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उत्तराखंड

डिम्मर गाँव आदर्श संस्कृत ग्राम के रूप में चयनित

  • 07 Apr 2023
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

5 अप्रैल, 2023 को उत्तराखंड के देहरादून में शिक्षा एवं संस्कृत शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने बताया कि प्रदेश के संस्कृत निदेशालय ने राज्य के 13 ज़िलों में 13 आदर्श संस्कृत ग्राम बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसके अंतर्गत चमोली ज़िले के डिम्मर गाँव का चयन किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • डिम्मर गाँव में महिलाओं से लेकर बच्चों और बुजुर्गों को संस्कृत भाषा सिखाई जाएगी। इसके लिये गाँव में एक संस्कृत प्रशिक्षित व्यक्ति का चयन किया जाएगा, जो ग्रामीणों को संस्कृत भाषा बोलना सिखाएगा। इसके लिये उसे 12000 रुपए प्रतिमाह मानदेय भी दिया जाएगा।
  • विदित है कि कर्णप्रयाग-सिमली मोटर मार्ग पर कर्णप्रयाग से 7 किलोमीटर की दूरी पर डिम्मर गाँव स्थित है। 500 परिवारों के इस गाँव में लगभग 250 ब्राह्मण, 150 राजपूत और 100 अनुसूचित जाति के परिवार रहते हैं। डिम्मर गाँव के डिमरी ब्राह्मण बदरीनाथ धाम में पूजा-अर्चना का जिम्मा सँभालते हैं। साथ ही, वह माता मूर्ति से लेकर जोशीमठ नृसिंह मंदिर में भी पूजा का दायित्व सँभालते हैं।
  • बदरीनाथ धाम के गाडू घड़ा का संचालन भी डिम्मर गाँव से होता है। इसके अलावा बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा संपन्न होने के बाद बदरीनाथ के रावल भी डिम्मर गाँव के लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा के लिये पहुँचते हैं। इन सब धार्मिक कार्यक्रमों में अधिकाधिक संस्कृत का प्रयोग होता है। इसलिये इस योजना के तहत डिम्मर गाँव का चयन किया गया है।
  • इसके तहत अब गाँव के सभी वर्गों के लोगों को संस्कृत भाषा बोलना सिखाया जाएगा। साथ ही, गाँव में संस्कृत ग्राम शिक्षा समिति का गठन भी किया जाएगा। समिति की ओर से प्रतिमाह संस्कृत भाषा पर चर्चा की जाएगी। इसकी मानिटरिंग संस्कृत शिक्षा विभाग करेगा।
  • उल्लेखनीय है कि डिम्मर गाँव में वर्ष 1918 से संस्कृत महाविद्यालय का संचालन हो रहा है। पूर्व में डिमरी ब्राह्मणों की ओर से ही महाविद्यालय का संचालन किया जाता था। मौजूदा समय में महाविद्यालय को श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की ओर से संचालित किया जाता है।
  • यहाँ कक्षा छह से आचार्य तक की कक्षाओं का संचालन होता है। डिमरी परिवारों ने महाविद्यालय के संचालन के लिये अपनी 30 नाली भूमि भी दान में दी थी और यहाँ एक छात्रावास भी है।
  • गौरतलब है कि संस्कृत देश की द्वितीय राजभाषा है। इसके प्रचार-प्रसार के लिये सभी को आगे आने की आवश्यकता है।  
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