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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

OIC द्वारा भारत की कश्मीर नीति की आलोचना

  • 02 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) द्वारा भारत की कश्मीर नीति की आलोचना को स्पष्ट तौर पर खारिज किया है।

  • ध्यातव्य है कि नाइजर की राजधानी नियामे में आयोजित OIC के विदेशी मंत्रियों की परिषद के 47वें सत्र के दौरान जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत की नीतियों को संदर्भित किया गया साथ ही भारत की जम्मू-कश्मीर नीति की आलोचना की गई।

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) 

  • कुल 57 सदस्य देशों के साथ इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) संयुक्त राष्ट्र (UN) के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
    • इसके कुल सदस्यों में तकरीबन 40 सदस्य मुस्लिम बहुल देश हैं और भारत इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन का हिस्सा नहीं है
  • यह संगठन मुस्लिम जगत की एक सामूहिक शक्ति के रूप में कार्य करता है। इस संगठन का मूल उद्देश्य वैश्विक समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा  देने के प्रयासों के बीच मुस्लिम जगत के हितों को संरक्षण प्रदान करना है।
  • इस संगठन की स्थापना 25 सितंबर, 1969 को रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।
  • मुख्यालय: जेद्दा (सऊदी अरब)

प्रमुख बिंदु

  • कश्मीर मुद्दे पर OIC का पक्ष: इस बैठक के दौरान एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें जम्मू-कश्मीर की स्थिति और उसको लेकर भारत की नीति का उल्लेख किया गया है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के भारत सरकार के निर्णय (वर्ष 2019) का प्राथमिक उद्देश्य इस क्षेत्र की जनसांख्यिकीय और भौगोलिक संरचना में परिवर्तन करना है।
    • जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने की प्रक्रिया के दौरान जो नाकाबंदी और प्रतिबंध लागू किये गए हैं उनके कारण इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
    • इस रिपोर्ट में कश्मीर के मुद्दे को संगठन के एजेंडे में बनाए रखने के लिये पाकिस्तान के प्रयासों का समर्थन किया गया है।

भारत का पक्ष

  • भारत ने इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) पर पलटवार करते हुए उस पर ‘तथ्यात्मक रूप से गलत और अनुचित’ टिप्पणी करने का आरोप लगाया है।
  • भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग है, जो कि अन्य राज्यों जितना ही महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत ने भविष्य में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) को इस तरह की टिप्पणी करने से बचने की सलाह दी है। 
  • साथ ही भारत ने पाकिस्तान को संदर्भित करते हुए कहा कि यह खेदजनक है कि संगठन स्वयं को एक ऐसे देश द्वारा उपयोग करने की अनुमति दे रहा है, जिसका स्वयं का धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरपंथ व अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर एक स्पष्ट इतिहास रहा है।
    • भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किये जाने के बाद से ही पाकिस्तान ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया है।
    • पाकिस्तान ने बीते एक वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार इस्लामिक देशों के बीच मुस्लिम भावना को भड़काने का प्रयास किया है, हालाँकि पाकिस्तान को इसमें सफलता नहीं मिल सकी है और केवल तुर्की तथा मलेशिया जैसे कुछ चुनिंदा देशों ने ही सार्वजानिक तौर पर भारत की आलोचना की है।
      • मुस्लिम जगत के शीर्ष नेताओं जैसे- सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात आदि ने भारत के प्रति उतना आलोचनात्मक रुख नहीं अपनाया है, जितना कि पाकिस्तान ने उम्मीद की थी।

भारत के नवीनतम कथन का महत्त्व:

  • भारत OIC के दोहरे मानक को तोड़ने में विश्वास करता है, जहाँ वह मानवाधिकारों के नाम पर पाकिस्तान के एजेंडे का समर्थन कर रहा है।
    • ध्यातव्य है कि OIC के कई सदस्य देशों के भारत के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध हैं और वे एक ओर भारत को OIC के बयानों की अनदेखी की सलाह देते हैं, तो दूसरी ओर भारत के विरुद्ध पाकिस्तान द्वारा तैयार किये गए बयानों और प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करते हैं।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर जो बिडेन की जीत के बाद भारत के लिये OIC के बयानों को चुनौती देना तथा उसकी तथ्यात्मक गलतियों को रेखांकित करना और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि जो बिडेन कश्मीर में मानवाधिकारों के मुद्दे पर मज़बूत दृष्टिकोण रखते है और ऐसा बयान जारी कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति काफी जटिल हो जाएगी।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) में भारत को दो वर्ष की अवधि के लिये गैर-स्थायी सदस्य के तौर पर चुना गया है और भारत द्वारा इस अवधि का प्रयोग संभवतः पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को वैश्विक पटल पर लाने हेतु किया जाएगा।

भारत और OIC

  • OIC के विदेश मंत्रियों की 45वीं बैठक के दौरान बांग्लादेश ने यह सुझाव दिया था कि चूँकि भारत में 10 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, इसलिये भारत को भी इस संगठन में बतौर पर्यवेक्षक (Observer) शामिल किया जाना चाहिये, हालाँकि उस समय पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।
    • वर्ष 2019 में OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के रूप में शामिल हुआ था।
      • OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत की उपस्थिति को एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया था, विशेष रूप से उस समय जब पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ रहा था।

OIC द्वारा भारत की नीतियों की आलोचना

  • इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) प्रायः कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है और संगठन द्वारा जम्मू-कश्मीर में कथित भारतीय ‘अत्याचार’ की आलोचना करते हुए कई बयान जारी किये गए हैं।
    • वर्ष 2018 में OIC के महासचिव ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय बलों द्वारा कथित निर्दोष कश्मीरियों की हत्या की कड़ी निंदा की थी।
    • महासचिव ने अपने बयान में ‘प्रदर्शनकारियों पर प्रत्यक्ष गोलीबारी’ को एक ‘आतंकवादी कृत्य’ के रूप में वर्णित किया था और ‘कश्मीर समस्या के उचित और स्थायी समाधान के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भूमिका निभाने का आह्वान किया था।
  • इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और बाबरी मस्जिद विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की भी आलोचना की है।
  • इसके अलावा संगठन ने भारत में ‘बढ़ते इस्लामोफोबिया’ को लेकर भी भारत सरकार की आलोचना की है।

भारत की प्रतिक्रिया:

  • प्रारंभ से ही भारत यह मनाता रहा है कि इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) को  भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है, जिसमें जम्मू-कश्मीर और नागरिकता से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।

OIC के सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध:

  • व्यक्तिगत स्तर पर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के लगभग सभी सदस्यों के साथ भारत के संबंध काफी अच्छे हैं।
  • विशेष रूप से हाल के वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब के साथ संबंधों में काफी सुधार देखा गया है।
    • ज्ञात हो कि वर्ष 2017 में 68वें गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर अबू धाबी (UAE) के क्राउन प्रिंस मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। 
  • OIC में भारत के दो करीबी पड़ोसी देश , बांग्लादेश और मालदीव भी शामिल हैं।
    • भारतीय राजनयिकों का मानना है कि दोनों देश निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि वे कश्मीर के मुद्दे पर भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को जटिल नहीं बनाना चाहते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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