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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कोयला खनन क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश को अनुमति

  • 23 Feb 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में मंत्रिमंडल द्वारा कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम, 2015 और खान एवं खनिज (विकास और नियमन) अधिनियम, 1957 के तहत कोयले की बिक्री के लिये खदानों/ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया को मंज़ूरी दी गई है। 
  • कोयला खनन क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिये खोलने का सरकार का फैसला लंबे समय से अपेक्षित सुधार है।
  • इस निर्णय से कोयले के वाणिज्यिक खनन पर कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited-CIL) का 41 वर्षों से चला आ रहा एकाधिकार खत्म हो जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2014 में अपने आदेश के ज़रिये कोयला खान राष्ट्रीयकरण अधिनिमय, 1973 के तहत 1993 से विभिन्न सरकारी और निजी कंपनियों को दिये गए कोयला खानों और ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर दिया था।
  • पारदर्शिता लाने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये संसद द्वारा मार्च 2015 में कोयला खान विशेष उपबंध विधेयक, 2015 को अधिसूचित किया गया था। इस अधिनियम में कोयले की बिक्री तथा नीलामी प्रक्रिया के लिये आवश्यक व्यवस्थाएँ की गई हैं।

एकाधिकारवादी से प्रतिस्पर्द्धावादी युग की ओर विकास की आवश्यकता क्यों? 

  • पिछले पाँच वर्षों में सार्वजनिक स्वामित्व वाली खानों में उत्पादन में 100 मिलियन टन से अधिक की वृद्धि हुई है, लेकिन यह सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों से हमेशा पीछे ही रहा। । अप्रैल-दिसंबर, 2017 की अवधि के लिये CIL के अस्थायी आँकड़ों के अनुसार सरकार द्वारा निर्धारित उत्पादन लक्ष्य में 406.5 मिलियन टन (6%) तक की कमी रही। 
  • जीवाश्म ईंधन के मामलें में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद CIL के खराब प्रदर्शन के कारण ही देश को बड़ी मात्रा में कोयला आयात करना पड़ रहा है।
  • पिछले साल नवंबर में भारतीय कैप्टिव पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने अपने संयंत्रों में कोयले की कमी के बारे में CIL को एक पत्र लिखा था। ये कंपनियाँ अपने स्वयं के इस्तेमाल के लिये बिजली का उत्पादन करती हैं। किंतु CIL से इनको कोयले की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने के कारण इनकी महंगे आयातों पर निर्भरता बढ़ रही थी।    
  • उसी महीने भारतीय एल्यूमिनियम एसोसिएशन ने भी प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था जिसमें यह कहा गया था कि कोयले की कमी की वज़ह से एल्युमीनियम क्षेत्र में 1.2 लाख करोड़ रुपए के निवेश पर लगभग 70,000 करोड़ रुपए का कर्ज़ है और लगभग 7.5 लाख लोगों का रोज़गार काफी जोखिमपूर्ण स्थिति में है।
  • पिछले साल दिसंबर में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने गैर-कोकिंग कोल की आपूर्ति के लिये बिजली उत्पादकों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौतों में अनुचित और भेदभावपूर्ण शर्तों को लागू करने पर CIL को दंडित किया था।
  • CIL के एकाधिकार का प्रभाव देश में उत्पादित कोयले की गुणवत्ता पर भी परिलक्षित हो रहा है। भारतीय कोयले में राख की मात्रा (Ash Content) औसतन 45% के आसपास है, जो कि कुशल और दक्ष बिजली उत्पादन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक 25-30% से काफी अधिक है ।
  • CIL से ख़रीदे जाने वाले कोयले में कंकड़-पत्थर के कारण देश के तापीय विद्युत संयंत्रों की दक्षता भी कमज़ोर हुई है। हालाँकि भारतीय कोयले की खराब गुणवत्ता का मुख्य कारण भूवैज्ञानिक कारक हैं किंतु देश के प्रमुख खननकर्त्ता को भी आंशिक ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना ही चाहिये। 

इस संशोधन के अपेक्षित लाभ 

  • यह प्रक्रिया पारदर्शिता लाने के साथ ही कारोबारी सुगमता को उच्च प्राथमिकता देती है और यह सुनिश्चित करती है कि प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल राष्ट्रीय विकास के लिये हो।
  • नीलामी प्रक्रिया नीचे से ऊपर के क्रम में होगी जिसमें बोली के मानक रूपए और टन के मूल्य प्रस्ताव के रूप में होंगे, जिसका भुगतान कोयले के वास्तविक उत्पादन के आधार पर राज्य सरकार को किया जाएगा।
  • अत: इस प्रक्रिया से उन्हें अधिक राजस्व की प्राप्ति होगी, जिसका इस्तेमाल वे अपने पिछड़े क्षेत्रों और वहाँ के लोगों तथा जनजातियों के विकास के लिये कर सकेंगे। देश के पूर्वी हिस्से के राज्य इससे विशेष रूप से लाभान्वित होंगे।
  • कोयला खानों से निकाले गए कोयले की बिक्री और उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। इस सुधार के चलते एकाधिकार से प्रतिस्पर्द्धा के युग की ओर बढ़ते हुए कोयला क्षेत्र में दक्षता आने की उम्मीद है। यह कोयला क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाएगा और यथासंभव बेहतरीन प्रौद्योगिकी का रास्ता खोलगा।
  • ज़्यादा निवेश होने से कोयला क्षेत्र, विशेषकर खनन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा होंगे, जिससे इन क्षेत्रों के आर्थिक विकास पर असर पड़ेगा।
  • इससे ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी सहायता मिलेगी क्योंकि भारत में 70% बिजली का उत्पादन ताप विद्युत संयंत्रों में होता है।
  • यह सुधार कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ ही कोयले के आवंटन को जवाबदेह बनाएगा तथा किफायती दामों पर कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा जिससे उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सकेगी।

निष्कर्ष 

  • वाणिज्यिक कोयला खनन को निजी क्षेत्र के लिये खोला जाना, 1973 में इस क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के बाद सबसे महत्वाकांक्षी सुधार है।
  • कोयले के खनन में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना इस क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं के समाधान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है किंतु इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि निजी क्षेत्र कोयले के खनन की प्रक्रिया में आवश्यक वन और पर्यावरण नियमों के अनुपालन में पारदर्शिता बनाए रखें। 
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