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जैव विविधता और पर्यावरण

संकटग्रस्त हंगुल प्रजाति

  • 20 Jul 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

कश्मीर घाटी में हंगुल प्रजातियों के मृगों की नवीनतम जनगणना से पता चला है कि हंगुल (Cervus hanglu) की आबादी में तेज़ी से गिरावट आई है।

प्रमुख बिंदु

  • नवीनतम हंगुल जनसंख्या निगरानी कार्यक्रम 22 मार्च से 30 मार्च, 2019 के बीच आयोजित किया गया था।
  • यह कार्यक्रम जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग (Department of Wildlife Protection-DWLP) द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) के सहयोग से आयोजित किया गया।
  • गणना के आँकड़ों से पता चला है कि प्रति 100 मादाओं पर 7.5% शिशु मृग जबकि प्रति 100 मादाओं पर 15.5% पुरुष मृग हैं। यह अनुपात वर्ष 2017 की गणना के दौरान क्रमशः 19.1 और 15.8 प्रतिशत था।
  • इस तरह के कार्यक्रमों को वैज्ञानिक तरीकों से वर्ष 2004 से दाचीगाम अभ्यारण्य में आयोजित किया गया है जिसमें शोधकर्त्ताओं, फील्ड स्टाफ, विश्वविद्यालय के छात्रों को शामिल किया जाता है।
  • कश्मीर में मादा-शिशु मृगों और नर-मादा अनुपात में गिरावट के प्रमुख कारण में वनों की कटाई और अवैध शिकार ने हंगुलों की आबादी को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
वर्ष अनुमानित हंगुल आबादी

नर/100 मादा

शिशु: प्रति 100 मादा

2004 197 19 23
2006 153 21 09
2009 175 26.52 27.82
2011 218 29.52 25.80
2015 183 22.33 14.33
2017 214 15.8 19.1
2019 237 15.3 9.1

आगे की राह

  • वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, हंगुल की संख्या में समग्र गिरावट की प्रवृत्ति को समझने के लिये घटता मादा-शिशु मृग एवं नर-मादा मृगों का अनुपात जनसंख्या असंतुलन का प्रमुख कारण है। इसलिये मृगों के संरक्षण हेतु समय रहते उचित प्रबंधन किये जाने की आवश्यकता है।
  • विशेषज्ञों ने कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग को हंगुल के संरक्षण हेतु एक विशेष परियोजना शुरू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
  • जम्मू और कश्मीर की सरकार को अपने राजकीय पशु की रक्षा करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को दोहराना चाहिये और वास्तव में यदि हंगुल को बचाना है तो हंगुल के निवास स्थान को सुरक्षित एवं संरक्षित किया जाना चाहिये।

कश्मीरी हंगुल

  • कश्मीरी बारहसिंगे को कश्मीर में स्थानीय रूप से हंगुल भी कहा जाता है जो भारत में यूरोपीय लाल हिरणों की एकमात्र उप-प्रजाति है। हंगुल जम्मू-कश्मीर का राजकीय पशु भी है।
  • पहली बार 1844 में अल्फ्रेड वैगनर द्वारा चिह्नित इस प्रजाति के बारे में कहा जाता है कि इसने मध्य एशिया के बुखारा से कश्मीर तक यात्रा की है। पहले यह प्रजाति कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले के कुछ हिस्सों, झेलम और चेनाब नदियों के उत्तर एवं पूर्व में 65 किलोमीटर के दायरे में पाई जाती थी।
  • वर्तमान में हंगुल की आबादी श्रीनगर के पास दाचीगाम वन्यजीव अभयारण्य (Dachigam Wildlife Sanctuary) तक सीमित है, जो 141 ​​वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) ने इसे गंभीर रूप से विलुप्तप्राय पशु घोषित किया है।
  • श्रीनगर के पास दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान (Dachigam National Park) को हंगुल का आखिरी अविवादित आवास माना जाता है।
  • हंगुल के सामने आने वाली चुनौतियों में अवैध शिकार, उग्रवाद से खतरा और भारत एवं पाकिस्तान के बीच सीमा संघर्ष शामिल हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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