकल्पित स्‍तर के मुकाबले सीमित करने का भी फैसला किया है ताकि बाँध के क्षेत्र में कम से कम क्षेत्र शामिल हो। साथ ही यह भी प्रयास किया गया है कि बेतला राष्‍ट्रीय उद्यान और पलामू टाइगर रिज़र्व को भी सुरक्षित रखा जा सके ।

उत्तरी कोयल जलाशय की अवस्थिति

  • ध्यातव्य है कि यह परियोजना सोन नदी की सहायक उत्तरी कोयल नदी (यह रांची पठार से निकलती है) पर स्थित है जो झारखंड के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैदरनगर में सोन नदी से मिलती है तथा अंत में गंगा नदी में समाहित हो जाती है ।
  • उत्तरी कोयल जलाशय झारखंड राज्‍य में पलामू और गढ़वा ज़िलों के अत्‍यंत पिछड़े जनजातीय इलाके में स्थित है ।
  • उत्तरी कोयल नदी अपनी सहायक नदियों के साथ बेतला राष्ट्रीय उद्यान के पश्चिमी भाग से होकर बहती है ।
  • इसकी सहायक नदियाँ औरंगा (Auranga)  एवं अमानत (Amanat) हैं ।

परियोजना की पृष्ठभूमि

  • इस जलाशय का निर्माण कार्य सर्वप्रथम वर्ष 1972 में शुरू हुआ था, परंतु वर्ष 1993 में इसे बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा रुकवा दिया गया ।
  • इस परियोजना के प्रमुख घटकों में बहुत से महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को शामिल किया गया हैं । इस परियोजना के अंतर्गत 67.86 मीटर ऊँचे और 343.33 मीटर लंबे कंक्रीट के बाँध का निर्माण किया जाना सुनिश्चित किया गया था । इस बाँध को उस समय मंडल बाँध का नाम दिया गया ।
  • इस बाँध की क्षमता 1160 मिलियन क्‍यूबिक मीटर निर्धारित की गई थी ।
  • इसके अलावा इस परियोजना के तहत नदी के बहाव की निचली दिशा में मोहनगंज में 819.6 मीटर लंबे बैराज के निर्माण का भी प्रावधान किया गया था ।
  • साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि बैराज के दाएँ एवं बाएँ तट से सिंचाई के लिये दो नहरें वितरण प्रणालियों समेत बनायी जाएँगी ।
  • उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के पूरा हो जाने पर झारखंड के पलामू और गढ़वा ज़िलों के साथ-साथ बिहार के औरंगाबाद और गया ज़िलों के सबसे पिछड़े एवं सूखे की स्थिति वाले इलाकों में 111,521 हैक्‍टेयर ज़मीन की सिंचाई की व्‍यवस्‍था होने की संभावना है ।

सिंचाई की वर्तमान स्थिति

  • फिलहाल इस अधूरी परियोजना से 71,720 हैक्‍टेयर ज़मीन की सिंचाई की जा रही है । हालाँकि परियोजना का निर्माण कार्य पूरा होने के पश्चात् इससे 39,801 हैक्‍टेयर अतिरिक्‍त भूमि की सिंचाई होने की संभावना है ।
  • इस परियोजना के माध्यम से दोनों राज्‍यों की सिंचाई क्षमता कुछ इस प्रकार होगी-दोनों राज्यों की कुल सिंचाई क्षमता तकरीबन 1,11,521 हेक्टेयर हैं, अकेले बिहार राज्य की सिंचाई क्षमता 91,917 हेक्टेयर तथा झारखंड राज्य की सिंचाई क्षमता 19,604 हेक्टेयर है ।

परियोजना की वित्तीय स्थिति

  • ध्यातव्य है कि इस परियोजना की कुल लागत अभी तक 2391.36 करोड़ रुपए आंकी गई है । हालाँकि, अभी तक इस परियोजना के निर्माण कार्य पर करीबन 769.09 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च की जा चुकी है ।
  • यही कारण है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा तीन वित्त वर्षों के दौरान 1622.27 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से इस परियोजना के शेष बचे कार्यों को पूरा करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई है।
  • शेष बचे कार्यों के लिये 1013.11 करोड़ रुपए के सामान्य घटकों का वित्त पोषण केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना कोष से अनुदान के रूप में प्रदान किया जाएगा ।

परियोजना की निगरानी

  • ध्यातव्य है कि इस परियोजना के क्रियान्वयन संबंधी कार्य की निगरानी नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता वाली भारत सरकार की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा की जाएगी ।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2