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उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश और IIT-रुड़की ने कार्बन क्रेडिट मॉडल लॉन्च किया

  • 11 Dec 2025
  • 25 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने IIT रुड़की के सहयोग से एक कार्बन क्रेडिट मॉडल लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य किसानों को उनके कृषि क्षेत्रों में कार्बन संरक्षण करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित करने में सहायता प्रदान करना है।

मुख्य बिंदु 

  • भारत में पहला: यह भारत का पहला बड़े स्तर का कार्बन क्रेडिट मॉडल है, जिसका पायलट प्रोग्राम सहारनपुर मंडल में शुरू होगा और धीरे-धीरे पूरे राज्य में विस्तारित होगा।
  • किसानों के लिये कार्बन क्रेडिट: किसान ऐसे पेड़ लगाकर कार्बन क्रेडिट अर्जित करेंगे जो प्रकाश संश्लेषण के लिये कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और वायु गुणवत्ता में सुधार होता है। संगृहीत प्रत्येक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के लिये एक कार्बन क्रेडिट मिलेगा, जिसे किसानों को भुगतान के रूप में दिया जाएगा।
  • राजस्व वितरण: कार्बन क्रेडिट बाज़ार में बेचे जाने के बाद, 50% राजस्व सीधे किसानों को दिया जाएगा। अर्जित आय मृदा की गुणवत्ता और संगृहीत कार्बन की मात्रा पर निर्भर करेगी।
  • सतत कृषि पद्धतियाँ: किसानों को मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ाने के लिये सतत कृषि तकनीकें अपनानी होंगी, जिसमें कृषि अपशिष्ट का जलाने के बजाय उपयोग, जुताई को कम करना और जैव उर्वरक का प्रयोग शामिल है।
  • आय और मृदा स्वास्थ्य: यह पहल किसानों को दीर्घकालिक आय का स्रोत प्रदान करेगी। इसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य बहाल करना, कृषि लागत कम करना और जल धारण क्षमता बढ़ाना है, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार तथा खेती की लागत में कमी आएगी।
  • वैज्ञानिक निगरानी: IIT रुड़की मृदा नमूनों का वैज्ञानिक परीक्षण करेगा और रिमोट सेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम की निगरानी सुनिश्चित करेगा। यह ढाँचा कार्बन भंडारण के मापन, सत्यापन तथा मौद्रिकरण को प्रमाणित करता है।
  • राजस्व आवंटन: कार्बन क्रेडिट की बिक्री से प्राप्त राजस्व का आधा हिस्सा किसानों को वितरित किया जाएगा, जबकि शेष आधा हिस्सा भूमि पंजीकरण, रखरखाव, निगरानी और परिचालन प्रक्रियाओं के लिये उपयोग किया जाएगा।
  • वैश्विक और स्थानीय प्रभाव : यह कार्यक्रम नेट ज़ीरो प्रतिबद्धताओं का समर्थन करता है, वैश्विक बाजारों में उच्च गुणवत्ता वाले कार्बन क्रेडिट की बिक्री को सुगम बनाता है, और पुनर्योजी कृषि का समर्थन करके ग्रामीण आजीविका को लाभ पहुँचाता है।
  • दीर्घकालिक लाभ : समय के साथ, इस कार्यक्रम से मृदा की उर्वरता, जल धारण क्षमता और फसल उपज में सुधार होने की संभावना है, जिससे किसानों के लिये आय के नए स्रोत सृजित होंगे तथा साथ ही भारत के जलवायु लक्ष्यों में भी योगदान मिलेगा।

कार्बन क्रेडिट 

  • कार्बन क्रेडिट, जिसे कार्बन ऑफसेट भी कहा जाता है, कार्बन उत्सर्जन में कमी या उसे अवशोषित करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (tCO₂e) के टन में मापा जाता है।
  • कार्बन क्रेडिट की अवधारणा को वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल में प्रस्तुत किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा और अधिक मज़बूती प्रदान की गई। इसका उद्देश्य कार्बन व्यापार के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
  • प्रत्येक कार्बन क्रेडिट एक टन CO₂ या उसके समतुल्य उत्सर्जन की अनुमति प्रदान करता है।
  • ये क्रेडिट उन परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं जो कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित या कम करती हैं और जिन्हें वेरिफाइड कार्बन स्टैंडर्ड (VCS) तथा गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा प्रमाणित किया जाता है। 
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