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डायनासोर की तीन प्रजातियों के पदचिह्न : राजस्थान

  • 11 Sep 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये

थार मरुस्थल, मेसोज़ोइक युग

मेन्स के लिये 

डायनासोर युग का संक्षिप्त विवरण, डायनासोर की प्रमुख प्रजातियाँ, थार मरुस्थल की विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक प्रमुख खोज में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के थार मरुस्थल में डायनासोर की तीन प्रजातियों के पैरों के निशान पाए गए हैं।

  • यह राज्य के पश्चिमी भाग में विशाल सरीसृपों की उपस्थिति को प्रमाणित करता है।

Thar-Desert

प्रमुख बिंदु

  • खोज के बारे में :
    • पैरों के निशान वाले डायनासोर की तीन प्रजातियाँ इस प्रकार हैं- यूब्रोंटेस सीएफ गिगेंटस (Eubrontes cf giganteus), यूब्रोंट्स ग्लेन्रोसेंसिस ( Eubrontes glenrosensis) और ग्रेलेटर टेनुइस (Grallator tenuis)।
    • ये पैरों के निशान 200 मिलियन वर्ष पुराने थे।
    • डायनासोर की प्रजाति को थेरोपोड (Theropod) प्रकार का माना जाता है, जिसमें खोखली हड्डियों और तीन-पैर वाले अंगों (उंगलियों जैसी) की विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं।
      • थेरोपोडा डायनासोर उपसमूह के थेरोपोड वर्ग में वे सदस्य शामिल है जो मांसाहारी डायनासोर की श्रेणी में आते हैं।
    • प्रारंभिक जुरासिक काल से संबंधित सभी तीन प्रजातियाँ मांसाहारी थीं।
    • 'डायनासोर युग' (मेसोज़ोइक युग- 252-66 मिलियन वर्ष पूर्व- MYA) अनुगामी तीन भूगर्भिक समय सारणी (ट्राइसिक (Triassic), जुरासिक (Jurassic) और क्रेटेशियस (Cretaceous) के अंतर्गत शामिल था। इन तीन अवधियों में से प्रत्येक के दौरान विभिन्न डायनासोर प्रजातियाँ पाई जाती थीं।
  • थार मरुस्थल:
    • नामकरण: थार नाम ‘थुल’ से लिया गया है जो कि इस क्षेत्र में रेत की लकीरों के लिये प्रयुक्त  होने वाला एक सामान्य शब्द है। इसे ग्रेट इंडियन डेज़र्ट के नाम से भी जाना जाता है। 
    • अवस्थिति: यह उत्तर-पश्चिमी भारत के राजस्थान राज्य में तथा पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित पंजाब और सिंध प्रांत तक विस्तृत है।
      • यह पश्चिम में सिंचित सिंधु नदी के मैदान, उत्तर और उत्तर-पूर्व में पंजाब के मैदान, दक्षिण-पूर्व में अरावली शृंखला और दक्षिण में कच्छ के रण से घिरा हुआ है।
    • विशेषताएँ:
      • थार रेगिस्तान एक शुष्क क्षेत्र है जो 2,00,000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। 
      • इसकी सतह पर वातोढ़ (पवन द्वारा एकत्रित) रेत पाई जाती है जो पिछले 1.8 मिलियन वर्षों में जमा हुई है।
      • मरुस्थल में तरंगित सतह होती है, जिसमें रेतीले मैदानों और बंजर पहाड़ियों या बालू के मैदानों द्वारा अलग किये गए उच्च और निम्न रेत के टीले (जिन्हें टिब्बा कहते हैं) होते हैं, जो आसपास के मैदानों में अचानक वृद्धि करते  हैं।
        • टिब्बा गतिशील होते हैं और अलग-अलग आकार एवं आकृति ग्रहण करते हैं।
        • बरचन’ जिसे ‘बरखान’ भी कहते हैं, मुख्य रूप से एक दिशा से आने वाली हवा द्वारा निर्मित अर्द्धचंद्राकार आकार के रेत के टीले हैं। सबसे आम प्रकार के बालुका स्तूपों में से एक यह आकृति दुनिया भर के रेगिस्तानों में उपस्थित होती है।
      • कई ‘प्लाया’ (खारे पानी की झीलें), जिन्हें स्थानीय रूप से ‘धंड’ के रूप में जाना जाता है, पूरे क्षेत्र में विस्तृत हैं।
      • थार मरुस्थल एक समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करता है तथा इस मरुस्थल में मुख्य रूप से तेंदुए, एशियाई जंगली बिल्ली (Felis silvestris Ornata), चाउसिंघा (Tetracerus Quadricornis), चिंकारा (Gazella Bennettii), बंगाली रेगिस्तानी लोमड़ी (Vulpes Bengalensis), ब्लैकबक (Antelope) और सरीसृप की कई प्रजातियाँ निवास करती हैं।

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स्रोत: द हिंदू

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