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  • 26 Aug 2019 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    मृदा निर्माण की प्रक्रिया में अपक्षय की भूमिका की संक्षिप्त चर्चा करते हुए इसके नियंत्रक कारकों की विशद विवेचना कीजिये।

    प्रश्न विच्छेद

    मृदा निर्माण में अपक्षय की भूमिका तथा मृदा निर्माण के नियंत्रक कारकों को बताएँ।

    हल करने का दृष्टिकोण

    संक्षिप्त भूमिका लिखें।

    मृदा निर्माण में अपक्षय की भूमिका स्पष्ट करें।

    मृदा निर्माण के नियंत्रक कारकों की चर्चा करें।

    मृदा एक गत्यात्मक माध्यम है जिसमें बहुत सी रासायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाएँ अनवरत चलती रहती हैं। मृदा जलवायु की दशाओं, भू-आकृतियों एवं वनस्पतियों के साथ अनुकूलित होती रहती है और यदि उक्त नियंत्रक दशाओं में परिवर्तन हो जाए तो आंतरिक रूप से भी परिवर्तित हो सकती है।

    मृदा निर्माण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम भूमिका अपक्षय की होती है। जलवायु संबंधी कारकों जैसे- तापमान तथा वर्षण एवं जैविक क्रियाओं के फलस्वरूप मूल चट्टानों का अपक्षय आरंभ हो जाता है। इससे प्राप्त पदार्थ ही मृदा निर्माण के लिये आवश्यक निवेश प्रदान करते हैं। यद्यपि अपक्षय मृदा निर्माण के लिये पूर्णरूप से उत्तरदायी नहीं है तथापि अपक्षयित पदार्थों का जल एवं वायु द्वारा परिवहन कर निक्षेपण किया जाता है। इस निक्षेपित पदार्थ में जीव एवं पौधों के मृत अवशेषों द्वारा ह्यूमस का एकत्रीकरण होता है। कालांतर में जल धारण की क्षमता एवं वायु के प्रवेश के साथ परिपक्व मृदा का निर्माण होता है। अपक्षय मृदा निर्माण के लिये मात्र निवेश प्रदान करता है, जबकि इसका नियंत्रण स्थलाकृति, मूल पदार्थ, जलवायु, जैविक क्रिया एवं समय पर निर्भर करता है।

    जलवायु मृदा में नमी की मात्रा एवं तापमान को निर्धारित और प्रभावित करती है। मृदा में जल की मात्रा वर्षा के जल की मात्रा पर निर्भर करती है। मृदा में जल का अधोमुखी संचलन अपक्षालन, विनिक्षेपण एवं खनिजीकरण के माध्यम से मृदा संस्तरों का निर्माण करता है। तापमान मृदा में रासायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है। मृदा में प्राथमिक एवं द्वितीयक खनिज मूल शैल से प्राप्त होते हैं, जो उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलबा या लाए गए निक्षेप हो सकते हैं। मृदा में उपस्थित खनिज के गुण एवं संरचना मूल शैल पर निर्भर करता है। स्थलाकृतिक उच्चावच जल प्रवाह द्वारा अपरदन की दर को प्रभावित कर मृदा निर्माणक प्रक्रम को नियंत्रित करता है। तीव्र ढालों पर अधिक अपरदन के कारण छिछले तथा समतल मैदानों में कम अपरदन के कारण गहरी मृदा का विकास होता है। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ (ह्यूमस) प्रदान करते हैं। सूक्ष्म जीवों के कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु की मिट्टियों में अंतर को दर्शाती है। ठंडी जलवायु में अधिक ह्यूमस पाई जाती है क्योंकि यहाँ सूक्ष्म जीवों की क्रियाएँ धीमी होती हैं। समय मृदा की परिवक्वता और उसके पार्श्िवक विकास का निर्धारक कारक है। एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएँ लंबे काल तक पार्श्विक विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं।

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