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काइमेरा (Chimera) रिसर्च : बंदर के भ्रूण में मानव कोशिकाएँ

  • 22 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका में स्थित सॉल्क जैविक अध्ययन संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने एक शोध में कहा है कि काइमेरा रिसर्च (Chimera Research) द्वारा पहली बार मानव कोशिकाओं को बंदर के भ्रूण में विकसित किया गया है।

 प्रमुख बिंदु:

रिसर्च के बारे में:

  • मैकाक बंदरों के भ्रूण में मानव कोशिकाओं को एकीकृत करके एक काइमेरिक उपकरण बनाया गया है।
    • काइमेरस ऐसे जीव हैं जो दो अलग-अलग प्रजातियों की कोशिकाओं से बने होते हैं , जैसे : मानव और बंदर।
    • उदाहरण के लिये यदि किसी हाइब्रिड भ्रूण को बंदर के गर्भ में रखा जाए तो यह संभवतः एक नए प्रकार के जीव में विकसित हो सकता है (हालाँकि यह इस अध्ययन का उद्देश्य नहीं है)।

अनुसंधान का उद्देश्य: 

  • मानव विकास और औषधि मूल्यांकन को समझना:
    • दो अलग-अलग प्रजातियों की कोशिकाओं को एक साथ विकसित करने की क्षमता वैज्ञानिकों को अनुसंधान और चिकित्सा के लिये एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करती है, जो प्रारंभिक मानव विकास, रोगों की पहचान और प्रगति तथा समयावधि के बारे में वर्तमान में समझ को विकसित करती है।
    • यह दवा मूल्यांकन के साथ-साथ अंग प्रत्यारोपण की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पहचान कर सकता है।
  •  रोगों के अध्ययन के लिये नया मंच प्रदान करता है:
    • काइमेरिक उपकरण यह अध्ययन करने के लिये एक नया मंच प्रदान करते हैं कि  बीमारियाँ कैसे उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिये एक विशेष जीन जो एक निश्चित प्रकार के कैंसर से जुड़ा होता है, को मानव कोशिका में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
    • एक काइमेरिक मॉडल में अभियांत्रिक कोशिकाओं का उपयोग करके रोग की उत्पत्ति और विकास संबंधी जानकारी का अध्ययन करने में मदद प्राप्त की सकती है, जो उन्हें पशु मॉडल से प्राप्त परिणामों की तुलना में रोगों के बारे में अधिक जानकारी प्रदान कर सकता है।

मैकाक को चुनने का कारण:

  • 2017 के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मानव कोशिकाओं को सूअर के ऊतकों में एकीकृत किया। क्योंकि सूअर, जिसके अंग और शारीरिक ढाँचा मनुष्यों के समान है, वे उन अंगों को बनाने में मदद कर सकते हैं जिन्हें अंततः मनुष्यों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
  • चूँकि सूअर और मानव (लगभग 90 मिलियन वर्ष) के बीच विकासवादी चरण में अंतर के कारण प्रयोग विफल हो गया, शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी प्रजाति को चुनने का फैसला किया, जो मानव से अधिक निकटता से संबंधित हो, इसलिये मैकाक बंदरों को चुना गया था।

चिंताएँ:

  • अप्राकृतिक और अस्तित्व का मुद्दा:
    • कुछ दुर्लभ हाइब्रिड जानवर स्वाभाविक रूप से मौजूद हैं जो संभवतः विभिन्न प्रजातियों के जानवरों के बीच अनचाही क्रॉस ब्रीडिंग का परिणाम थे ।
      • 2014 में जीप (Geep) (बकरी + भेड़) नामक एक दुर्लभ हाइब्रिड जानवर का जन्म एक आयरिश नस्ल में हुआ था। जीप एक हाइब्रिड प्रजाति थी जो बकरी और भेड़ के बीच प्रजनन क्रिया द्वारा पैदा हुई थी।
      • सामान्यतौर पर विभिन्न प्रजातियाँ क्रॉस-ब्रीड नहीं करती हैं और यदि वे ऐसा करती हैं, तो उनकी संतान लंबे समय तक जीवित नहीं रहती है तथा बाँझपन का खतरा उत्पन्न होता है।
  • बाँझपन:
    • खच्चर एक हाइब्रिड जानवर है जो नर गधे (जैक) और मादा घोड़े (घोड़ी) के बीच क्रॉस-ब्रीडिंग द्वारा उत्पन्न होता है।
      • अमेरिकी खच्चर संग्रहालय के अनुसार, ये हाइब्रिड जानवर मानव द्वारा किये गए कृत्रिम प्रजनन का परिणाम हैं जिसका प्रयोग सर्वप्रथम प्राचीन काल में किया गया था।
    • जबकि खच्चर  एक लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं, वे बंध्य होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे प्रजनन द्वारा वंश वृद्धि नहीं कर सकते हैं।
  • मानवीय लाभ के लिये जानवरों के साथ अन्याय
    • यद्यपि शोधकर्त्ताओं ने यह स्पष्ट किया है कि मैकाक बंदरों के साथ बनाए गए काइमेरस का उपयोग मानव अंगों के लिये नहीं किया जाएगा, किंतु इसके बावजूद कई विशेषज्ञों ने यह संदेह ज़ाहिर किया है कि ‘काइमेरा रिसर्च’ का एक उद्देश्य उन अंगों का निर्माण करना है, जिन्हें मनुष्यों में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा।
    • इस तरह यह कहा जा सकता है कि ‘काइमेरा रिसर्च’ में जानवरों के साथ होने वाले अन्याय को बढ़ावा देने की क्षमता है और यह मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जानवरों के उपयोग की अवधारणा को और अधिक मज़बूती प्रदान करेगा।
      • वर्ष 2018 में चीन के एक वैज्ञानिक ने जीन एडिटिंग तकनीक CRISPR (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पालिंड्रोमिक रिपीट) का उपयोग करके आनुवंशिक रूप से संशोधित शिशुओं के जन्म का दावा किया था, हालाँकि चीन में उस वैज्ञानिक को अवैध चिकित्सा पद्धति के प्रयोग के लिये 3 मिलियन युआन (लगभग 3 करोड़ रुपए) के जुर्माने के साथ तीन वर्ष के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई थी।

हाइब्रिड जानवरों पर भारतीय कानून:

  • भारत में वर्ष 1985 से ही हाइब्रिड जानवरों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) और उत्पादों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित ‘खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण नियम, 1989’ के तहत विनियमित किया जाता है।
    • ये नियम पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किये जाते हैं।
    • वर्ष 1989 के इन नियमों के साथ अनुसंधान, बायोलॉजिक्स, सीमित क्षेत्र परीक्षण, खाद्य सुरक्षा मूल्यांकन और पर्यावरण जोखिम मूल्यांकन आदि पर दिशा-निर्देशों की एक शृंखला भी जारी की गई है।

आगे की राह

  • ‘काइमेरा रिसर्च’ जैसे आनुवंशिक संशोधन अध्ययन वैज्ञानिकों के बीच प्रमुख बहस का विषय बने हुए हैं। भारत जैसे विकासशील देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें भी विवादास्पद विषय हैं।
  • मानव में आनुवंशिक कोड के साथ छेड़छाड़ करना अथवा उसमें परिवर्तन करना और भी अधिक विवादास्पद विषय है, क्योंकि कई जानकार मानते हैं कि इसके परिणामस्वरूप किसी प्रतिकूल परिवर्तन को भविष्य की पीढ़ियों को स्थानांतरित किया जा सकता है, जो कि एक पूरी पीढ़ी के लिये हानिकारक होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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