राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स
ब्लड मून
- 08 Sep 2025
- 19 min read
चर्चा में क्यों?
8 सितंबर 2025 को एशिया, ऑस्ट्रेलिया तथा अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में ब्लड मून (पूर्ण चंद्र ग्रहण) देखा गया, जिसमें पृथ्वी की छाया ने चंद्रमा को गहरे लाल रंग में परिवर्तित कर दिया।
- यह मार्च 2025 के बाद वर्ष का दूसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण था, जो 82 मिनट की पूर्णता के साथ पाँच घंटे से अधिक समय तक चला।
- सूर्य ग्रहण के विपरीत, चंद्र ग्रहण को नंगी आँखों से देखना सुरक्षित है।
मुख्य बिंदु
- चंद्र ग्रहण: चंद्र ग्रहण तब घटित होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तथा पृथ्वी बीच में स्थित होती है। इससे सूर्य का प्रकाश सीधे चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाता।
- पूर्ण चंद्र ग्रहण: जब चंद्रमा पृथ्वी की आंतरिक और सबसे गहन छाया (Umbra) से होकर गुजरता है, तो वह गहरे धुंधले अथवा लाल रंग का प्रतीत होता है।
- आंशिक ग्रहण: जब चंद्रमा का केवल कुछ भाग प्रतिछाया से होकर गुजरता है।
- अर्द्धछाया ग्रहण: जब चंद्रमा केवल पृथ्वी की बाहरी छाया (पेनम्ब्रा) में प्रवेश करता है। इसमें प्रकाश का मंद पड़ना बहुत सूक्ष्म होता है और प्रायः स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता।
- "ब्लड मून" प्रभाव:
- ब्लड मून प्रभाव इसलिये होता है क्योंकि पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुँचने से पहले ही अवरुद्ध कर देता है। जब प्रकाश वायुमंडल से होकर गुजरता है, तो
- नीला प्रकाश सरलता से विसरित जाता है (इसी कारण आकाश नीला दिखाई देता है)।
- लाल प्रकाश पृथ्वी के चारों ओर मुड़कर चंद्रमा तक पहुँचता है, जिससे पूर्ण ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल अथवा ताँबे के रंग का हो जाता है।
- चमकदार लाल चंद्रमा शुद्ध एवं कम प्रदूषित वायु का सूचक है।
- गहरा लाल चंद्रमा वायु में अधिक धूल, राख अथवा प्रदूषण की उपस्थिति को दर्शाता है।
- ब्लड मून प्रभाव इसलिये होता है क्योंकि पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुँचने से पहले ही अवरुद्ध कर देता है। जब प्रकाश वायुमंडल से होकर गुजरता है, तो
- वैज्ञानिक संबंध
- ब्लड मून की घटना के पीछे वही प्रक्रिया कार्य करती है, जो आकाश तथा सूर्यास्त को रंग प्रदान करती है: रेले प्रकीर्णन (Rayleigh Scattering), जिसकी व्याख्या भौतिक विज्ञानी जॉन विलियम स्ट्रट, तृतीय बैरन रेले ने की थी।
- दिवाकालीन आकाश: कम तरंग दैर्ध्य वाली नीली रोशनी सभी दिशाओं में प्रकीर्णित हो जाती है, जिसके कारण आकाश नीला दिखाई देता है।
- सूर्योदय और सूर्यास्त: इस समय सूर्य का प्रकाश वायुमंडल की मोटी परतों से होकर गुजरता है, जिससे नीला प्रकाश प्रकीर्णित होकर नष्ट हो जाता है। परिणामस्वरूप लंबी तरंग दैर्ध्य वाला प्रकाश (लाल, नारंगी और पीला) आकाश को रंग प्रदान करता है।
- चंद्र ग्रहण के समय, चंद्रमा पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुज़रती सारी सूर्यास्त की किरणों में घिरा प्रतीत होता है।