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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाँच विशालकाय कृष्ण-छिद्र युग्मों की खोज

  • 06 Oct 2017
  • 7 min read

संदर्भ

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाँच विशालकाय कृष्ण छिद्र युग्मों (supermassive black hole pairs) युग्मों की पहचान की है। इनमें से प्रत्येक कृष्ण-छिद्र युग्म का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से लाखों गुना अधिक है। विदित हो कि यह खोज गुरुत्वीय तरंगों की घटना को बेहतर तरीके से समझने में मददगार सिद्ध हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि जब दो आकाशगंगाएँ आपस में टकराती हैं तथा एक दूसरे से मिल जाती हैं तो उनके विशाल कृष्ण-छिद्र काफी नजदीक आ जाते हैं और कृष्ण-छिद्र युग्मों का निर्माण होता है।
  • विदित हो कि अब तक खगोलविदों द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एकल विशालकाय कृष्ण-छिद्र ही खोजे गए थे।
  • परन्तु इस खोज के दौरान भी इसके खगोलविदों ने यह पाया कि जब दो विशाल कृष्ण-छिद्र एक-दूसरे के नजदीक आए तो उनमें आकार में वृद्धि तो हुई परन्तु उन्हें अभी भी दोहरे विशालकाय कृष्ण-छिद्रों का विकसित होना कठिन प्रतीत हो रहा था। 
  • जब भी शोधकर्त्ताओं को यह महसूस हुआ कि दो छोटी आकाशगंगाओं का विलय होने वाला है, उन्होंने आकाशगंगाओं की पहचान करने के लिये ‘स्लोन डिजिटल स्काई सर्वेक्षण’(Sloan Digital Sky Survey-SDSS)  द्वारा प्राप्त किये गए आँकड़ों का उपयोग किया। 
  • इस तकनीक की सहायता से खगोलविदों ने कम से कम एक विशाल कृष्ण-छिद्र युक्त सात ‘विलयित संरचनाओं’(merging systems ) को प्राप्त किया।
  • इन पाँच संरचनाओं में एक्स किरण स्रोत के पृथक पाँच युग्म पाए गए, जिससे इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले कि उनमें तेज़ गति से  बढ़ते हुए विशाल कृष्ण-छिद्र हैं।
  • एक्स किरण उत्सर्जन बढ़ते हुए कृष्ण-छिद्रों की पहचान का एक नायाब तरीका है। 
  • चन्द्र और अवरक्त अवलोकानों से प्राप्त एक्स रे डाटा से यह पता चला कि विशालकाय कृष्ण-छिद्रों के जलने से बड़ी मात्रा में धूल और गैसों का उत्सर्जन होता है। 
  • एक्स किरणें और अवरक्त विकिरण कृष्ण-छिद्र युग्मों के चारों ओर उपस्थित गैस और धूल के अस्पष्ट बादलों को भेदने में सक्षम हैं। 
  • आकाशगंगाओं के केंद्र में कृष्ण-छिद्रों का विलय काफी अधिक होता है। जब ये विशाल कृष्ण-छिद्र एक-दूसरे के समीप आते हैं, तो वे गुरुत्वीय तरंगें उत्पन्न करना प्रारंभ कर देते हैं।
  • सैकड़ों वर्षों में दोहरे विशालकाय कृष्ण-छिद्रों का यह एकाएक विलय से इन से भी बड़े कृष्ण-छिद्रों की खोज का मार्ग खोल देगा। 

कृष्ण-छिद्र क्या हैं?

  • कृष्ण-छिद्र अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता। चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता, अतः हमें कृष्ण छिद्र दिखाई नहीं देते, वे अदृश्य होते हैं।
  • हालाँकि विशेष उपकरणों युक्त अंतरिक्ष टेलीस्कोप की मदद से कृष्ण छिद्रों की पहचान की जा सकती है। ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि कृष्ण छिद्रों के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

कृष्ण-छिद्रों का आकार

  • कृष्ण-छिद्र आकार में छोटे अथवा बड़े हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि छोटे कृष्ण-छिद्र एक अणु के बराबर होते हैं। हालाँकि ये कृष्णछिद्र बहुत छोटे होते हैं परन्तु इनका द्रव्यमान एक बड़े पर्वत के समान होता है। 
  • दूसरे प्रकार के कृष्ण-छिद्र को ‘तारकीय कृष्ण छिद्र’(Stellar black holes) कहा जाता है। इनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 20 गुना अधिक हो सकता है।  पृथ्वी की आकाशगंगा में अनेक तारकीय कृष्ण छिद्र हो सकते हैं। पृथ्वी की आकाशगंगा का नाम ‘मिल्की वे’ है।
  • सबसे बड़े कृष्णछिद्रों को ‘विशालकाय कृष्ण छिद्र’ कहा जाता है। इन कृष्ण छिद्रों का द्रव्यमान लाखों सूर्यों के संयुक्त द्रव्यमान के बराबर होता है। 
  • वैज्ञानिकों ने इस बात के भी प्रमाण प्राप्त कर लिये हैं कि प्रत्येक बड़ी आकाशगंगा के केंद्र में विशाल कृष्ण छिद्र होता है। मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र में पाए गए कृष्ण-छिद्र को सैगीटेरियस ए (Sagittarius A) कहा जाता है। 

इनका निर्माण कैसे हुआ?

  • वैज्ञानिकों का मानना है कि जब भी ब्रह्मांड की रचना हुई, उसी समय सबसे छोटे कृष्ण-छिद्रों का भी निर्माण हुआ होगा।
  • जब एक विशाल तारे का केंद्र स्वयं तारे पर गिर जाता है और टूट जाता है तो ‘तारकीय कृष्ण छिद्रों’ (Stellar black holes) का निर्माण होता है। इस प्रकार की घटना सुपरनोवा (supernova) के कारण होती है।  सुपरनोवा  विस्फोटक तारा होता है जो अन्तरिक्ष में तारे के भाग में विस्फोट कर देता है। 
  • वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जिस समय आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ होगा, उसी समय विशालकाय कृष्ण छिद्रों का भी निर्माण हुआ था।

निष्कर्ष

इस शोध का गुरुत्वीय तरंग खगोल भौतिकी के क्षेत्र में काफी महत्त्व है। सैकड़ों वर्षों में दोहरे विशालकाय कृष्ण-छिद्रों का यह एकाएक विलय इनसे भी बड़े कृष्ण-छिद्रों की खोज का मार्ग खोल देगा।

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