इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Be Mains Ready

  • 19 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    क्या चतुर्थ औद्योगिक क्रांति के समय में COVID-19 महामारी का प्रभाव श्रम बाजार पर देखने को मिलेगा? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • COVID-19 महामारी और चतुर्थ औद्योगिक क्रांति के साथ श्रम बाजार को जोड़ने की संभावनाओं पर प्रकाश डालिये।
    • श्रम बाज़ार पर चतुर्थ औद्योगिक क्रांति और COVID-19 के प्रभावों की चर्चा कीजिये।
    • श्रम बाज़ार के समक्ष आने वाली इन चुनौतियों का मुकाबला करने हेतु सुझाव दीजिये।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • मौजूदा COVID-19 महामारी ने मानव जीवन के लगभग प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है ।इससे उत्पन्न इन बड़ी अनिश्चितताओं में से एक इस महामारी के आर्थिक प्रभाव से संबंधित है।
    • आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक श्रम बाजार को कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़रना होगा। हालांँकि पिछले कुछ दशकों से वैश्विक श्रम बाज़ार क्रांतिकारी बदलावों से गुज़र रहा है। आगामी चतुर्थ औद्योगिक क्रांति एवं महामारी वैश्विक श्रम बाजार में परिवर्तन की इस दर को और तीव्र कर सकती है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स और औद्योगिक ऑटोमेटिशन से संबंधित प्रौद्योगिकियों के बढ़ते उत्पादन एवं चुनौतियों के कारण श्रम बाज़ार में भविष्य की संभावनाएंँ निराशाजनक हैं।

    श्रम बाज़ार पर चुतर्थ औद्योगिक क्रांति और COVID-19 का प्रभाव

    • स्वचालन की प्रक्रिया: ILO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 1,600 मिलियन रोबोटों का निर्माण होता है और हाल के वर्षों में इस संख्या में घातीय रूप से वृद्धि हुई है।
      • COVID-19 महामारी के कारण कंपनियांँ आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुचारू रूप से व्यवस्थित करने का प्रयास करेंगी जो सुरक्षित होने के साथ ही वायरस से मुक्त हों।
      • इसके लिये कंपनियों द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये रोबोटों का प्रयोग मानव श्रम के स्थान पर समूह के रूप में किया जाएगा, अतः इस बात की काफी काफी संभावना है कि COVID-19 स्वचालन की प्रक्रिया को गति प्रदान करेगा।
    • सामाजिक ध्रुवीकरण: विभिन्न वर्गों पर वायरस के असमान प्रभाव के कारण महामारी सामाजिक असमानताओं को बढ़ा रही है।
      • हालाँकि निश्चित रूप से महामारी से पहले कम आय वाली नौकरियाँ सबसे अधिक असुरक्षित थीं जिनके कंप्यूटरीकृत होने का जोखिम भी अधिक था।
      • वायरस का सामाजिक प्रभाव काफी लोगों के हित में नहीं है जो रोबोटाइज़ेशन और स्वचालन प्रक्रियाओं के अलावा सामाजिक ध्रुवीकरण के स्तर को बढ़ावा देगा।
    • कार्य संस्कृति में बदलाव: तकनीकी क्रांति और कोरोनावायरस के प्रभाव से काम की परिस्थितियों में आमूल परिवर्तन हो सकता है।
      • सिलिकॉन वैली में कुछ तकनीकी कंपनियों (जैसे ट्विटर, स्क्वायर, या फेसबुक) द्वारा पहले ही मानव श्रम के स्थान पर रिमोट वर्कर्स द्वारा कार्यों को कराया जा रहा है जिसे महामारी के बाद भी घर से स्थायी काम करने के लिये स्थानांतरित करने का फैसला किया गया है।
      • इन परिवर्तनों का उन क्षेत्रों की शहरी अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, जहांँ ये कंपनियांँ रियल इस्टेट, परिवहन और सामाजिक विविधता जैसे पहलुओं को प्रभावित करती हैं।
    • पोस्ट-लेबर सोसाइटी: कुछ सिद्धांतकार कार्य के बाद के परिदृश्य को लेकर विचार हैं कि रोबोट द्वारा ज्यादातर मानव कार्यबल का स्थान ले लिया जाएगा। परिणामस्वरूप पारंपरिक श्रम संरचना का अंत होगा, जिस कारण इस शब्द को फिर से परिभाषित करना होगा।
      • इससे बड़े पैमाने पर नए श्रमजीवी वर्ग का उदय होगा।
      • इसके अलावा तकनीकी बदलावों की गति के साथ कर्मचारियों के आवश्यक कौशल में समय के साथ तीव्र गति से बदलाव होगा तथा पारंपरिक कौशल वाले लोगों का समूह तैयार होगा।
    • समाज में बदलाव: श्रम बाज़ार में एआई और रोबोटिक्स के प्रभाव के कारण मजबूत बदलाव होने की उम्मीद है जो सामाजिक व्यवस्था को बाधित करेगा ।
      • रोज़गार के बिना लोगों के जीवन में एक प्रकार का बदलाव आइगा जो मानवीय गतिविधियों के स्थान पर प्रौद्योगिकी का उपयोग, समाजों को कम मानवीय संपर्क के साथ अधिक व्यक्तिवादी संस्थाओं की ओर स्थानांतरित करेगा।

    आगे की राह:

    • सकारात्मक रुझान: कई अध्ययन इस बात का संकेत देते हैं कि चौथी औद्योगिक क्रांति में भी उतने ही रोज़गार पैदा करेगी।
      • इन अध्ययनों से इस बात का संकेत मिलता है कि विनिर्माण और परिवहन क्षेत्रों में कम रोज़गार होने के बावजूद स्वास्थ्य सेवा और शैक्षिक क्षेत्रों में नौकरी की मांग बढ़ेगी।
      • इसके अलावा प्रौद्योगिकी और स्वचालन कम कीमतों पर अधिक सामाजिक जागरूकता के साथ एक निष्पक्ष आर्थिक मॉडल का नेतृत्व कर सकते हैं।इसके लिये फिर से एक पूर्ण कार्यबल की आवश्यकता है।
    • समावेशी विकास की आवश्यकता: कुछ सरकारें उन नकारात्मक प्रभावों का सामना करने के लिये रणनीति विकसित करने की कोशिश कर रही हैं जो उन्हें विपरीत स्थितियों से उभार सकता है।
      • यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।
      • हालांँकि, भारत जैसे विकासशील देशों को वैकल्पिक रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। क्योंकि विश्व के दूसरे सबसे बड़े आबादी वाले देश में यूबीआई प्रदान करना संभव नहीं है, खासकर निकट भविष्य में।

    निष्कर्ष:

    अभी वास्तविक ज़रूरत इस बात के मूल्यांकन करने की है कि COVID-19 संकट परिवर्तन और पर्याप्त नीति प्रतिक्रियाओं को किस प्रकार प्रभावित करेगा जिसके लिये उचित नीतिगत उपाय करने की आवश्यकता होगी।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2