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डेटा पॉइंट: न्याय में देरी का गणित

  • 15 Dec 2018
  • 3 min read

संदर्भ


वर्तमान में भारत की निचली अदालतों में लगभग तीन करोड़ (2,91,63,220) मामले लंबित हैं। न्यायाधीशों की उच्च रिक्तियों तथा आबादी की तुलना में न्यायाधीशों की कम संख्या वाले राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में लंबित मामलों की संख्या सबसे अधिक है।

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  • लंबित मामलों का ब्योरा (14 दिसंबर, 2018 का आँकड़ा) इस प्रकार है-

♦ कुल सिविल मामले= 84,57,325
♦ कुल क्रिमिनल मामले= 2,07,05,895
♦ 1 वर्ष से अधिक पुराने कुल मामले= 2,12,26,105

  • नीचे दिया गया ग्राफ ‘प्रति न्यायाधीश लंबित मामलों की संख्या’ तथा ‘प्रति लाख न्यायाधीशों की संख्या’ के बीच आरेखित है।

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  • कम न्यायाधीश, ज़्यादा लंबित मामले

♦ उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, तमिलनाडु, राजस्थान और केरल ऐसे राज्य हैं जहाँ न्यायाधीशों की संख्या तथा लंबित मामले सीधे जुड़े हुए हैं। अर्थात् ऐसे राज्यों में लंबित मामलों की संख्या अधिक होने का मुख्य कारण न्यायाधीशों की संख्या कम होना है। उत्तर प्रदेश में प्रति न्यायाधीश लगभग 3,500 मामले लंबित हैं।

  • ज़्यादा न्यायाधीश, कम लंबित मामले

♦ पंजाब, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और मिज़ोरम ऐसे राज्य हैं जहाँ न्यायाधीशों की संख्या तथा लंबित मामले सीधे जुड़े हुए हैं। अर्थात् ऐसे राज्यों में लंबित मामलों की संख्या कम होने का मुख्य कारण न्यायाधीशों की संख्या अधिक होना है।

  • दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं जहाँ न्यायाधीशों की संख्या अधिक होने के बावजूद लंबित मामलों की संख्या ज़्यादा है।

karnataka

  • जबकि मेघालय, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहाँ न्यायाधीशों की संख्या कम होने के बावजूद लंबित मामलों की संख्या कम है।

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स्रोत- द हिंदू

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