भारतीय राजव्यवस्था
गेरीमैंडरिंग और अमेरिकी लोकतंत्र
- 30 Nov 2021
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प्रिलिम्स के लिये:गेरीमैंडरिंग, पुनर्वितरण के पीछे का सिद्धांत, परिसीमन आयोग मेन्स के लिये:अमेरिकी लोकतंत्र में गेरीमैंडरिंग का अभ्यास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी जनसंख्या के 2020 की जनगणना के परिणाम प्रस्तुत किये गए थे। यहाँ लगभग हर दशक में अमेरिकी कॉन्ग्रेस और राज्यों के विधायी ज़िलों में ‘गेरीमैंडरिंग ’ (अनुचित लाभ की नियत से निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण) की प्रक्रिया अपनाई गई है।
- गेरीमैंडरिंग या पुनर्वितरण चुनावी सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया है। हालाँकि अमेरिका में लोकतंत्र को कमज़ोर करने के लिये इस अभ्यास की आलोचना की गई है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि: गेरीमैंडरिंग शब्द ‘एलब्रिज गेरी मैसाचुसेट्स’ प्रशासन के नाम से लिया गया है, जिसके प्रशासन ने वर्ष 1812 में नए राज्य सीनेटरियल ज़िलों को परिभाषित करते हुए एक कानून बनाया था।
- अंतर्निहित सिद्धांत: पुनर्वितरण के पीछे का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक अधिकारियों का चुनाव जनसंख्या के भौगोलिक वितरण में परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए वास्तविक लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के आदर्श का प्रतीक है।
- लोकतंत्र को कम आँकना: किसी भी प्रकार की गैर-मौजूदगी के लिये एक बुनियादी आपत्ति यह है कि यह चुनावी विभाजन के दो सिद्धांतों का उल्लंघन करती है- निर्वाचन क्षेत्रों के आकार की कॉम्पैक्टनेस और समानता।
- अमेरिकी लोकतंत्र के साथ मुद्दा: अमेरिका में एक विशिष्ट दीर्घकालिक जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति है जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक अपेक्षाकृत शहरी क्षेत्रों से संबंधित हैं और रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।
- हालाँकि अमेरिका में शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों का घनत्व ग्रामीण इलाकों से ज़्यादा है।
- इस परिदृश्य में रिपब्लिकन पार्टी ने ग्रामीण मतदाताओं की सर्वोच्चता बनाए रखने के लिये चुनावी ज़िलों में गेरीमैंडर व्यवस्था लागू की है।
- इसका आशय एक राजनीतिक दल को अपने प्रतिद्वंद्वियों पर अनुचित लाभ लेना या जातीय, भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों की मतदान शक्ति को कमज़ोर करना है।
भारत के साथ तुलना:
- परिसीमन आयोग: भारत में राजनीतिक पुनर्वितरण को भारत के परिसीमन आयोग द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- परिसीमन जनसंख्या में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करने के लिये लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं के फिर से निर्धारण का कार्य है। इस प्रक्रिया में किसी राज्य को आवंटित सीटों की संख्या में भी बदलाव हो सकता है।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम लागू करती है और केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है।
- अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
- अंतर्निहित सिद्धांत: जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना।
- भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को अनुचित लाभ प्राप्त न हो।
- ‘एक वोट एक मूल्य’ के सिद्धांत का पालन करना।
- अब तक के परिसीमन आयोग: वर्ष 1952, वर्ष 1962, वर्ष 1972 और वर्ष 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
- पहला परिसीमन अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा (चुनाव आयोग की मदद से) वर्ष 1950-51 में किया गया था।
- वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ।
- वर्ष 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम ने वर्ष 1971 के स्तर पर वर्ष 2000 तक राज्यों को लोकसभा में सीटों के आवंटन और प्रत्येक राज्य के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन को निर्धारित कर दिया।
- इसके अलावा वर्ष 2001 के 84वें संशोधन अधिनियम ने वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर सीटों की कुल संख्या को प्रभावित किये बिना इस प्रतिबंध को और 25 वर्षों (यानी वर्ष 2026 तक) के लिये बढ़ा दिया।
- वर्ष 2001 के 84वें संशोधन अधिनियम ने सरकार को वर्ष 1991 की जनगणना के जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर राज्यों में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुन: समायोजन और युक्तिकरण का अधिकार दिया।
- इसके पश्चात् वर्ष 2003 के 87वें संशोधन अधिनियम ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान किया, न कि 1991 की जनगणना के आधार पर।
- इस प्रकार वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में परिसीमन की वर्तमान स्थिति 2026 तक स्थिर है।
परिसीमन आयोग:
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स्रोत: द हिंदू