भारतीय राजव्यवस्था
निजी संपत्ति का अधिकार
- 12 Mar 2020
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प्रीलिम्स के लिये: निजी संपत्ति का अधिकार, संपत्ति का अधिकार मेन्स के लिये: निजी संपत्ति के अधिकार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कानून की प्रक्रिया का पालन किये बिना किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से ज़बरन बेदखल करना मानवीय अधिकार का उल्लंघन है।
प्रमुख बिंदु
- जस्टिस एस.के. कौल के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को दोहराते हुए कहा कि निजी संपत्ति का अधिकार मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकार दोनों है।
- न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 1980 में सिक्किम में राज्य के कृषि विभाग द्वारा प्रोगेनी ऑर्चर्ड रीजनल सेंटर के निर्माण के लिये कुछ एकड़ ज़मीन के अधिग्रहण पर दिया गया है।
- सिक्किम द्वारा अधिग्रहीत की गई भूमि दो नामों में दर्ज थी- 1.29 एकड़ सिक्किम के महाराजा के नाम पर और 7.07 एकड़ मान बहादुर बसनेट के नाम पर, जो इस वाद में अपीलकर्त्ता के पिता थे।
- यह देखते हुए कि राज्य वर्तमान में भूमि का उपयोग कर रहा है और इस संदर्भ में मध्यस्थता के सभी प्रयास विफल रहे हैं, न्यायालय ने राज्य को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिये तीन महीने का समय दिया है।
निजी संपत्ति एक मानवाधिकार
- जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने 8 जनवरी, 2020 को अपने एक निर्णय में कल्याणकारी राज्य में संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया था।
- इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विधि द्वारा संचालित किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य विधि की अनुमति के बिना नागरिकों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता है।
- राज्य किसी भी नागरिक की संपत्ति पर ‘एडवर्स पज़ेशन’ (Adverse Possession) के नाम पर अपने स्वामित्त्व का दावा नहीं कर सकता है।
- यह एक विधिक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘प्रतिकूल कब्ज़ा’ है। यदि किसी ज़मीन या मकान पर उसके वैध या वास्तविक मालिक के बजाय किसी अन्य व्यक्ति का 12 वर्ष तक अधिकार रहा है और अगर वास्तविक या वैध मालिक ने अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्ज़े से वापस लेने के लिये 12 वर्ष के भीतर कोई कदम नहीं उठाया है तो उसका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 वर्ष तक कब्ज़ा कर रखा है, उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दिया जा सकता है।
संपत्ति का अधिकार
- संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था।
- 44वें संविधान संशोधन से पूर्व यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के पश्चात् इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, किंतु इसके बावजूद राज्य उचित प्रक्रिया और विधि का पालन कर किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से वंचित कर सकता है।