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Sambhav-2024

  • 26 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 85

    Q1. समग्र खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में कैसे योगदान देता है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • समग्र खाद्य आपूर्ति शृंखला में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • खाद्य सुरक्षा बढ़ाने तथा आर्थिक विकास को गति देने में इसके योगदान का वर्णन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, भोजन को खेत से थाली तक पहुँचाने के क्रम में विभिन्न चरणों को शामिल करते हुए समग्र खाद्य आपूर्ति शृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें सफाई, छँटाई, पैकेजिंग और संरक्षण जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से कच्चे कृषि उत्पादों को उपभोग योग्य खाद्य पदार्थों में बदलना शामिल है।

    मुख्य भाग:

    खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का महत्त्व:

    • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करना: खाद्य प्रसंस्करण, खाद्य उत्पादों को लंबे समय तक संरक्षित करके फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने में सहायता करता है।
    • खाद्य उत्पादों की अवधि में वृद्धि: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की शेल्फ लाइफ लंबी होती है, जिससे अधिक स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
    • आहार विविधीकरण: खाद्य प्रसंस्करण से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों के उत्पादन के चलते अधिक विविध और संतुलित आहार प्राप्त होता है।
    • पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता: प्रसंस्करण तकनीकें खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्य को बढ़ा सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध हो सकते हैं।

    खाद्य सुरक्षा में योगदान:

    • भोजन की बर्बादी में कमी आना:
      • UNEP द्वारा जारी खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, भारत में घरेलू भोजन की बर्बादी सालाना प्रति व्यक्ति लगभग 50 किलोग्राम या 68.76 मिलियन टन होने का अनुमान है।
      • खाद्य प्रसंस्करण खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक संरक्षित करके फसल के बाद के नुकसान को कम करने में मदद करता है। इससे ताज़े भोजन की मांग पर दबाव कम हो जाता है, जिससे ऑफ-सीज़न के दौरान भी भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
    • बेहतर पहुँच:
      • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का परिवहन और भंडारण करना आसान होता है, जिससे वे दूरदराज़ क्षेत्रों तक अधिक पहुँच योग्य हो जाते हैं। इससे सीमित पहुँच वाले क्षेत्रों में स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होने से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।
      • कैनिंग और फ्रीज़िंग जैसी खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के उपयोग ने खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को बिना खराब हुए लंबी दूरी तक ले जाना संभव बना दिया है।
    • फोर्टिफिकेशन:
      • खाद्य प्रसंस्करण खाद्य पदार्थों में आवश्यक पोषक तत्त्वों को मिलाने की सुविधा प्रदान कर स्वास्थ्य में सुधार करने में भूमिका निभाता है।
      • गेहूँ के आटे को आयरन और फोलिक एसिड से समृद्ध करने से कई देशों में एनीमिया की व्यापकता को कम करने में (खासकर महिलाओं एवं बच्चों में) मदद मिली है।

    आर्थिक विकास में योगदान:

    • रोज़गार सृजन:
      • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग रोगाज़र का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत (खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ कृषि कच्चे माल का स्रोत होता है) है। यह कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिये अवसर प्रदान करता है, जिससे गरीबी कम करने में योगदान मिलता है।
      • भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का बाज़ार मूल्य वर्ष 2025-26 तक 535 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने की उम्मीद है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक बनाता है। इसमें 20.3% कार्यबल संलग्न है।
    • मूल्य संवर्धन:
      • खाद्य प्रसंस्करण से कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है। अपने उत्पादों में विविधता लाकर, किसान केवल कच्ची उपज पर निर्भर रहने से संबंधित जोखिमों को कम कर सकते हैं।
      • दूध को पनीर और दही जैसे डेयरी उत्पादों में संसाधित करने से इसका मूल्य कई गुना बढ़ जाता है, जिससे किसानों एवं उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होता है।
      • भारत की अर्थव्यवस्था में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसकी निर्यात में 13% और औद्योगिक निवेश में 6% हिस्सेदारी है।
    • विविधीकरण:
      • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ विभिन्न प्रकार के खाद्य विकल्प प्रदान करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अपने दैनिक जीवन में अधिक संतुलित और पौष्टिक आहार शामिल करने की सुविधा मिलती है। यह किसानों को स्थायी प्रथाओं को अपनाने में भी मदद करता है जो पर्याप्त आय लाभांश प्रदान करते हैं।
      • प्रसंस्कृत सोया-आधारित उत्पादों की उपलब्धता ने मांस के स्थान पर प्रोटीन युक्त विकल्प प्रदान किया है, जिससे शाकाहारियों को लाभ हुआ है तथा मांस उत्पादन से संबंधित पर्यावरणीय प्रभाव में भी कमी आई है।

    निष्कर्ष:

    खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा पोषण मूल्य बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खाद्य उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए आबादी में होने वाली वृद्धि की पोषण आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये इस क्षेत्र की निरंतर वृद्धि एवं इसमें नवाचार आवश्यक है।

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