इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Sambhav-2023

  • 21 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 64

    प्रश्न.1 प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है। यह किस प्रकार से महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का सुधारात्मक रूप था। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 पूर्वी भारत में प्रचुर खनिज संसाधनों के बावजूद, यह क्षेत्र अविकसित है। इसके लिये उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पृथ्वी पर प्रथम चरण की भू-आकृतियों के वितरण की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का वर्णन कीजिये और बताइये की यह कैसे महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का सुधारात्मक रूप था।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • महाद्वीपों और महासागर घाटियों को 'प्रथम चरण की भू-आकृतियों’' के रूप में माना जाता है।
    • महाद्वीपों और महासागरों के वितरण को टेट्राहेड्रल परिकल्पना, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत आदि कई परिकल्पनाओं और सिद्धांतों द्वारा समझाया गया है।

    मुख्य भाग:

    प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (PTT):

    • एच. हेस ने वर्ष 1960 में प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत की अवधारणा को प्रतिपादित किया था।
    • महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की अवधारणा और सागर नितल प्रसरण, प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के पीछे मुख्य अवधारणाएँ थीं।
    • इस सिद्धांत में बताया गया कि समुद्र की सतह मध्य-महासागरीय कटक पर निर्मित होती है और प्लेट के अभिसरण क्षेत्रों में नष्ट होती है।
    • इस सिद्धांत में बताया गया कि प्लेट के किनारों पर सभी विवर्तनिकी गतिविधियाँ होती हैं:
    • रचनात्मक प्लेट किनारा: उदाहरण -अटलांटिक महासागर की मध्य महासागरीय कटक।
    • विनाशकारी प्लेट किनारा: उदाहरण - प्रशांत क्षेत्र के चारो ओर रिंग ऑफ फायर।
    • संरक्षी प्लेट किनारा: उदाहरण- भारतीय और अंटार्कटिक प्लेटें।

    Shield-Volcano

    • प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में गतिमान पिघले हुए मैग्मा को, प्लेट की गति के पीछे की प्रेरक शक्ति माना गया है।

    वेगनर (1912) का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (CDT):

    • उनकी विस्थापन परिकल्पना के पीछे मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के भूवैज्ञानिक समय में होने वाले वैश्विक जलवायु परिवर्तन की व्याख्या करना था।
    • उनके अनुसार महाद्वीप बिना किसी अवरोध के सीमा (sima) नामक तरल परत पर गमन कर रहे थे।
    • उन्होंने एकल भूभाग (पैंजिया) की अवधारणा की भी वकालत की थी।
    • उनके अनुसार पैंजिया में विभाजन के परिणामस्वरूप वर्तमान भू-भाग का विकास हुआ।

    महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के सुधारात्मक चरण के रूप में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत:

    समुद्र तल के मानचित्रण और समुद्री चट्टानों के पुराचुंबकीय अध्ययन से कई ऐसे वैज्ञानिक तथ्य सामने आए जो सीडीटी से उपलब्ध नहीं हुए थे। जैसे:

    • प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में महाद्वीपों की गति के पीछे के तंत्र को यह प्रस्तावित करके समझाया गया है कि पृथ्वी का स्थलमंडल बड़ी, कठोर प्लेटों से बना है जो पृथ्वी की निचली सतह पर गमन कर रहा है। यह इस बात की अधिक सटीक व्याख्या करता है कि समय के साथ महाद्वीप कैसे गतिमान हो सकते हैं और अपना आकार बदल सकते हैं।
    • प्लेट विवर्तनिकी में मध्य-महासागरीय कटक क्षेत्र में नई समुद्री सतह के निर्माण और क्षेपण क्षेत्रों में समुद्री सतह के विनाश की व्याख्या की गई है। यह समय के साथ समुद्री सतह के वितरण एवं नई महासागर घाटियों के निर्माण की व्याख्या करने में सहायक है।
    • प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत विश्व के भूकंप, ज्वालामुखी और पर्वत श्रृंखलाओं के वितरण की व्याख्या करता है। उदाहरण के लिये भूकंप और ज्वालामुखी प्लेट के किनारों से संबंधित होते हैं तथा पर्वत श्रृंखलाएँ वहाँ बनती हैं जहां प्लेटें अभिसरित होती हैं।
    • प्लेट विवर्तनिकी महाद्वीपों पर जीवाश्मों और चट्टानी संरचनाओं के वितरण की व्याख्या करता है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि कभी विश्व के विभिन्न क्षेत्र आपस में कैसे जुड़े थे और समय के साथ यह कैसे बदल गए।
    • यह वैज्ञानिकों को भविष्य की विवर्तनिकी गतिविधि के बारे में भविष्यवाणी करने एवं पृथ्वी के इतिहास तथा विकास को बेहतर ढंग से समझने में सहायक है।
    • प्लेट विवर्तनिकी, हॉट स्पॉट ज्वालामुखियों के अस्तित्व की भी व्याख्या करता है। यह ऐसे ज्वालामुखी क्षेत्र हैं जो प्लेट किनारों पर स्थित नहीं होते हैं बल्कि प्लेट के नीचे एक हॉट स्पॉट की उपस्थिति के कारण होते हैं।
    • प्लेट विवर्तनिकी समुद्र तल पर चुंबकीय पट्टियों के अस्तित्व की भी व्याख्या करता है जो समुद्र तल के प्रसरण की प्रक्रिया के कारण होती हैं।

    निष्कर्ष:

    महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के महाद्वीपीय विस्थापन को प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में प्लेट विस्थापन की संकल्पना से स्थानांतरित किया गया था। इसके साथ ही प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से संबंधित सागर नितल प्रसरण और पुराचुंबकत्व से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्लेट विवर्तनिकी, महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का एक सुधारात्मक रूप था जिसमें महाद्वीपों के संचलन की व्याख्या करने की कोशिश की गई थी।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पूर्वी भारत की खनिज संपदा का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
    • इस क्षेत्र के खराब सामाजिक-आर्थिक विकास के कारणों का उल्लेख कीजिये और इस स्थिति में सुधार के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • खान मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत के पूर्वी राज्यों - झारखंड (7.72%), छत्तीसगढ़ (6.65%) और ओडिशा (10.62%) का देश के खनिज उत्पादन में 24.9% से अधिक हिस्सा है। खनिज समृद्ध क्षेत्र होने के बावजूद यह क्षेत्र देश के सबसे अविकसित क्षेत्रों में से एक हैं। इनका स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक समावेश जैसे संकेतकों में लगातार खराब प्रदर्शन रहता है।

    मुख्य भाग:

    इनके निम्न विकास और खराब सामाजिक सूचकांकों के लिये उत्तरदायी कारण:

    • नीति निर्माण में उपेक्षा: इस क्षेत्र में पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर इसके हानिकारक प्रभावों को ध्यान में रखे बिना खनिज संपदा का दोहन होता रहा है। स्थानीय लोगों के गरीब और कमजोर होने के कारण उच्च स्तरीय निर्णय लेने में उनकी कोई भूमिका नहीं होती है।
    • स्थानीय लोगों का विरोध: प्रशासन की नीतियों पर अविश्वास के कारण इन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों द्वारा तीव्र विकास और औद्योगीकरण का विरोध किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप यहाँ नक्सलवाद का विकास हुआ है।
    • दुर्गम क्षेत्र और कम पहुँच: इस क्षेत्र में बहुत से गाँव दूरस्थ स्थित हैं जो टीकाकरण, साक्षरता प्रोत्साहन आदि जैसे सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में जटिलता उत्पन्न करते हैं।
    • खनन के नकारात्मक प्रभाव: खनन का स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यूरेनियम खनन से उत्पन्न रेडियोधर्मी कचरे के कारण झारखंड के जादूगोड़ा खानों के आस-पास के गाँवों में कैंसर के मामले में वृद्धि हुई है।
    • पूंजीकरण लाभ: इस क्षेत्र के संसाधनों के लाभ अन्य राज्यों और शहरों को आउटसोर्स किये जाते हैं उदाहरण के लिये झारखंड में निर्मित स्टील का उपयोग दिल्ली और मुंबई आदि में किया जा रहा है।

    इस स्थिति में सुधार हेतु उपाय:

    • डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) फंड्स का उपयोग: MMDRA एक्ट 2015 में कहा गया है कि DMF फंड्स का 60% उपयोग पेयजल आपूर्ति, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता, शिक्षा, कौशल विकास, महिलाओं और बच्चों की देखभाल, वृद्ध और विकलांगों के कल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिये किया जाना चाहिये।
      • प्रभावित लोगों के लिये स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिये प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के काम में तेजी लाने की आवश्यकता है।
    • संस्थागत दृष्टिकोण: राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 द्वारा खनन क्षेत्रों में पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के लिये पर्याप्त चिंताओं के साथ स्थायी खनन सुनिश्चित करने हेतु तंत्र बनाने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी निकाय की स्थापना पर बल दिया गया है।
    • आधारभूत संरचना में निवेश: कनेक्टिविटी में सुधार, सिंचित क्षेत्र में वृद्धि (जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ में केवल 16.6% और झारखंड में 7% है) करना समय की मांग है।
    • स्थानीय विशेषज्ञता और संसाधनों को बढ़ावा देना: निर्यात, पर्यटन, सांस्कृतिक विरासत और क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देने के साथ ही पारंपरिक कौशल को संरक्षित करने वाले स्थानीय उत्पादों को जीआई टैग प्रदान करना चाहिये। उदाहरण के लिये ओडिशा का कोटपैड हैंडलूम कपड़ा, छत्तीसगढ़ के बस्तर का आयरन क्राफ्ट आदि
      • इसी तरह भारत को प्लास्टिक मुक्त करने के क्रम में तेंदू पत्ते, जूट और हथकरघा उत्पादों जैसे लघु वन उत्पादों के उपयोग से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएँ हैं।
    • पर्यटन क्षमता को बढ़ावा देना: स्वदेश दर्शन योजना के जनजातीय सर्किट का उद्देश्य जनजातीय अनुष्ठानों, त्योहारों, रीति-रिवाजों और संस्कृति को विकसित करना और बढ़ावा देना है। जनजातीय जीवन शैली के प्रति सम्मान की भावना विकसित करके राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिये भी यह आवश्यक है।

    निष्कर्ष:

    • सतत विकास लक्ष्यों 1 (गरीबी के सभी रूपों की समाप्ति), 2 (भूख की समाप्ति), 3 (स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देना), 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) और 10 (असमानता को कम करना) को प्राप्त करने के लिये पूर्वी राज्यों का विकास महत्त्वपूर्ण है।
    • इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये सभी विकास नीतियों को 'सबका साथ सबका विकास' के आदर्श वाक्य से संचालित किया जाना चाहिये। समावेशी और सतत विकास इन क्षेत्रों के समावेशन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2