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गोल्डस्मिथिडाइट

  • 28 Sep 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

दक्षिण अफ्रीका में एक खदान से निकले हीरे के अंदर एक नया खनिज गोल्डस्मिथिडाइट (Goldschmidtite) खोजा गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इसे दक्षिण अफ्रीका के कोफीएफोंटेन पाइप (Koffiefontein Pipe) नामक हीरे की खदान से निकाला गया है।
  • यह गहरे हरे रंग का अपारदर्शी खनिज है, जिसे हीरे के अंदर पाया गया है।
  • इसका रासायनिक फॉर्मूला KNbO3 है।
  • आधुनिक भू-रसायन विज्ञान के पिता विक्टर मोरित्ज गोल्डस्मिड्ट के सम्मान में इस खनिज का नाम रखा गया है।
  • माना जा रहा है कि यह हीरा मेंटल में लगभग 105 मील नीचे गहराई पर बना है।
  • शोधकर्त्ताओं ने कहा कि यह रसायन शास्त्र का एक अनूठा रिकॉर्ड प्रस्तुत करता है; जो ग्रह के गहरे, प्राचीन हिस्सों के अंदर है।
  • गोल्डस्मिथिडाइट में नाइओबियम (Niobium), पोटैशियम (Potassium) तथा पृथ्वी में पाए जाने वाले दुर्लभ तत्त्वों लैंथेनम (Lanthanum) और सीरियम (Cerium) की उच्च सांद्रता है, जबकि मेंटल में मैग्नीशियम (Magnesium) और आयरन (Iron) जैसे तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
  • मेंटल लगभग 1802 मील (2900 किलोमीटर) मोटी परत है। यहाँ पर अत्यधिक ताप एवं दाब की स्थिति पायी जाती है जिससे वैज्ञानिकों के लिए इसका अध्ययन करना मुश्किल हो जाता है।
  • मेंटल में अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण यह अंदर जमे हुए कार्बन को हीरे में बदलने में सहायक है।

मेंटल (Mantle): क्रस्ट के नीचे का भाग मेंटल कहलाता है। इसमें पृथ्वी का अधिकांश आयतन पाया जाता है। इसका औसत घनत्व 4.5 है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह भाग भारी चट्टानों से निर्मित है। इस भाग में ऑक्सीजन और सिलिका की अधिकता पाई जाती है। इस भाग में भूकंपीय लहरों की गति 7.9 किलोमीटर प्रति सेकंड के स्थान पर 8.1 किलोमीटर प्रति सेकंड हो जाती है।

भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर मेंटल को दो भागों में विभाजित किया जाता है:

1) ऊपरी मेंटल (Upper Mantle): क्रस्ट के निचले भाग से ऊपरी मेंटल के मध्य भूकंपीय लहरों की गति में परिवर्तन हो जाता है, जिससे गति मंद पड़ जाती है। अतः क्रस्ट और ऊपरी मेंटल के मध्य असंबद्धता की स्थिति होती है। इसकी खोज सर्वप्रथम ए. मोहोरोविसिस ने 1909 में की थी। अत: इसे मोहो असंबद्धता भी कहते हैं अथवा केवल मोहो (Moho) भी कहा जाता है।

2) निम्न मेंटल (Lower Mantle): निम्न मेंटल के परत की मोटाई 700 किलोमीटर मानी गई है। अन्य मतानुसार इसकी मोटाई मोहो असंबद्धता से 1,000 किमी. से 2,900 तक किलोमीटर मानी गई है। इस भाग में तापमान अधिक रहता है। इस भाग में प्रवाहित S भूकंपीय लहरों से पता चला है कि यह निश्चित रूप से ठोस भाग है। घनत्व में क्रमशः वृद्धि और भूकंपीय लहरों की तीव्रता का मुख्य कारण इस भाग में दबाव की अधिकता है। अधिक गहराई पर अधिक दबाव की स्थिति रहती है, यहाँ सिलीकेट खनिजों में लोहे की मात्रा गहराई के साथ बढ़ती जाती है जिससे इस भाग का घनत्व अधिक हो गया है। ऊपरी मेंटल और निम्न मेंटल के मध्य 300 किलोमीटर चौड़ी संक्रमण परत (Transition Zone) पाई जाती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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