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  • 03 Jul 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय-चेतना पर प्रकाश डालिये।

    किसी भी युग का महान रचनाकर अपने समय के संकटों एवं टकराहटों की पहचान करता है और उसके समानान्तर एक ऐसा मार्ग ढूँढने का प्रयत्न करता है जहाँ विरोधी पक्ष अपने अतिवादों का परित्याग कर साथ-साथ चल सकें। गोस्वामी तुलसीदास ऐसे ही समन्वयवादी रचनाकार हैं और इसीलिये वे महान रचनाकार भी हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनकी समन्वय-साधना की गंभीर प्रशंसा करते हुए लिखा भी है कि- ‘तुलसीदास को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका कारण यह था कि वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर सामने आया हो।’

    वस्तुत: तुलसीदास मध्यकाल के जिस सामंती परिवेश में विद्यमान थे, उसमें अनेक विरोधी शक्तियाँ समाज के विभिन्न स्तरों पर संघर्षरत थीं। तुलसीदास ने उन विरोधी विचारधाराओं में समन्वय स्थापित कके अत्यंत लोककल्याणकारी कार्य किया। दर्शन एवं साधना के धरातल पर समन्वय की चेष्टा करते हुए तुलसीदास ने भक्तिविरोधी ज्ञान को खारिज किया, किंतु भक्ति और ज्ञान में गहरा समन्वय स्थापित करते हुए लिखा-

    ‘भगतिहिं ग्यानहिं नहिं कछु भेदा।’

    निर्गुण एवं सगुण के जटिल विवाद के शमन का प्रयत्न करते हुए उन्होंने कहा-

    ‘सगुनहिं अगुनहिं नहीं कछु भेदा। गावहिं मनु पुरान बुध वेदा।।’

    शैव और वैष्णव के मतभेद को सुलझाने के लिये उन्होंने प्राय: शिव और राम को एक-दूसरे का भक्त बताया।

    सामाजिक धरातल पर तुलसीदास ने पुरुष व नारी में, विभिन्न वर्णों में समन्वय का प्रयत्न किया। पारिवारिक धरातल पर पिता और पुत्र के बीच, भाई-भाई के बीच माँ और पुत्र के बीच आदि स्तरों पर समन्वय किया। तात्कालीन लोगों की मानसिकता को लक्षित करते हुए उन्होंने भाग्य तथा पुरुषार्थ में, भोग तथा त्याग में समन्वय किया।

    राजनीतिक धरातल पर उन्होंने राजा व प्रजा के कर्त्तव्यों का निर्धारण करते हुए दोनों के सम्यक् संबंध की व्यवस्था कर राजा व प्रजा के बीच समन्वय स्थापित किया। जब वे ‘नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना’ कहते हैं तो आर्थिक स्तर पर भी उनकी समन्वय भावना दिखाई देती है। भाषा के धरातल पर भी उन्होंने संस्कृत और लोकभाषा का अद्भुत समन्वय किया। समग्रत: तुलसीदास समन्वय की विराट चेष्टा करने वाले कवि हैं। उनकी इस समन्वय-भावना ने मध्यकाल के बिखरते हुए समाज को बाँधने का महत् कार्य तो किया ही, भविष्य के लिये भी एक समाज-दृष्टि प्रदान की।

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