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Sambhav-2024

  • 17 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 78

    Q1. भारत में कार्यरत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) से संबंधित लाभों एवं चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। देश में NBFC क्षेत्रक को मज़बूत करने के उपाय बताइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • भारत में कार्यरत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) से संबंधित लाभों और चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
    • देश में NBFC क्षेत्र को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) कंपनी अधिनियम, 1956/2013 के तहत निगमित संस्थाएंँ हैं। वे वित्तीय क्षेत्र में कार्य करती हैं लेकिन उनके पास बैंकिंग लाइसेंस नहीं होते है। वे भारत के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के अभिन्न घटकों के रूप में कार्य करती हैं, ऋण और अग्रिम सहित वित्तीय सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करती हैं, साथ ही सरकार या स्थानीय अधिकारियों द्वारा जारी किये गए शेयर, स्टॉक, बॉण्ड, डिबेंचर तथा प्रतिभूतियों को प्राप्त करने जैसी निवेश गतिविधियाँ भी प्रदान करती हैं।

    मुख्य भाग:

    NBFC के संभावित लाभ:

    • वित्तीय समावेशन: NBFC प्रायः वंचित और दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँचते हैं, जहाँ पारंपरिक बैंकों की मौजूदगी नहीं होती है, जिससे व्यापक आबादी को ऋण एवं अन्य वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
    • नवोन्मेषी उत्पाद: NBFC अपने लचीलेपन और उत्पाद पेशकशों, विशिष्ट ग्राहक क्षेत्रों एवं विशिष्ट बाज़ारों की पूर्ति में नवप्रवर्तन की क्षमता के लिये जानी जाती हैं। यह वित्तीय क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को बढ़ावा देता है, जिससे उपभोक्ताओं के लिये बेहतर सेवाएँ एवं उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
    • तरलता: NBFC बैंकों, पूंजी बाज़ार और खुदरा निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से धन एकत्रित करके तथा उन्हें अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में प्रवाहित करके वित्तीय प्रणाली की तरलता में योगदान करते हैं।
    • MSME के लिये समर्थन: NBFC अक्सर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ऋण प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जिससे उद्यमिता, रोज़गार सृजन तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

    NBFC की चुनौतियाँ:

    • फंडिंग में आने वाली बाधाएँ: NBFC बैंक, म्यूचुअल फंड और पूंजी बाज़ार सहित थोक फंडिंग स्रोतों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। तरलता प्रत्यास्थता या बढ़े हुए जोखिम से बचने की अवधि के दौरान, फंडिंग तक पहुँच बाधित हो सकती है, जिससे उनके संचालन के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
      • भारत में NBFC के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक तरलता की कमी रही है, मूलतः वर्ष 2018 में IL&FS (इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़) संकट के बाद से।
    • संपत्ति की गुणवत्ता और ऋण जोखिम: NBFC को संपत्ति की गुणवत्ता और ऋण जोखिम, मूलतः आर्थिक मंदी के दौरान या अस्थिरता वाले क्षेत्रों में, संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अनुचित जोखिम प्रबंधन प्रथाओं से संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है तथा डिफाल्ट की संभावना बढ़ सकती है।
      • आर्थिक मंदी, नौकरी छूटने और कोविड-19 महामारी जैसे व्यवधानों ने ऋण चूक का जोखिम बढ़ा दिया है, जिससे NBFC के ऋण पोर्टफोलियो की संपत्ति की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है।
    • नियामक अनुपालन: पूंजी पर्याप्तता मानदंडों, विवेकपूर्ण नियमों और रिपोर्टिंग मानकों सहित नियामक आवश्यकताओं का अनुपालन, NBFC, विशेष रूप से सीमित संसाधनों वाले छोटे अभिकर्त्ताओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • कॉर्पोरेट प्रशासन: NBFC के लिये निवेशकों का विश्वास बढ़ाने और उनके संचालन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। कमज़ोर प्रशासनिक संरचनाएँ निवेशकों के भरोसे को कमज़ोर कर सकती हैं और क्षेत्र को जोखिमों में डाल सकती हैं।

    NBFC क्षेत्र को मज़बूत करने के उपाय:

    • उन्नत विनियमन और पर्यवेक्षण: वित्तीय स्थिरता और निवेशक हितों की रक्षा के लिये विवेकपूर्ण मानदंडों, जोखिम प्रबंधन मानकों एवं कॉर्पोरेट प्रशासन आवश्यकताओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये NBFC की नियामक निगरानी तथा पर्यवेक्षण को मज़बूत करना आवश्यक है।
    • फंडिंग स्रोतों का विविधीकरण: NBFC को पारंपरिक चैनलों से परे अपने फंडिंग स्रोतों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करना और कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ारों के विकास को बढ़ावा देना वित्तीय लचीलापन बढ़ा सकता है तथा अस्थिर थोक फंडिंग पर निर्भरता कम कर सकता है।
    • क्रेडिट जोखिम प्रबंधन: NBFC को मज़बूत क्रेडिट जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना चाहिये, जिसमें पूरी तरह से परिश्रम, विवेकपूर्ण ऋण मानदंड, प्रभावी निगरानी तंत्र और समय पर परिसंपत्ति गुणवत्ता की पहचान एवं क्रेडिट जोखिमों को कम करने तथा परिसंपत्ति की गुणवत्ता बनाए रखने का प्रावधान शामिल है।
    • फिनटेक एकीकरण को बढ़ावा: ग्राहक अधिग्रहण, क्रेडिट मूल्यांकन और प्रक्रिया स्वचालन के लिये प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों का लाभ उठाने के लिये NBFC एवं फिनटेक फर्मों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने से परिचालन दक्षता बढ़ सकती है, बाज़ार पहुँच का विस्तार हो सकता है तथा सेवा वितरण में सुधार हो सकता है।

    निष्कर्ष:

    पिछले कुछ वर्षों में NBFC ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को विकास पूंजी प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिये नीति निर्माताओं को भारत में NBFC क्षेत्र के लचीलेपन और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये नियामक ढाँचे को लगातार परिष्कृत एवं मज़बूत करने में सतर्क तथा सक्रिय रहना चाहिये।

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