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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राज्य सभा ने पारित किया एडमिरैलिटी विधेयक

  • 25 Jul 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों ?

  • विदित हो कि राज्य सभा द्वारा एडमिरैलिटी (न्‍याय क्षेत्र एवं सामुद्रिक दावों के निपटान) विधेयक, 2016 पारित कर दिया गया है। इस विधेयक का उद्देश्‍य अदालतों के एडमिरैलिटी न्‍याय क्षेत्र, सामुद्रिक दावों की एडमिरैलिटी प्रक्रियाओं, पोतों की गिरफ्तारी एवं संबंधित मुद्दों से जुड़े वर्तमान कानूनों को मज़बूत बनाने के लिये एक कानूनी संरचना की स्‍थापना करना है।
  • अब कानून की शक्ल लेते ही यह विधेयक ऐसे पुराने कानूनों को विस्थापित कर देगा, जो कारगर प्रशासन की राह में बाधा उत्‍पन्‍न कर रहे हैं।
  • यह विधेयक भारत के तटीय राज्‍यों में स्थित उच्‍च न्‍यायालयों को एडमिरैलिटी न्‍याय क्षेत्र प्रदान करता है और यह क्षेत्राधिकार प्रादेशिक जल क्षेत्रों तक फैला है। 

क्या परिवर्तन लाएगा एडमिरैलिटी विधेयक 2016 ?

  • एडमिरैलिटी विधेयक अदालतों के एडमिरैलिटी क्षेत्राधिकारों, समुद्रतटीय दावों पर अदालती कार्यवाही, जहाज़ों की ज़ब्ती और अन्य संबंधित मुद्दों से जुड़े मौजूदा कानूनों को मज़बूती प्रदान करेगा।
  • इस विधेयक के माध्यम से नागरिक मामलों में नौवहन विभाग के क्षेत्राधिकार के पाँच पुराने कानून भी निरस्त किये जाएंगे। गौरतलब है कि यह कानून ब्रिटिश काल से लागू हैं।  निरस्त किये जाने वाले क़ानून हैं:

1. एडमिरैलिटी कोर्ट अधिनियम, 1840
2. एडमिरैलिटी कोर्ट अधिनियम, 1861
3. कॉलोनियल कोर्ट्स  ऑफ एडमिरैलिटी अधिनियम, 1890 
4.  कॉलोनियल कोर्ट्स ऑफ एडमिरैलिटी (इंडिया) अधिनियम, 1891 
5. बंबई, कलकत्ता और मद्रास उच्च न्यायालयों के एडमिरैलिटी क्षेत्राधिकारों पर लागू लेटर्स पेटेंट प्रावधान, 1865 

एडमिरैलिटी विधेयक, 2016 की मुख्य विशेषताएँ

  • एडमिरैलिटी विधेयक 2016 भारत के तटवर्ती राज्यों के उच्च न्यायालयों को एडमिरैलिटी क्षेत्राधिकार प्रदान करता है और इस क्षेत्राधिकार का विस्तार संबंधित राज्य की समुद्री सीमा तक है। केंद्र सरकार अधिसूचना के माध्यम से इस क्षेत्राधिकार में विस्तार कर सकती है।
  • विदित हो कि एडमिरैलिटी क्षेत्राधिकार अब तक बाम्बे, कलकत्ता और मद्रास उच्च न्यायालयों तक ही सीमित था लेकिन इस विधेयक के कानून बनते ही किसी राज्य के एडमिरैलिटी से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई उसी राज्य का उच्च न्यायालय करेगा। 
  • एडमिरैलिटी विधेयक सभी समुद्री जहाज़ों पर लागू होगा चाहे जहाज़ के मालिक का आवास/ निवास चाहे कहीं भी हो। अंतर्देशीय निर्माणाधीन जहाज़ इसके दायरे में नहीं लिये गए हैं, लेकिन आवश्यकता महसूस होते ही केंद्र सरकार अधिसूचना जारी करके इनको भी इस दायरे में ला सकती है।
  • यह विधेयक युद्धपोत एवं नौसेना बेड़े के सहायक जहाज़ और गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये प्रयोग किये जाने वाले जहाज़ों पर लागू नहीं है। समुद्री दावों के मामलों में सुरक्षा कारणों के मद्देनज़र निश्चित परिस्थितियों में जहाज़ को ज़ब्त भी किया जा सकता है।
  • किसी जहाज़ पर चुनिंदा समुद्री दावों के संबंध में दायित्य का हस्तांतरण उसके नए मालिक को निर्धारित समय सीमा के भीतर समुद्री नियमों के तहत किया जाएगा। साथ ही जिन पहलुओं को इस विधेयक में शामिल नहीं किया गया है, उन पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 ही लागू रहेगी।

निष्कर्ष
भारत, समुद्री व्यापार की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्र है और भारत का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार  समुद्री परिवहन के माध्यम से होता है। हालाँकि, वर्तमान सांविधिक रूपरेखा के तहत, भारतीय अदालतों की एडमिरैलिटी अधिकार क्षेत्र का निर्धारण ब्रिटिश युग में लागू कानूनों के माध्यम से हो रहा है। पाँच एडमिरैलिटी विधियों को निरस्त करना और अप्रचलित हो चुके कानूनों  में परिवर्तन लाकर उन्हें व्यवहारपरक बनाया जाना, कुशल प्रशासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

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