मध्य प्रदेश Switch to English
BSF ने दुर्गा ड्रोन स्क्वाड्रन लॉन्च किया
चर्चा में क्यों?
सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने अपनी पहली महिला ड्रोन संचालन इकाई, ‘दुर्गा ड्रोन स्क्वाड्रन’, की स्थापना की।
- यह प्रयास BSF तथा अन्य सुरक्षा बलों में महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
मुख्य बिंदु
- स्क्वाड्रन के बारे में:
- यह अग्रणी पहल महिला शक्ति को उन्नत प्रौद्योगिकी से जोड़ती है, जिसका लक्ष्य भारत के पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर सुरक्षा अभियानों को सशक्त बनाना है।
- स्थल:
- यह प्रशिक्षण ग्वालियर में BSF अकादमी के स्कूल ऑफ ड्रोन वारफेयर (SDW) में आयोजित किया जाता है, जो BSF के भीतर ड्रोन प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण का प्रमुख संस्थान है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम
- स्क्वाड्रन को हवाई निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाना, अवलोकन और ड्रोन विरोधी अभियानों में उन्नत प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षु निम्नलिखित क्षेत्रों में भी दक्षता प्राप्त कर रही हैं:
- खोज और बचाव अभियानों का संचालन।
- सीमा पार ड्रोन खतरों का सामना करने हेतु इलेक्ट्रॉनिक डिटेक्शन और न्यूट्रलाइजेशन सिस्टम का उपयोग।
- स्क्वाड्रन के लक्ष्य:
- इस स्क्वाड्रन का उद्देश्य तकनीकी रूप से उन्नत और सीमा सुरक्षा संरचना को मज़बूत करना तथा समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाना है।
- महिला कर्मी भारत की सीमाओं पर निगरानी कवरेज को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ करेंगी, वास्तविक समय में खुफिया जानकारी संग्रहण की क्षमता में सुधार लाएंगी और घुसपैठ विरोधी तथा आपदा प्रतिक्रिया अभियानों में निर्णायक भूमिका निभाएंगी।
सीमा सुरक्षा बल (BSF)
- BSF की स्थापना वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की गई थी।
- यह गृह मंत्रालय (MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत संघ के सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।
- अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं: असम राइफल्स (AR), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और सशस्त्र सीमा बल (SSB)
- 2.65 लाख पुलिस कर्मी पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर तैनात हैं।
- इसे भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय सेना के साथ तथा नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान में खुशी शाला कार्यक्रम
चर्चा में क्यों?
राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (RSCERT) ने कक्षा 1-5 तक के विद्यार्थियों के लिये एक अग्रणी मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण पहल खुशी शाला शुरू की है।
- राजस्थान प्राथमिक शिक्षा में इस प्रकार का कार्यक्रम शुरू करने वाला भारत का पहला राज्य है।
मुख्य बिंदु
- उद्देश्य:
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य युवा विद्यार्थियों को सफलता और असफलता दोनों का सामना करने का तरीका सिखाकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को सशक्त बनाना है।
- यह बच्चों को असफलताओं से विचलित हुए बिना अपनी सीखने की यात्रा निरंतर जारी रखने हेतु प्रेरित करता है।
- मुख्य घटक:
- माइंडफुलनेस व्यायाम: शरीर और मन के बीच संबंध के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये गतिविधियाँ।
- करुणा विकास: विद्यार्थियों में करुणा और सहानुभूति का पोषण करने के लिये विशेष गतिविधियाँ।
- आत्म-खोज मार्गदर्शन: विद्यार्थियों को उनके व्यक्तिगत मूल्य पहचानने और उनके अनुसार महत्त्वपूर्ण चीज़ों को आगे बढ़ाने में मदद करना।
- पायलट परियोजना (2024):
- वर्ष 2024 में सिरोही और बांसवाड़ा ज़िलों में प्रत्येक में 30-30 स्कूलों में आयोजित की गई; विद्यार्थियों में परिवर्तन का अवलोकन करने हेतु 120 शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया।
- शिक्षक प्रशिक्षण:
- पायलट प्रोजेक्ट के पश्चात 165 शिक्षकों को राज्य संसाधन समूह बनाने हेतु प्रशिक्षित किया गया।
- ये शिक्षक अब ज़िला स्तर पर अन्य शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।
- दिसंबर 2025 तक, विभाग का लक्ष्य प्रत्येक ज़िले में 40 प्रशिक्षित शिक्षक और राज्य में लगभग 12,000 शिक्षकों को प्रशिक्षित करना है।
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक पंचायत में कम-से-कम एक प्रशिक्षित शिक्षक सुनिश्चित करना है।
- पायलट प्रोजेक्ट के पश्चात 165 शिक्षकों को राज्य संसाधन समूह बनाने हेतु प्रशिक्षित किया गया।
- शिक्षक पुस्तिकाएँ:
- कक्षा 1–5 के लिये विशेष पुस्तिकाएँ, क्षमतालय फाउंडेशन और अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन ब्रियो के सहयोग से विकसित की गई हैं।
- ये पुस्तिकाएँ मास्टर प्रशिक्षकों के लिये मुद्रित की गई हैं।
- दिसंबर से सभी प्राथमिक स्कूल शिक्षकों के लिये इन पुस्तिकाओं का मोबाइल-अनुकूल संस्करण उपलब्ध हो जाएगा।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान में आदर्श वेद विद्यालयों का शुभारंभ
चर्चा में क्यों?
राज्य में संस्कृत शिक्षा के प्रसार और संवर्द्धन हेतु राजस्थान के संस्कृत शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने 1 अप्रैल, 2026 से सभी प्रभागीय मुख्यालयों में आदर्श वेद विद्यालय शुरू करने की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- उद्देश्य:
- इस पहल का उद्देश्य राजस्थान में संभागीय स्तर पर संस्कृत शिक्षा को प्रोत्साहन देना तथा वैदिक अध्ययन की परंपरा को पुनर्जीवित करना है।
- प्रथम चरण:
- चार आदर्श वेद विद्यालयों की स्थापना की गई है, जो वर्तमान में संस्कृत शिक्षा विभाग के भवनों या अन्य सरकारी परिसरों से अस्थायी रूप में संचालित हो रहे हैं।
- वर्तमान केंद्र हाथोज (जयपुर), तारातारा मठ (बाड़मेर), पुष्कर (अजमेर) और पीली गाँव (भरतपुर) में स्थित हैं।
- चार आदर्श वेद विद्यालयों की स्थापना की गई है, जो वर्तमान में संस्कृत शिक्षा विभाग के भवनों या अन्य सरकारी परिसरों से अस्थायी रूप में संचालित हो रहे हैं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- प्रत्येक वेद विद्यालय में वैदिक शिक्षा के चार विशेषज्ञ शिक्षक नियुक्त होंगे तथा प्रशासनिक सहयोग हेतु पाँच विभागीय कार्मिक नियुक्त किये जा सकेंगे।
- सभी सात संभागों में आदर्श वेद विद्यालयों के स्थायी परिसरों के निर्माण के लिये भूमि आवंटित की जा चुकी है, जिनमें हाथोज (जयपुर), पुष्कर (अजमेर), पीली (भरतपुर), चेचट (कोटा), गोमरख (जोधपुर), भटेवर (उदयपुर) और नलबाड़ी (बीकानेर) शामिल हैं।
- वैदिक परंपराएँ:
- इन वैदिक गुरुकुलों और वैदिक पर्यटन केंद्रों का संचालन पूर्णतः पारंपरिक वैदिक रीति-नीति के अनुरूप किया जाएगा।
- इन केंद्रों पर वेदों और वैदिक परंपराओं में दक्ष प्रशिक्षित कार्मिकों की नियुक्ति की जाएगी।
- वैदिक संस्कार एवं शिक्षा बोर्ड का गठन:
- अप्रैल 2025 में राजस्थान सरकार ने संभाग स्तर पर नव स्थापित वेद विद्यालयों एवं तीन वैदिक गुरुकुलों सहित सभी वैदिक शिक्षण संस्थानों के संचालन, निगरानी और समन्वयन हेतु वैदिक संस्कार एवं शिक्षा बोर्ड की स्थापना की।
उत्तर प्रदेश Switch to English
NCRTC द्वारा भारत का पहला सोलर ऑन ट्रैक सिस्टम लॉन्च
चर्चा में क्यों?
सतत् परिवहन अवसंरचना की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) ने गाज़ियाबाद के दुहाई स्थित नामो भारत डिपो में एक अग्रणी ‘सोलर ऑन ट्रैक’ प्रणाली लागू की है।
- यह पहल भारत में किसी भी RRTS (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) या मेट्रो नेटवर्क में इस तरह की पहली स्थापना है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- यह परियोजना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) की व्यापक सौर नीति का अभिन्न हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अपनी कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का 70% नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करना है।
- वर्तमान में NCRTC ने विभिन्न स्टेशनों, डिपो और भवनों में 5.5 मेगावाट रूफटॉप सौर क्षमता का संचालन प्रारंभ कर दिया है तथा 15 मेगावाट घरेलू सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
- सौर पैनल स्थापना:
- परियोजना के तहत पिट व्हील ट्रैक के 70 मीटर हिस्से पर 28 सौर पैनल (प्रत्येक की क्षमता 550 Wp) लगाए गए हैं, जिससे प्रणाली की कुल स्थापित क्षमता 15.4 kWp हो गई है।
- ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरणीय प्रभाव:
- इस प्रणाली से प्रति वर्ष लगभग 17,500 किलोवाट विद्युत् उत्पादन का अनुमान है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 16 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी।
- भविष्य की योजनाएँ:
- NCRTC अपनी तीव्र परिवहन सेवाओं में ट्रैक्शन प्रणालियों के साथ नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण पर कार्य कर रहा है, जिससे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता घटेगी।
- जल एवं ऊर्जा संरक्षण उपाय:
- संगठन ने अपने प्रतिष्ठानों में वर्षा जल संचयन प्रणाली और सीवेज उपचार संयंत्रों को लागू किया है, जिससे जल संरक्षण एवं अपशिष्ट प्रबंधन की दक्षता बढ़ी है।
- पुनर्योजी ब्रेकिंग प्रौद्योगिकी:
- NCRTC ने अपनी नामो भारत ट्रेनों में पुनर्योजी ब्रेकिंग प्रौद्योगिकी (Regenerative Braking Technology) को सम्मिलित किया है।
- यह तकनीक ब्रेक लगाते समय गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है और संचालन की समग्र दक्षता में वृद्धि होती है।

राजस्थान Switch to English
कुसुम योजना से 282 करोड़ रुपये से अधिक की बचत
चर्चा में क्यों?
राजस्थान की विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) ने विगत 18 महीनों में ‘कुसुम योजना’ के माध्यम से 282 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है।
- यह योजना कृषि कनेक्शनों को सौर ऊर्जा से जोड़ने तथा किसानों को बंजर एवं अर्द्ध-बंजर भूमि से आय सृजन में सक्षम बनाने पर केंद्रित है।
मुख्य बिंदु
- राजस्थान योजना के घटक-ए में देश में अग्रणी राज्य है, जो किसानों को 2 मेगावाट तक क्षमता वाले संयंत्र स्थापित करने की अनुमति देता है। घटक-सी में भी राज्य तीसरे स्थान पर है।
- अवसंरचना:
- राज्य ने इस योजना के क्रियान्वयन में उल्लेखनीय गति दिखाई है। केवल 20 महीनों में 942 सौर संयंत्र स्थापित किये गए हैं, जिनकी कुल क्षमता 2,100 मेगावॉट है।।
- वर्तमान में 41 ज़िलों में 1.36 लाख सौर पंप संचालित हैं, जिन्हें 1,034 सौर संयंत्रों से विद्युत् प्राप्त होती है। जबकि 22 ज़िलों में ये पंप दो पालियों में संचालित किये जाते हैं।
- लक्ष्य:
- राजस्थान ने मार्च 2026 तक 11,632 मेगावाट सौर क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिससे विद्युत् क्रय लागत में और कमी आने की संभावना है।
पीएम-कुसुम योजना
- परिचय:
- पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य सौर ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र में बदलाव लाना है।
- यह योजना कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करते हुए सिंचाई लागत कम करने और अधिक सौर ऊर्जा को ग्रिड में बेचने की सुविधा प्रदान करके किसानों की आय बढ़ाने का लक्ष्य रखती है।
- घटक:
- घटक-A: किसानों की बंजर/परती/चरागाह/दलदली/कृषि योग्य भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्राउंड/स्टिल्ट माउंटेड सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना।
- घटक-B: ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों में 20 लाख स्टैंड-अलोन सौर पंपों की स्थापना।
- घटक-C: 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सोलराइज़ेशन: जिसमें व्यक्तिगत पंप और फीडर-स्तरीय सौरकरण दोनों शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- डीज़ल पर निर्भरता कम करना: यह योजना सिंचाई हेतु सौर ऊर्जा चालित पंपों के उपयोग को प्रोत्साहित करती है, जिससे महंगे डीजल चालित पंपों पर निर्भरता कम होती है।
- किसानों की आय में वृद्धि: किसानों को ग्रिड को अतिरिक्त सौर ऊर्जा बेचने की सुविधा देकर, यह योजना उनकी वित्तीय स्थिरता बढ़ाती है।
- जल एवं ऊर्जा सुरक्षा में सुधार: सौर पंप और सामुदायिक सिंचाई परियोजनाएँ किसानों के लिए जल और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार सुनिश्चित करती हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव: पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को सौर ऊर्जा से प्रतिस्थापित करके, यह योजना पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करती है और स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहित करती है।
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