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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्वायत्तता का मुखौटा

  • 31 Jul 2017
  • 4 min read

संदर्भ
बहुत से सम्पादकीय और विचार लेखों में इस बात को उजागर किया गया है कि पिछले कुछ समय से प्रसार भारती निगम (Prasar Bharati Corporation) न तो पूर्णतः लाभ की स्थित में है और न ही हानि| वस्तुतः इसका कारण निगम के भीतर अस्तित्व के अजीबो-गरीब संकट को माना जा रहा है|

  • ध्यातव्य है कि प्रसार भारती निगम को संसद द्वारा पारित किये गए एक अधिनियम के आधार पर ‘स्वायत्त निगम’ (autonomous corporation)  कहा जाता है|
  • परन्तु, यह केवल नाम से ही स्वायत्त निगम है, क्योंकि इसका कोई भी कर्मचारी (जिनकी संख्या लगभग 27,000 है) अथवा सरकार इसके सरकारी टैग को हटाने की इच्छा व्यक्त नहीं कर रहा है| जिसका प्रभाव इसकी दिनोंदिन कम होती महत्ता के रूप में देखा जा सकता है|
  • हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह पाया गया कि निगम द्वारा अपने समाचार विभागों के लिये एक आदेश जारी करके उन्हें प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया और यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया समाचार सेवाओं के लिये ली गई दीर्घकालिक सदस्यता की समाप्ति होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित हिंदुस्तान समाचार न्यूज़ एजेंसी की सदस्यता लेने को कहा गया|
  • इस आदेश के संबंध में समाचार विभागों द्वारा इनकार किये जाने के कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं|

निगम की स्वायत्तता का प्रश्न

  • इस मुद्दे के संबंध में निगम के कर्मचारियों से वार्ता करने के पश्चात् यह बात सामने आई है कि वे प्रसार भारती के साथ निगम का टैग नहीं चाहते हैं, क्योंकि इससे उन्हें कोई विशेष  लाभ प्राप्त नहीं होता है|
  • वस्तुतः इसका कारण यह है कि एक सरकारी टैग से कम - से - कम सरकारी सुविधाओं की गुंजाइश तो रहती है| परन्तु किसी निगम के अंतर्गत ऐसा कुछ भी नहीं होता है| 
  • ध्यातव्य है कि प्रसार भारती को वर्ष 1997 में निगम का दर्ज़ा प्राप्त हुआ था|
  • तब से इसके लिये आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के समान प्रसिद्धि प्राप्त कर पाना एक अत्यंत मुश्किल कार्य रहा है|

वर्तमान  स्थिति

  • इस समस्त प्रकरण में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार को वाकई सरकारी स्वामित्व वाले किसी चैनल की आवश्यकता है| चूँकि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India - TRAI) का यह कहना है कि राज्य सरकारों के स्वयं के चैनल नहीं हो सकते हैं क्योंकि इससे कई प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न होने की संभावनाएँ हैं|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सरकार में रहते हुए कांग्रेस और जनता दल दोनों को स्वायत्त निगम के दर्ज़े को कायम रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था क्योंकि वे नहीं जानते थे कि इसकी सीमा क्या होनी चाहिये|
  • दोनों दलों की सरकारों ने वरिष्ठ भारतीय सूचना अधिकारियों की नियुक्ति समाचारों और अन्य सेवाओं की निगरानी करने के लिये की, जबकि प्रसार भारती को पहले ही स्वायत्त घोषित किया जा चुका था| विदित हो कि इसके सी.ई.ओ. भी एक प्रशासनिक अधिकारी ही हैं|
  • स्पष्ट है कि यह समय निजी अथवा सरकारी के विवाद में पड़ने का नहीं है बल्कि यह स्वायत्तता के दिखावे की समाप्ति करने तथा आधिकारिक प्रसारक की ख्याति को बचाए रखने का समय है| 
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