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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट्स’ हेतु बनाए गए सख्त मानकों से राहत

  • 24 Oct 2017
  • 6 min read

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नए मलजल उपचार संयंत्रों (sewage treatment plants -STP) के संबंध में पुराने मानकों से कुछ छूट प्रदान की है। इन संयंत्रों में गंगा के अत्यधिक प्रदूषित इलाकों में लगाया जाने वाले संयंत्रों को भी शामिल किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2015 में सरकार ने नदी की सफाई के लिये 20,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, ताकि सीवेज़ उपचार संयंत्रों के लिये बनाए गए उच्च मानकों का पालन किया जा सके।  
  • इन मापदंडों के तहत सरकार को यह सुनिश्चित करना था कि उपचारित जल में जैवरासायनिक ऑक्सीजन की मांग (biochemical oxygen demand -Bod) 10 mg/litre से अधिक नहीं है, जबकि मौजूदा कानून में जैव-रासायनिक मांग की न्यूनतम सीमा 30 mg/litre निर्धारित की गई है।  
  • हालाँकि इस माह केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना जारी कर इस 10 mg/litre  के लक्ष्य से किनारा कर लिया गया है। 
  • मंत्रालय का कहना है कि जून 2019 के बाद बनने वाले मलजल उपचार संयंत्रों को 30 mg/litre  जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग को ही प्रमाणित करना होगा, परन्तु बड़े राज्यों की राजधानियाँ और महानगर इस दायरे से बाहर होंगे। 
  • ये प्रस्तावित मलजल उपचार संयंत्र हरिद्वार, कानपुर और इलाहबाद के नदी तटीय के सीवेज़ का उपचार करेंगे। दरअसल, राज्यों की राजधानियों में लगाए जाने वाले नए सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट्स के लिये जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग की सीमा 20 mg/litre निर्धारित की गई है।   
  • अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दमन और दीव, लक्षद्वीप और दादरा एवं नगर हवेली को भी मलजल उपचार संयंत्रों के लिये बनाए गए उच्च मानदंडों का सख्ती से पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
  • वस्तुतः 10 mg/litre का मापदंड अव्यवहारिक था और इसके लिये आधुनिक तकनीक की आवश्यकता होती,  जिसकी लागत राज्य वहन नहीं कर सकते थे।   भारत इस प्रकार की गुणवत्ता को प्राप्त करने से अभी कोसों दूर हैं और यह एक चरणबद्ध तरीके से ही इसका समाधान कर सकता है।  

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • यह एक सांविधिक संगठन है, जिसका गठन जल (रोकथाम और प्रदूषण पर नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितम्बर 1974 में किया गया था।  इसके पश्चात् इसे वायु (रोकथाम और प्रदूषण का नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत शक्तियाँ और कार्य सौंपें गए। 
  • यह बोर्ड एक ‘फील्ड फार्मेशन’ (field formation) के रूप में कार्य करता है और पर्यावरण(संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ उपलब्ध कराता है। 
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य

♦ जल प्रदूषण पर नियंत्रण कर राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों की नदियों और कुओं में स्वच्छता को बढ़ावा देना। 
♦ देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम व उसका नियंत्रण करना । 

  • वायु की गुणवत्ता की जाँच, वायु गुणवत्ता प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।  ‘राष्ट्रीय वायु जाँच कार्यक्रम’(National Air Monitoring Programme-NAMP)  की शुरुआत ही वर्तमान वायु गुणवत्ता स्थिति और रुझानों का निर्धारण तथा वायु गुणवत्ता मानकों  को प्राप्त करने के लिये उद्योगों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण और उसका नियमन करने के उद्देश्य से की गई थी।  यह उद्योगों को स्थापित करने तथा नगरों की योजना बनाने के लिये आवश्यक वायु गुणवत्ता आँकड़ों को भी उपलब्ध कराता है। 
  • इसके अतिरिक्त सी.पी.सी.बी. के नई दिल्ली स्थित आई.टी.ओ. में देश का एक स्वतः निगरानी स्टेशन भी कार्यरत् है।  इस स्टेशन पर प्रतिदिन रिजायरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (Resirable Suspended Particulate Matter-RSPM), कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, सल्फरडाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (Suspended Particulate Matter-SPM) की जाँच की जाती है।  यह सूचना नई दिल्ली के आई.टी.ओ के वायु गुणवत्ता पैमाने पर प्रत्येक सप्ताह अपडेट होती है।
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