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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम

  • 01 Mar 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारत और पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) और अन्य सभी क्षेत्रों के संबंध में वर्ष 2003 के संघर्ष विराम समझौते का पालन करने के लिये सहमत हुए हैं।

  • यह समझौता जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) तथा अन्य क्षेत्रों में क्रॉस फायर वायलेशन की 5000 से अधिक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है, वर्ष 2020 में ऐसे 46 प्राणघातक हमले हुए। 
  • यह निर्णय दो ‘डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस’ (DGsMO) के बीच वार्ता के बाद लिया गया।

Gilgit-Baltistan

प्रमुख बिंदु:

2003 का सीज़फायर समझौता:

  • कारगिल युद्ध (1999) के चार वर्ष बाद नवंबर 2003 में मूल युद्ध विराम समझौता हुआ था।
  • वर्ष 2003 का युद्धविराम समझौता एक मील का पत्थर था क्योंकि इसने वर्ष 2006 तक नियंत्रण रेखा पर शांति कायम की। वर्ष 2003 और 2006 के बीच भारत और पाकिस्तान के जवानों द्वारा एक भी गोली नहीं चलाई गई थी।
  • लेकिन वर्ष 2006 के बाद से संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ी है।

बैक चैनल डिप्लोमेसी के माध्यम से वार्ता:

  • कई संकेतों से पता चलता है कि बैक चैनल डिप्लोमेसी के माध्यम से वार्ता को आगे बढ़ाया गया और इसने दोनों पक्षों के बीच संयुक्त बयान देने में सहायता की, इसकी शुरुआत फरवरी 2021 में पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा कश्मीर मुद्दे को "शांतिपूर्वक" हल करने के प्रस्ताव रखे जाने के साथ हुई।
  • पाकिस्तान ने कोविड -19 को नियंत्रित करने के लिये दक्षिण एशियाई स्तर पर सहयोग के लिये भारत के पाँच प्रस्तावों का समर्थन किया।
  • हाल ही में भारत ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को श्रीलंका दौरे के लिये अपने हवाई क्षेत्र के उपयोग की अनुमति दी, जहाँ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने श्रीलंका के लिये 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की नई क्रेडिट लाइन की घोषणा की है।
  • हालाँकि बैक चैनल वार्ताओं के इन स्पष्ट संकेतों के दौरान दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी स्थितियों को बनाए रखा है।
    • नवंबर 2020 में पाकिस्तान सरकार द्वारा गिलगित बाल्टिस्तान को अनंतिम प्रांतीय दर्जा प्रदान किये जाने के बाद भारत ने गिलगित बाल्टिस्तान को भारत का एक अभिन्न अंग बताया था।

वर्ष 2003 के समझौते के संबंध में नवीनतम पुनः प्रतिबद्धता का महत्त्व:

  • यह समझौता कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर सुरक्षा स्थिति के सुधार में योगदान दे सकता है।
  • भारत प्रायः यह आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तान द्वारा कई बार संघर्ष विराम के उल्लंघन का उद्देश्य आतंकवादियों को घुसपैठ कराने के लिये कवर प्रदान करना होता था। अब घुसपैठ की कोशिशें कम हो सकती हैं तथा सीमा पार आतंकवाद को रोकने संबंधी भारत की प्रमुख मांग पर भी कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया विकास के बिंदु:

  • दोनों पक्षों के संबंधों का चरम स्तर पिछली बार वर्ष 2015 में क्रिसमस के दिन देखा गया था, जब भारतीय प्रधानमंत्री एक अघोषित यात्रा के तहत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलने लाहौर गए।
  • 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट एयरबेस पर हमले के कारण दोनों पक्षों के बीच संवाद जल्द ही टूट गया, जिसके बाद उरी में एक चौकी पर हमला किया गया और भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के साथ प्रतिक्रिया दी।
  • 14 फरवरी, 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और भारत द्वारा बालाकोट ऑपरेशन के कारण द्विपक्षीय संबंधों में लगातार गिरावट आती रही।

नियंत्रण रेखा:

( Line of Control):

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा कश्मीर युद्ध के बाद घोषित वर्ष 1948 की संघर्ष विराम रेखा ही बाद में नियंत्रण रेखा के रूप में सामने आई।
  • दोनों देशों के बीच वर्ष 1972 के शिमला समझौते के बाद इसे LoC के रूप में नामित किया गया।
  • LoC का सीमांकन दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर (प्वाइंट NJ9842) तक किया गया है।
  • LoC को दोनों सेनाओं के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) द्वारा हस्ताक्षरित एक नक्शे पर चित्रित किया गया है और यह एक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कानूनी समझौता है।

बैक चैनल डिप्लोमेसी:

  • ‘बैक चैनल डिप्लोमेसी’ आधिकारिक नौकरशाही संरचनाओं और प्रारूपों के बाहर अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने तथा विदेश नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये राज्यों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली राजनयिक रणनीतियों में से एक है।
  • इसका एक अन्य उदेश्य सूचना की गोपनीयता सुनिश्चित करने और उन्हें लक्ष्य प्राप्त करने तक आधिकारिक स्रोतों और मीडिया की पहुँच से दूर रखना है।

आगे की राह:

  • विश्वास निर्माण उपायों (CBM) को ‘ट्रस्ट डेफिसिट’ कम करने के लिये उपयोग में लाया जाना चाहिये, लेकिन विवादों के समाधान के विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये।
  • साझा हितों को विकसित करने के लिये आर्थिक सहयोग और व्यापार की सुविधा होनी चाहिये। आतंकवाद तथा गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की समस्याओं को संस्थागत तंत्र के माध्यम से संयुक्त रूप से संबोधित किये जाने की आवश्यकता है।
  • यदि युद्धविराम को लेकर नया संकल्प लाया जाता है तो दोनों देशों के बीच माहौल और बेहतर बनेगा तथा कई अनसुलझे मुद्दों का समाधान किया जाएगा, जिसमें दोनों तरफ पूर्ण शक्ति प्राप्त राजनयिक मिशनों की बहाली भी शामिल है।

स्रोत- द हिंदू

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