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झारखंड

एकीकृत कृषि प्रणाली में पशुधन को शामिल करना अत्यंत उपयोगी

  • 22 Feb 2022
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

21 फरवरी, 2022 झारखंड में राँची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) कॉलेज ऑफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी द्वारा आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के समापन पर किसानों के लिये एक विचार मंथन और प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने गाय, भैंस, बकरी, सुअर, मुर्गीपालन, मछली और बत्तखपालन गतिविधियों जैसे पशुधन को एकीकृत खेती में शामिल करने पर ज़ोर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • बीएयू के कुलपति ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि पशुधन की नवीनतम तकनीकों को शामिल करते हुए कृषि प्रणाली में प्रबंधन, किसानों की आय दोगुनी करने का एक बेहतर विकल्प है, जिससे देश में छोटे और सीमांत किसानों की बेहतर आजीविका और पोषण सुरक्षा मज़बूत होगी।
  • गौरतलब है कि लगभग 60 एकीकृत कृषि प्रणालियों की पहचान की गई है और पूरे देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिये सिंचित एवं गैर-सिंचित परिस्थितियों के अनुरूप विकसित की गई हैं। 
  • शोध में वैज्ञानिकों ने एकीकृत कृषि प्रणाली को देश के किसानों की आय बढ़ाने का सबसे उपयुक्त माध्यम पाया है।
  • एकीकृत कृषि प्रणाली एक संपूर्ण कृषि प्रबंधन प्रणाली है, जिसका उद्देश्य अधिक टिकाऊ कृषि प्रदान करना है। यह कृषि प्रणालियों में पशुधन और फसल उत्पादन का एकीकृत करती है। 
  • एकीकृत कृषि प्रणालियों ने पशुधन, जलीय कृषि, बागवानी, कृषि-उद्योग और संबद्ध गतिविधियों की पारंपरिक खेती में क्रांति ला दी है। इस प्रणाली में आधार के रूप में फसल गतिविधि के साथ अन्य उद्योगों के अंतर-संबंधित सेट शामिल हैं, इसमें एक घटक से ‘अपशिष्ट’ सिस्टम के दूसरे भाग के लिये एक इनपुट बन जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है एवं उत्पादन और आय में वृद्धि होती है।
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