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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

FPIs के बहिर्वाह में गिरावट

  • 08 May 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में विदेशी निवेशकों का योगदान

चर्चा में क्यों?

कोरोनावायरस महामारी और उसके आर्थिक प्रभावों के बीच अप्रैल, 2020 में 'विदेशी पोर्टफोलियो निवेश' (Foreign Portfolio Investment-FPI) के बहिर्वाह (Outflows) की गति में काफी कमी आई है, जो कि मार्च माह के 1,18,203 करोड़ रुपए से अप्रैल माह में 14,858 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि अप्रैल में पूंजी बाज़ार से 14,858 करोड़ रुपए का शुद्ध निधि बहिर्वाह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि मार्च माह में जब देश में कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत हुई थी और देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, तब पूंजी बाज़ार से शुद्ध निधि बहिर्वाह काफी अधिक था।
  • सेंट्रल डिपॉज़िटरी सर्विसेज़ लिमिटेड (Central Depository Services Limited-CDSL) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल माह में इक्विटी बाज़ार (Equities Market) से तकरीबन 6,883 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ, जो कि मार्च माह में 61,972 करोड़ रुपए था।
  • वहीं ऋण बाज़ार (Debt Market) से अप्रैल माह में तकरीबन 12,551 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ, जो कि मार्च माह में 60,375 करोड़ रुपए था।
  • FPIs के बहिर्वाह में तेज़ी से गिरावट के कारण इक्विटी बाज़ारों (Equity Markets) को काफी राहत प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त अप्रैल माह में सेंसेक्स (Sensex) में भी 14.4 प्रतिशत की तेज़ी देखी गई है।

इक्विटी बाज़ार और ऋण बाज़ार 

  • इक्विटी बाज़ार एक ऐसा बाज़ार होता है जहाँ कंपनियों के अंशों (Shares) और स्टॉक्स (Stocks) का कारोबार होता है। इक्विटी बाज़ार अथवा शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, क्योंकि यह कंपनियों को पूंजी तक पहुँच प्रदान करता है और निवेशकों को लाभ प्राप्त करना का अवसर प्रदान करता है।
  • ऋण बाज़ार वह बाज़ार होता है, जहाँ ऋण विलेखों (Debt Instruments) का कारोबार होता है। ऋण विलेख वे परिसंपत्तियां होती हैं जिसमें धारक को एक निश्चित भुगतान की आवश्यकता होती है, सामान्यतः ब्याज के साथ।

कारण

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार ने ग्रीन और ऑरेंज (Green and Orange) ज़ोन्स में लॉकडाउन प्रतिबंधों में काफी हद तक ढील देने की घोषणा की है और साथ ही रेड ज़ोन (Red Zones) में कुछ व्यावसायिक गतिविधियों को भी अनुमति दी गई है, जिससे देश की आर्थिक गतिविधियों में कुछ तेज़ी आएगी। सरकार के इन निर्णयों का प्रभाव FPIs के बहिर्वाह पर भी देखने को मिला है।
  • भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के मामले दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं और इसी के साथ आर्थिक अनिश्चितता भी बढ़ती जा रही है, हालाँकि दुनिया भर के अधिकांश देश COVID-19 के लिये वैक्सीन विकसित करने में लगे हुए हैं, जिसमें कुछ देशों को प्रगति भी मिली है, इसलिये निवेशकों के मध्य कुछ विश्वास पैदा हुआ है। 
  • अर्थव्यवस्था को पुनः मज़बूत करने के लिये सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा समय-समय पर घोषित किये गए उपायों ने भी निवेशकों के मध्य विश्वास पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश

(Foreign Portfolio Investment- FPI)

  • FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है,  जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है।
  • FPI के तहत निवेशक शेयर के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं। 
  • FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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