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छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ देश में मत्स्य बीज उत्पादन में पाँचवें और मत्स्य उत्पादन में छठवें स्थान पर

  • 17 Aug 2023
  • 5 min read

चर्चा में क्यों? 

16 अगस्त, 2023 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य मछली बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है एवं पूरे देश में मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में पाँचवें स्थान तथा मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में छठवें स्थान पर है। 

प्रमुख बिंदु  

  • छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा दिये जाने से मत्स्य पालकों को ब्याज मुक्त ऋण तथा अन्य सुविधाएँ मिलने से मत्स्य पालन की लागत में कमी आई है और मछुआरों की आमदनी बढ़ी है।  
  • प्रदेश में मछली पालन के लिये 2 लाख हेक्टेयर से अधिक जल क्षेत्र उपलब्ध है। मत्स्य बीज उत्पादन के लिये 86 हेचरी, 59 मत्स्य बीज प्रक्षेत्र, 647 हेक्टेयर संवर्धन पोखर उपलब्ध हैं, जहाँ उन्नत प्रजाति के 330 करोड़ मछली बीज फ्राई का उत्पादन किया जा रहा है।  
  • राज्य की आवश्यकता 143 करोड़ की है। शेष 187 करोड़ मछली बीज अन्य राज्यों को निर्यात किये जा रहे हैं।  
  • छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के समय मात्र 93 हज़ार मेट्रिक टन मत्स्य का उत्पादन होता था, वर्तमान में लगभग 6 लाख मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन होने लगा है। मत्स्य उत्पादन में यह वृद्धि साढ़े छह गुना है।  
  • मत्स्य पालन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर देश में बेस्ट इनलैंड स्टेट का अवॉर्ड भी मिला है।   
  • राज्य के 19 सिंचाई जलाशयों एवं दो खदानों में कुल 4021 केज स्थापित किये जा चुके हैं। पंगेशियस, मोनोसेक्स तिलापिया जैसी मछलियों का पालन एवं जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से सीमित जल संसाधन में अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हुई है।  
  • राज्य में ग्रामीण तालाबों में प्रति हेक्टेयर औसत मत्स्य उत्पादन 4017 कि.ग्रा. एवं सिंचाई जलाशयों में 240 कि.ग्रा. उत्पादन है, जो देश के औसत उत्पादन से अधिक है।  
  • कांकेर ज़िले के कोयलीबेड़ा विकासखंड में मछली पालन की क्लस्टर आधारित खेती विकसित हो रही है, जहाँ 3000 से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं। 
  • बांगों सिंचाई डैम में एक हज़ार केज स्थापित किये गए हैं। इस डैम के डुबान क्षेत्र के विस्थापित मछुआ सहकारी समिति के सदस्यों को कुछ साल पहले तक मत्स्य पालन में आमदनी के लिये खूब मेहनत करनी पड़ती थी। इसके बावजूद उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था।  
  • मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब इस क्षेत्र के ग्राम सतरेंगा आए तो उन्होंने मात्स्यिकी समूहों की आवश्यकताओं को समझा और मछुआ समूहों को 1000 नग केज उपलब्ध कराने की घोषणा की।  
  • मुख्यमंत्री की घोषणा उपरांत ज़िला खनिज संस्थान न्यास कोरबा एवं विभागीय सहयोग से बांगो सिंचाई जलाशय के ग्राम सतरेंगा में 100 नग, ग्राम गढ़उपरोड़ा में 100 नग तथा निउमकछार में 800 नग केज स्थापना का कार्य पूर्ण किया गया तथा बांगो सिंचाई जलाशय के आस-पास के विस्थापित मछुआ सहकारी समिति के 200 सदस्यों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये मत्स्य पालन के व्यवसाय से जोड़ा गया। परिणामस्वरूप मछुआ समूहों की आमदनी पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गई है और वे आत्मनिर्भरता की राह में आगे बढ़ रहे हैं।  
  • प्रत्येक हितग्राही को 5-5 नग केज आवंटित हैं, प्रत्येक केज में 5000 नग तिलापिया मोनोसेक्स/पंगेशियस मत्स्य बीज संचित कर मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है तथा प्रत्येक केज से लगभग 2000 कि.ग्रा. मत्स्य उत्पादन प्राप्त किया जा रहा है।  
  • वर्ष 2022-23 में प्रत्येक हितग्राही को आवंटित केज से मत्स्य उत्पादन से उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहतर हो रही है।

  

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