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भूजल में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा पर कार्य योजना

  • 10 Mar 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों?

भारत सरकार के केन्‍द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा बेसिन में आर्सेनिक की समस्‍या को देखते हुए एक समग्र आंदोलन चलाए जाने की ज़रूरत बताई है। विदित हो कि हाल ही में केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की ओर से ‘गंगा बेसिन के भू जल में आर्सेनिक की समस्या एवं निराकरण’ विषय पर कार्याशाला आयोजित की गई है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है इस कार्यशाला का आयोजन?

गौरतलब है कि भू जल में आर्सेनिक की समस्‍या से निपटने के लिये इस कार्यशाला की रिपोर्ट आने के बाद मंत्रालय एक व्‍यापक कार्य योजना तैयार करेगा जिसमें राज्‍य सरकारों एवं गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग लिया जाएगा। मंत्रालय का विचार है कि विकास में जनभागीदारी के महत्त्व को देखते हुए भू जल में आर्सेनिक एवं अन्‍य प्रदूषण से निपटने के लिये जनआंदोलन भी खड़ा किया जाए।

क्या है आर्सेनिक?

आर्सेनिक एक प्राकृतिक तत्त्व है जिसकी परमाणु संख्या 33 है और परमाणु भार 74.92 है। यह एक ऐसा उपधातु है जिसमें धातु एवं अधातु दोनों के गुण होते हैं। यह प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले तत्त्वों में से एक है। आर्सेनिक युक्त खनिज (धातुओं के आर्सेनाइड, सल्फाआर्सेनाइड/आर्सेनोपायराइट आदि) प्रायः अघुलनशील होते हैं तथा ये सामान्यतः विषैले नहीं होते हैं परन्तु भू जल में आर्सेनिक घुलित रूप में रहता और विषैला होता है।

जल में कैसे मिलता है आर्सेनिक?

दरअसल, भू जल में आर्सेनिक आने की क्रिया प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों ही होती हैं। रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान पृथ्वी की ऊपरी पर्त के निक्षेपों में उपस्थित आर्सेनिक युक्त खनिजों से निकल कर, आर्सेनिक भू जल में घुल जाता है और जल को विषैला बना देता है। विभिन्न शोधों के अनुसार धरती के निक्षेपों में उपस्थित आर्सेनोपायराइट से निकलकर आर्सेनिक भूजल में मिल जाता है। खनन कार्यों, कीटनाशक दवाओं, उर्वरकों, पेट्रोल एवं कोयले इत्यादि के जलने के कारण अप्राकृतिक रूप से आर्सेनिक जल में जा मिलता है।

भू जल में अत्यधिक आर्सेनिक से जनित समस्याएँ

आर्सेनिक का प्रभाव आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर दिखाई पड़ता है। आर्सेनिक प्रदूषित जल के ग्रहण करने से सामान्यतः त्वचा संबंधी रोगों से पीड़ित होने की अधिक संभावना होती है, जिसमें इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के शरीर पर काले-काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं। आर्सेनिक प्रभावित भूजल के उपयोग करने से होने वाली अन्य बीमारियाँ हैं पेट, रूधिर संबंधी रोग, हाइपर केरोटोसिस, काला पाँव, मायोकॉर्डियल, इसेचेमिया आदि। लम्बे समय तक आर्सेनिक प्रभावित जल के ग्रहण करने पर यकृत, फेफड़ा, गुर्दे एवं चर्म कैंसर होने का खतरा रहता है।

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