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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी

  • 16 Nov 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी

मेन्स के लिये

RCEP का महत्त्व और वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

लगभग एक दशक की लंबी वार्ता के पश्चात् इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की 15 अर्थव्यवस्थाओं ने 37वें आसियान शिखर सम्मेलन के मौके पर अंततः क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के रूप में विश्व के सबसे बड़े मुक्त व्यापार ब्लॉक का गठन किया।

प्रमुख बिंदु

  • इसी के साथ ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में भारत के शामिल होने की चर्चा पुनः शुरू हो गई है, जबकि कुछ समय पूर्व भारत ने इस मुक्त व्यापार ब्लॉक में शामिल होने से इनकार कर दिया था। 

क्या है क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी?

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसमें आसियान (ASEAN) के दस सदस्य देश तथा पाँच अन्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) शामिल हैं।
    • ध्यातव्य है कि यह समझौता इस लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं है। अमेरिका वर्ष 2017 में ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से भी बाहर हो गया था।
  • आसियान के दस सदस्य देशों के अलावा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में मुख्यतः वे देश शामिल हैं जिन्होंने आसियान देशों के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • पृष्ठभूमि: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के रूप में एक व्यापक मुक्त व्यापार ब्लॉक बनाने को लेकर वार्ता की शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी और अब लगभग 8 वर्ष बाद इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया है।
    • भारत शुरुआत से ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के लिये होने वाली वार्ताओं का हिस्सा रहा है किंतु वर्ष 2019 में भारत ने कुछ अनसुलझे मुद्दों और चीन से संबंधित चिंताओं का हवाला देते हुए इसमें शामिल न होने का निर्णय लिया था।

क्यों महत्त्वपूर्ण है RCEP?

  • कई विश्लेषण मानते हैं कि व्यापारिक दृष्टिकोण से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) का विशाल आकार इसे वैश्विक स्तर पर काफी महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • ध्यातव्य है कि अपने वर्तमान स्वरूप में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के अंतर्गत विश्व की कुल आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा कवर किया गया है। वहीं यह मुक्त व्यापार ब्लॉक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 29% हिस्सा कवर करता है।
  • एक अनुमान के मुताबिक, चीन द्वारा समर्थित यह समूह अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौते और यूरोपीय संघ (EU) दोनों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते के रूप में उभर सकता है।
  • उम्मीद के अनुसार, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) आगामी 20 वर्ष के भीतर आयात पर लगने वाले शुल्क को पूर्णतः समाप्त कर देगा। इस समझौते में बौद्धिक संपदा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं, ई-कॉमर्स और पेशेवर सेवाओं से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं।
  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के तहत, सभी सदस्य राष्ट्रों के साथ एक समान व्यवहार किया जाएगा।
  • इस समझौते के कारण वर्ष 2030 तक वैश्विक आय में 186 बिलियन डॉलर तक की बढ़ोतरी हो सकती है, साथ ही यह समझौता अपने सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था में 0.2% की बढ़ोतरी कर सकता है।
    • हालाँकि, कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि इस सौदे से चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को अन्य सदस्य देशों की तुलना में अधिक लाभ होने की संभावना है।

चीन के लिये इस समझौते के निहितार्थ

  • COVID-19 महामारी के पश्चात् चीनी अर्थव्यवस्था को गति देने में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • यह समझौता चीन को व्यापक पैमाने पर जापान तथा दक्षिण कोरिया के बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करने में मदद करेगा। उल्लेखनीय है कि तीनों देशों ने अभी तक आपस में कोई भी मुक्त व्यापार समझौता नहीं किया है।
  • यद्यपि चीन ने पहले से ही कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं किंतु यह पहली बार है जब उसने किसी क्षेत्रीय बहुपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

भारत का पक्ष

  • गौरतलब है कि भारत वर्ष 2019 में ही कुछ असहमतियों के कारण इस समझौते से बाहर हो गया था, हालाँकि मौजूदा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर सहमति व्यक्त करते हुए सभी सदस्य देशों ने सामूहिक रूप से कहा है कि भारत भविष्य में कभी भी इस समझौते में शामिल होने के लिये आवेदन कर सकता है।
    • इस समझौते को लेकर भारत की प्रमुख चिंताओं में से एक आयात में वृद्धि के विरुद्ध अपर्याप्त संरक्षण भी था, क्योंकि भारतीय उद्योगों को भय था कि इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से भारतीय बाज़ारों में चीन के सस्ते उत्पादों बाढ़ आ जाएगी।
  • हाल ही में आयोजित हुए 17वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला किंतु इस दौरान RCEP को लेकर भारत ने कोई चर्चा नहीं की, सभवतः इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि भारत चीन के साथ अपनी सीमा पर तनाव के कारण चीन समर्थित किसी समूह में शामिल नहीं होना चाह रहा है।

आगे की राह

  • एक व्यापक मुक्त व्यापार ब्लॉक के रूप में यह एक ऐतिहासिक व्यापारिक पहल है, जिसके कारण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के बीच वाणिज्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलेगी।
  • यह देखते हुए कि इस समझौते में शामिल होने के लिये भारत के पास अभी भी कई अवसर हैं, भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) को लेकर अपने हितों को सभी सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये, क्योंकि भारत ने पहले ही 12 देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधी समझौते किये हुए हैं।

स्रोत: द हिंदू

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