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'डबल म्यूटेंट' कोरोना वायरस वेरिएंट

  • 26 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोरोना वायरस के एक नए 'डबल म्यूटेंट' (Double Mutant) वेरिएंट का पता चला है जो भारत के अलावा विश्व के किसी अन्य देश में नहीं देखा गया है। 

प्रमुख बिंदु:

उत्परिवर्तन का अर्थ:

  • उत्परिवर्तन (Mutation) का आशय एक जीवित जीव या किसी वायरस की कोशिका के आनुवंशिक पदार्थ (जीनोम) में परिवर्तन से है जो अधिकांशत: स्थायी होता है तथा कोशिका या वायरस के वंशजों में प्रसारित/संचारित होता है। 
  • जीवों के सभी जीनोम डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) से बने होते हैं, जबकि वायरस के जीनोम DNA या फिर राइबोन्यूक्लिक एसिड ( Ribo Nucleic Acid- RNA) से निर्मित हो सकते हैं। 

डबल म्यूटेंट:

  • भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया (Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics- INSACOG) द्वारा महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और गुजरात राज्यों में वायरस के नमूनों के जीनोम अनुक्रमण (Genome sequencing) के दौरान एक साथ दो म्यूटेंट- E484Q और L452R की उपस्थिति का पता चला है।
  • INSACOG द्वारा इन वेरिएंट का विवरण ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग एवियन इन्फ्लूएंज़ा डेटा (GISAID) नामक एक वैश्विक कोष हेतु प्रस्तुत किया जाएगा और यदि यह प्रभावित करता है, तो इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न (Variant of Concern- VOC) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
    • अब तक केवल तीन वैश्विक VOCs की पहचान की गई है जिनमें यू.के. वेरिएंट (B.1.1.7), दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट (B.1.351) और ब्राज़ील वेरिएंट (P.1) शामिल हैं।

वेरिएंट ऑफ कंसर्न:

  • ये ऐसे वेरिएंट हैं जो संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी, पिछले संक्रमण या टीकाकरण में कम एंटीबॉडी के  निर्माण, उपचार या टीके की कम प्रभावशीलता या लक्षणों का सही से पता लगाने की विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

डबल म्यूटेंट की चुनौतियाँ:

  • डबल म्यूटेंट वायरस के स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) वाले क्षेत्रों में जोखिम को बढ़ा सकता है।
    • स्पाइक प्रोटीन वायरस का वह हिस्सा है जिसका उपयोग वह मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने हेतु करता है।
  • एक VOC या संदिग्ध VOC की उपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि वह वायरस के प्रकोप का कारण है, बल्कि यह रोकथाम हेतु सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करती है।
  • जबकि डबल म्यूटेंट को टीके की प्रभावकारिता में कमी के साथ-साथ संक्रामकता के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। इनके संयुक्त प्रभाव और जैविक निहितार्थ को अभी तक नहीं समझा गया है।

अन्य वेरिएंट: 

  • केरल में किये गए जीनोम वेरिएशन ( Genome Variation ) अध्ययन में अन्य प्रकार के उत्परिवर्तनों की उपस्थिति का पता चला है। 
    • यह कोरोनावायरस से बचने में मदद करने वाली एंटीबॉडी से संबंधित है।
  • N440K वेरिएंट्स जो प्रतिरक्षा से संबंधित है यूके, डेनमार्क, सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित 16 अन्य देशों में पाया गया है।

समाधान:

  • अधिकाधिक परीक्षणों हेतु एक समान महामारी विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया बढ़ाने की आवश्यकता होगी। निकट संपर्क की व्यापक स्तर पर ट्रेकिंग, कोविड पॉज़िटिव के मामलों को अतिशीघ्र अलग करने के साथ-साथ राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में  ‘राष्ट्रीय नैदानिक प्रोटोकॉल’ (National Treatment Protocol) के अनुसार उपचार किया जाना चाहिये।

भारतीय सार्स सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया (INSACOG): 

  •  INSACOG प्रयोगशालाओं, एजेंसियों का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है जो SARS-CoV-2 में जीनोमिक विभिन्नताओं का निरीक्षण करता है।
  • यह वायरस के विकसित होने और उसके प्रसार के कारणों का पता लगाने में सहायक है।  
  • जीनोमिक निगरानी (Genomic Surveillance) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर रोगज़नक संचरण और विकास पर नज़र रखने हेतु जानकारी का एक समृद्ध स्रोत प्रदान कर सकती है।

जीनोमिक अनुक्रमण: 

  • वायरस के केस में यह एक जीव के पूरे आनुवंशिक कोड की मैपिंग करने हेतु परीक्षण प्रक्रिया है।
  • वायरस का आनुवंशिक कोड निर्देश पुस्तिका की तरह कार्य करता है।
  • वायरस में उत्परिवर्तन का होना एक सामान्य घटना है लेकिन उनमें से अधिकांश महत्त्वहीन होते हैं जो किसी भी प्रकार के खतरनाक संक्रमण फैलाने या पैदा करने की क्षमता में परिवर्तन करने में सक्षम नहीं होते हैं।
  • लेकिन ब्रिटेन या दक्षिण अफ्रीका में पाए गए वायरस वेरिएंट में उत्परिवर्तन, वायरस को अधिक संक्रामक और कुछ मामलों में घातक भी बना सकते हैं।

एवियन इन्फ्लूएंज़ा का डेटा साझा करने हेतु वैश्विक पहल: 

  • ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग एवियन इन्फ्लूएंज़ा डेटा (GISAID) पहल सभी इन्फ्लूएंज़ा वायरस और कोरोना वायरस के डेटा के तीव्र साझाकरण को बढ़ावा देती है। 
  • आनुवंशिकी अनुक्रमों के तीव्र साझाकरण ने शोधकर्त्ताओं को वायरस के प्रसार का तीव्रता से पता लगाने में मदद की है। 
  • GISAID ने नैदानिक किट के विकास, अनुसंधान हेतु प्रोटोटाइप वायर, टीके और एंटीबॉडी जैसे सुरक्षात्मक चिकित्सा उपचारों के विकास को भी बढ़ावा दिया है।
  • मई 2008 में 60वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के अवसर पर GISAID प्लेटफाॅर्म को लॉन्च किया गया था। 
    • अपने लॉन्च के बाद से GISAID ने डब्लूएचओ ग्लोबल इन्फ्लूएंज़ा सर्विलांस एंड रिस्पॉन्स सिस्टम (GISRS) द्वारा द्वि-वार्षिक इन्फ्लूएंज़ा वैक्सीन वायरस की सिफारिशों हेतु  विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग केंद्रों और राष्ट्रीय इन्फ्लूएंज़ा केंद्रों के बीच डेटा साझा करने में एक अहम भूमिका निभाई है।

स्रोत: द हिंदू

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