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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आर्थिक समीक्षा में एफआरबीएम कानून में बदलाव पर ज़ोर

  • 01 Feb 2017
  • 3 min read

सन्दर्भ

बजट से पहले पेश आर्थिक समीक्षा के अनुसार देश का आर्थिक अनुभव बताता है कि विकसित देशों ने जो राजकोषीय सक्रियता की नीति अपना रखी है, वह भारत के लिये प्रासंगिक नहीं है। इसमें कहा गया है कि भारत का राजकोषीय अनुभव बताता है कि एफआरबीएम कानून, 2003 में बनाई गई राजकोषीय नीति सिद्धांत वर्तमान परिस्थितियों में बुनियादी रूप से उचित है।

एफआरबीएम कानून बदलाव आवश्यक क्यों?

  • विदित हो कि साल 2003 में जब यह कानून बना था उस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार काफी छोटा था। हमारी अर्थव्यवस्था विदेशी निवेश के लिये उतनी अनुकूल नहीं थी जितनी कि आज है। भारत में प्रति व्यक्ति आय विकसित होते अन्य देशों की तुलना में काफी कम थी।
  • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार आज स्थिति काफी बदल चुकी है। भारत अब एक मध्यम आय वाला देश बन चुका है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था किसी भी दूसरी अर्थव्यवस्था की तुलना में काफी बड़ी, खुलापन लिये हुए और तेजी से विकास करने वाली है।
  • आर्थिक समीक्षा के हवाले से यह भी कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से दुनिया भर में राजकोषीय नीति में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। ज़्यादातर देशों की राजकोषीय नीति में पूरा जोर कर्ज़ के बजाय घाटे पर दिया जा रहा है|
  • अब तक भारत की नीति का पूरा जोर राजकोषीय घाटे को सीमित रखने पर रहा है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण से संकेत मिल रहे हैं कि सरकार अब अपनी इस नीति में बदलाव करने की दिशा में बढ़ रही है।

निष्कर्ष

  • ज्ञात हो कि वित्तीय दायित्व और बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएमए) को भारतीय संसद ने वर्ष 2003 में पास किया था। इसका उद्देश्य वित्तीय अनुशासन को संस्थागत रूप देना, वित्तीय घाटे को कम करना व माइक्रो इकोनॉमिक प्रबंधन को बढ़ावा देने के साथ ही बचत और भुगतान को व्यवस्थित करना है।
  • इस कानून को लागू करते समय यह लक्ष्य रखा गया था कि वर्ष 2008 तक वित्तीय घाटे को जीडीपी के तीन फीसदी के स्तर पर लाया जाएगा, लेकिन वर्ष 2008 में शुरू हुई आर्थिक मंदी के चलते यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया था।
  • देश में पारदर्शी वित्तीय मैनेजमेंट तंत्र की स्थापना एवं लंबी अवधि तक वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करने में इस कानून की भूमिका अहम् रही है| लेकिन आज वैश्विक और घरेलू दोनों परिस्थितियाँ बदली हुईं हैं| अतः एफआरबीएमए कानून में बदलाव निश्चित ही एक स्वागत योग्य कदम है बशर्ते यह बदलाव उद्देश्यपूर्ण हो|
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