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Sambhav-2023

  • 30 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 71

    प्रश्न.1 हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की प्रकृति में अंतर स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न.2 भारत में नदियों को आपस में जोड़ना, सूखे और बाढ़ जैसी क्रमिक घटनाओं को रोकने का एक प्रभावी समाधान हो सकता है। अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणालियों के बारे में बताइये।
    • हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणालियों के बीच अंतर पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • हिमालयी नदी प्रणाली, हिमालय (भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों से होकर गुजरने वाली पर्वत श्रृंखला) में उत्पन्न होने वाली नदियों के प्रवाह प्रतिरूप को संदर्भित करती है। इस प्रणाली की कुछ प्रमुख नदियों में गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और यांग्त्ज़ी शामिल हैं।
    • दूसरी ओर प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली उन नदियों के प्रवाह प्रतिरूप को संदर्भित करती है जो दक्कन के पठार में उत्पन्न होती हैं और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर की ओर बहती हैं। इस प्रणाली की कुछ प्रमुख नदियों में गोदावरी, महानदी और कावेरी शामिल हैं।

    मुख्य भाग:

    • हिमालय से उत्पन्न होने वाली नदियों की प्रवाह प्रणाली की निम्न विशेषताएँ हैं:
      • युवावस्था: यह नदियाँ अपेक्षाकृत युवावस्था में हैं जिन्हें अपरदन और भू-दृश्य रूपांतरण में कम समय लगता है।
      • तीक्ष्ण ढाल: यह नदियाँ तीव्र ढाल वाली होती हैं क्योंकि ये हिमालय के ऊँचे स्थानों से मैदानों की ओर बहती हैं।
      • जल की बड़ी मात्रा: हिमालय में उच्च वर्षा और हिमपात के कारण इन नदियों में बड़ी मात्रा में जल होता है।
      • लंबा प्रवाह मार्ग: यह नदियाँ अपने मुहाने तक पहुँचने से पहले लंबी दूरी तय करती हैं।
      • पनबिजली उत्पादन क्षमता: जल की अधिक मात्रा और तीव्र ढाल इन नदियों को पनबिजली उत्पादन के लिये उपयुक्त बनाती है।
    • दक्कन के पठार से निकलने वाली प्रायद्वीपीय नदियों की प्रवाह प्रणाली की निम्न विशेषताएँ हैं:
      • प्रौढ़ावस्था: यह नदियाँ अपेक्षाकृत पुरानी हैं और इनसे भू-दृश्य का क्षरण एवं रूपांतरण बहुत सीमित होता है।
      • निम्न ढाल: दक्कन के पठार से तट की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों का ढाल निम्न होता है।
      • जल की कम मात्रा: इस क्षेत्र में कम वर्षा और हिमपात के कारण हिमालय की नदियों की तुलना में जल की मात्रा कम होती है।
      • छोटे प्रवाह मार्ग: इन नदियों के प्रवाह मार्ग छोटे होते हैं क्योंकि ये अपने मुहाने तक पहुँचने से पहले छोटे से क्षेत्र से होकर बहती हैं।
      • मुख्य रूप से सिंचाई और पीने के जल के लिये उपयोगी: इन नदियों का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई और आसपास के लोगों के लिये पीने के जल के स्रोत के रूप में किया जाता है।

    निष्कर्ष:

    हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणालियाँ भारत की दो अलग-अलग प्रवाह प्रणालियाँ हैं इनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएँ हैं। हिमालय से उत्पन्न होने वाली हिमालय नदी प्रणाली को युवावस्था, खड़ी ढाल, अधिक मात्रा में जल, लंबे प्रवाह मार्ग और उच्च पनबिजली उत्पादन क्षमता के लिये जाना जाता है। दक्कन के पठार की प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली को प्रौढ़ावस्था, निम्न ढाल, जल की कम मात्रा, छोटे प्रवाह मार्ग और मुख्य रूप से सिंचाई और पीने के जल के उपयोग हेतु जाना जाता है। यह दोनों नदी प्रणालियाँ संबंधित क्षेत्र की पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो आसपास के लोगों को जल, बिजली और अन्य संसाधन उपलब्ध कराती हैं।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में नदियों को जोड़ने से संबंधित संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • बताइये कि इससे सूखे और बाढ़ जैसी समस्याओं का समाधान किस प्रकार होगा।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत में नदियों को आपस में जोड़ना (जिसे राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के रूप में भी जाना जाता है) एक प्रस्तावित बुनियादी ढाँचा परियोजना है जिसका उद्देश्य नदियों, बाँधों और जलाशयों के नेटवर्क का निर्माण करके जल को अधिशेष वाले क्षेत्रों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करना है।
    • इस परियोजना के समर्थकों का तर्क है कि यह जल संसाधनों के पुनर्वितरण और विभिन्न क्षेत्रों में जल की उपलब्धता को संतुलित करके सूखे और बाढ़ जैसी क्रमिक घटनाओं का एक प्रभावी समाधान हो सकता है।

    मुख्य भाग:

    • नदियों को आपस में जोड़ने से अधिशेष जल वाले क्षेत्रों के जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों से जोड़कर, सूखे के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। इस प्रकार जल की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में जल की उपलब्धता बढ़ सकती है।
    • इससे इन क्षेत्रों में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
    • इसके अतिरिक्त नदियों को आपस में जोड़ने से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के अधिशेष जल को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित कर, बाढ़ के जोखिम को कम करने में भी मदद मिल सकती है।
    • इसके साथ-साथ नदियों को आपस में जोड़ने के कुछ संभावित जोखिम भी होते हैं जैसे-
    • यह परियोजना बेहद जटिल और महत्त्वाकांक्षी है (जिसमें नहरों, बाँधों और जलाशयों के विशाल नेटवर्क का निर्माण शामिल है), जिसके लिये काफी समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी।
    • इसके अतिरिक्त इस परियोजना की लागत बहुत अधिक होने की उम्मीद है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि इससे उचित लाभ मिलेंगे या नहीं।
    • इसके अलावा इन नदियों को आपस में जोड़ने से नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव भी हो सकते हैं जैसे विभिन्न लोगों का विस्थापन होना, जैव विविधता की हानि होना और स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में परिवर्तन होना।
    • इससे निचले तटवर्ती क्षेत्रों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

    निष्कर्ष:

    सूखे और बाढ़ जैसी क्रमिक घटनाओं को हल करने के लिये नदियों को आपस में जोड़ना एक प्रभावी समाधान हो सकता है लेकिन इस परियोजना के संभावित लाभों एवं कमियों पर विचार करना तथा यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि इसके किसी भी नकारात्मक प्रभाव को कम किया जाए। इसे एक प्रभावी पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन के साथ-साथ एक पारदर्शी एवं समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रिया के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है जिसमें सभी हितधारकों की भागीदारी शामिल हो।

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