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Sambhav-2024

  • 23 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 83

    प्रश्न 2. भारत में भूमि सुधारों की रणनीति के रूप में सरकार की बंज़र भूमि के वितरण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में भूमि सुधार का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इससे संबंधित लाभों और संभावित चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
    • आगे की राह बताइये।

    परिचय:

    भूमि सुधार भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसका उद्देश्य भूमि असमानता के साथ ग्रामीण गरीबी से संबंधित मुद्दों को हल करना एवं कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देना है। इसमें शामिल रणनीतियों में से एक सरकारी बंजर भूमि का वितरण करना है। यह दृष्टिकोण भूमि सुधार, सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास एवं सतत कृषि में योगदान के व्यापक संदर्भ में निर्णायक है।

    मुख्य भाग:

    भूमि सुधार के अंतर्गत बंजर भूमि के वितरण से जुड़ा महत्त्व:

    • संभावित लाभ:
      • भूमिहीनता में कमी: भारत में काफी बड़ी आबादी भूमिहीन है, जो वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 8% है। बंजर भूमि को वितरित करने से उन्हें कृषि के लिये भूमि मिलने के साथ आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है जिससे गरीबी में कमी आ सकती है।
      • आजीविका के अवसरों में वृद्धि: बंजर भूमि को जब उचित रूप से वितरित किया जाता है तो इससे आजीविका के अवसर मिलते हैं। भूमिहीन किसानों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को कृषि करने और आय उत्पन्न करने के साधन मिलते हैं।
        • यह बदले में गरीबी उन्मूलन और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देता है, क्योंकि व्यक्ति तथा परिवार कृषि के माध्यम से सशक्त होते हैं।
      • ग्रामीण विकास: भूमि स्वामित्व ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने के साथ बुनियादी ढाँचे, सामाजिक विकास एवं शिक्षा में निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है।
      • पर्यावरणीय लाभ: बंजर भूमि का विकास, जब स्थायी रूप से किया जाता है, तो इसमें वनीकरण और मृदा संरक्षण प्रथाओं तथा मृदा के स्वास्थ्य में सुधार करना शामिल हो सकता है।
      • प्रभावी भूमि उपयोग: बंजर भूमि अक्सर अप्रयुक्त रहती है। इस प्रकार की भूमियों के वितरण से इनका प्रभावी उपयोग सुनिश्चित होने के साथ संसाधनों के अनुकूलन में योगदान मिलता है, जिससे अंततः खाद्य सुरक्षा एवं कृषि स्थिरता को समर्थन मिलता है।
    • संभावित चुनौतियाँ:
      • भूमि की गुणवत्ता और उपयुक्तता: सिंचाई, मृदा में सुधार एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश के बिना बंजर भूमि अक्सर कृषि के लिये अनुपयुक्त बनी रहती है।
      • संस्थागत और कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: भूमि वितरण कार्यक्रम नौकरशाही बाधाओं, भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी के कारण प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बन सकते हैं।
      • वितरण में समानता संबंधी चिंताएँ: हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये समान भूमि वितरण सुनिश्चित करने एवं शक्तिशाली समूहों द्वारा भूमि हड़पने को रोकने के लिये मज़बूत सुरक्षा उपायों के साथ समावेशी भागीदारी की आवश्यकता है।
      • पर्यावरणीय जोखिम: अत्यधिक वनों की कटाई या अनुचित फसल पैटर्न जैसी अस्थिर भूमि उपयोग प्रथाएँ, मृदा के कटाव एवं जैवविविधता के नुकसान जैसी पर्यावरणीय समस्याओं को बढ़ा सकती हैं।

    आगे की राह:

    • भूमि गुणवत्ता का व्यापक मूल्यांकन: वितरण से पहले बंजर भूमि की गुणवत्ता एवं कृषि के लिये इसकी उपयुक्तता का गहन मूल्यांकन करना आवश्यक है। इसमें मृदा परीक्षण, जल की उपलब्धता एवं पारिस्थितिकी प्रभाव आकलन शामिल हैं। इससे संबंधित सीमाओं एवं संभावित जोखिमों की पहले से ही पहचान करने जैसे लक्षित हस्तक्षेप से इस कार्य में सहायता मिल सकती है।
    • प्राथमिकता और समावेशन: भूमिहीन किसानों, महिलाओं और आदिवासी समूहों सहित हाशिये पर रहने वाले समुदायों को भूमि वितरण में प्राथमिकता देनी चाहिये। इसके साथ ही पारदर्शी चयन प्रक्रियाओं को लागू करने के साथ संसाधनों एवं सहायक सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • बुनियादी ढाँचे में निवेश: बंजर भूमि के विकास को व्यवहार्य बनाने के लिये सिंचाई, पहुँच मार्ग और बाज़ार संपर्क जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये। भूमि के प्राप्तकर्त्ताओं को सतत भूमि प्रबंधन प्रथाओं हेतु कौशल एवं ज्ञान से लैस करने के क्रम में प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है।
    • मज़बूत संस्थागत ढाँचा: भूमि प्रशासन और वितरण हेतु ज़िम्मेदार संस्थानों को मज़बूत बनाना आवश्यक है। मज़बूत भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को लागू करने तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने से पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता सुनिश्चित होती है।
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