प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 10 जून से शुरू :   संपर्क करें
ध्यान दें:

Sambhav-2023

  • 21 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 11

    प्रश्न- 1. राज्य के राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के बारे में चर्चा कीजिये। राज्यपाल के पद को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिये।

    प्रश्न- 2. अनुच्छेद 370 के निरसित होने के बाद से केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। चर्चा कीजिये। (250 Words)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • राज्यपाल के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिये।
    • राज्यपाल की संवैधानिक और विवेकाधीन शक्तियों पर चर्चा कीजिये।
    • राज्यपाल के पद को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    राज्यपाल, राज्य का मुख्य कार्यकारी प्रमुख होता है। लेकिन राष्ट्रपति की तरह ही वह नाममात्र का कार्यकारी प्रमुख (नाममात्र या संवैधानिक प्रमुख) होता है। राज्यपाल, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। इसलिये राज्यपाल की दोहरी भूमिका होती है। आमतौर पर प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होता है लेकिन 7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के द्वारा एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है।

    मुख्य भाग:

    राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ

    अनुच्छेद 163 के अनुसार: अपने विवेकाधीन कार्यों के अलावा अन्य कार्यों को करने के लिये राज्यपाल को मुख्यमंत्री के नेतृत्त्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी होगी।

    संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि कोई विषय राज्यपाल के विवेकाधिकार के अंतर्गत आता है या नहीं, यदि ऐसे किसी मामला के संबंध में कोई प्रश्न उठता है तो इस संदर्भ में राज्यपाल का निर्णय अंतिम होता है और इस संबंध में इस आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है कि उसे विवेकाधिकार निर्णय लेने का अधिकार था या नहीं।

    संवैधानिक विवेकाधिकार:

    राज्यपाल को निम्नलिखित मामलों में संवैधानिक विवेकाधिकार प्राप्त होते हैं:

    1. राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को आरक्षित करना।

    2. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करना।

    3. पड़ोसी केंद्रशासित राज्य में (अतिरिक्त प्रभार की स्थिति में) प्रशासक के रूप में कार्य करते समय।

    4. असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम सरकार द्वारा खनिज अन्वेषण के लिये दिये जाने वाले लाइसेंस से अर्जित रॉयल्टी के रूप में स्वायत्त जनजातीय जिला परिषद को दी जाने वाली राशि का निर्धारण करना।

    5. राज्य के प्रशासनिक और विधायी मामलों के संबंध में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना।

    स्थितिजन्य विवेकाधिकार:

    उपर्युक्त संवैधानिक विवेकाधिकारों के अतिरिक्त (उदाहरण के लिये संविधान में उल्लिखित विवेकाधिकारों के अतिरिक्त) राज्यपाल, राष्ट्रपति की तरह परिस्थितिजन्य निर्णय ले सकता है (जैसे-राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में लिये जाने वाले निर्णय)। जैसे :

    1. विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में या कार्यकाल के दौरान अचानक मुख्यमंत्री का निधन हो जाने एवं उसके निश्चित उत्तराधिकारी न होने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति के मामले में।

    2. राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल न करने पर मंत्रिपरिषद की बर्खास्तगी के मामले में।

    3. मंत्रिपरिषद के अल्पमत में होने पर राज्य विधानसभा को विघटित करने के संदर्भ में।

    राष्ट्रपति और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के बीच अंतर :

    निम्नलिखित मामलों में राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति राष्ट्रपति से भिन्न होती है:

    1. संविधान में राज्यपाल के विवेक से कार्य करने की संभावना की परिकल्पना की गई है लेकिन राष्ट्रपति के लिये ऐसी कोई संभावना की परिकल्पना नहीं की गई है।

    2. 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद राष्ट्रपति के लिये मंत्रिपरिषद की सलाह को बाध्यकारी बनाया गया है लेकिन राज्यपाल के संबंध में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

    राज्यपाल के पद को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये उठाए गए कदम:

    • एस.आर. बोम्मई मामला: वर्ष 1994 से पहले 100 से अधिक बार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था जिसमें से अधिकांश को राज्य के राज्यपाल की सिफारिश पर लगाया गया था। लेकिन एस.आर. बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगा क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की थी कि राष्ट्रपति शासन लागू करने का आधार केवल संवैधानिक तंत्र के विफल होने तक ही सीमित रहेगा।
    • सरकारिया आयोग: इसने इस पद पर ऐसे लोगों की नियुक्ति पर अधिक बल दिया जो किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के साथ संबंधित राज्य से बाहर का व्यक्ति हो ताकि उस राज्य से उसके कोई व्यक्तिगत हित न जुड़ें हों। इससे इस पद की गरिमा को और भी बढ़ावा मिला।
    • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966): 'केंद्र-राज्य संबंधों' पर अपनी रिपोर्ट में इसने सिफारिश की थी कि यदि एक बार राज्यपाल अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लेता है तो उसे राज्यपाल के रूप में आगे की नियुक्ति के लिये पात्र नहीं बनाया जाए।
    • राष्ट्रीय आयोग (2000): इसने राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में सरकारिया आयोग के दृष्टिकोण का समर्थन किया। इसने कहा कि किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये सुरक्षित रखने या सहमति देने के संदर्भ में छह महीने की समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिये।
    • पुंछी आयोग: सरकारिया आयोग ने राज्यपाल के पाँच वर्ष के कार्यकाल को कम करने की सिफारिश की थी जबकि पुंछी आयोग ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए सिफारिश की थी कि राज्यपाल का कार्यकाल निश्चित होना चाहिये ताकि यह केंद्र सरकार के प्रसादपर्यंत पद धारण न करें। इसने अनुच्छेद 156 में संशोधन का प्रस्ताव रखा ताकि राज्यपाल को पद से हटाने के संबंध में निश्चित प्रक्रिया निर्धारित हो सके।

    निष्कर्ष

    भारतीय राजनीति के संदर्भ में राज्यपाल के पद का बहुत महत्त्व है लेकिन राज्यपाल की स्थिति और भूमिका को निष्पक्ष बनाने एवं इसकी संवैधानिक भूमिकाओं को सुनिश्चित करने के क्रम में इसकी स्थिति तथा भूमिका में सुधार की आवश्यकता है।


    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • अनुच्छेद 370 के निरसन के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये ।
    • अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में हुए बदलावों पर चर्चा कीजिये ।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन विशेष संवैधानिक स्थिति को समाप्त कर दिया और अनुच्छेद 35A को निरस्त कर दिया।

    अनुच्छेद 35A के तहत जम्मू-कश्मीर को यह परिभाषित करने का अधिकार था कि उसके 'स्थायी निवासी' कौन हैं और इन्हें कौन से अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त हैं।

    इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख (विधानमंडल के बिना) और जम्मू-कश्मीर (विधानमंडल के साथ) में विभाजित किया गया था।

    मुख्य भाग

    अनुच्छेद 370 के निरसित होने के बाद से केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में हुए महत्त्वपूर्ण बदलाव:

    • आतंकवादी गतिविधियों में कमीं आना :अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों में आतंक संबंधी घटनाओं की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है। मार्च 2021 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी हिंसा में काफी कमी आई है। अप्रैल 2021 में गृह मंत्रालय ने बताया कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद आतंकवादी घटनाओं में 60% की कमी आई है।
    • स्थानीय राजनेताओं के राजनीतिक प्रभाव में कमीं आना: मुफ़्ती, अब्दुल्ला, हुर्रियत नेताओं के साथ कुछ अन्य अलगाववादियों का जम्मू और कश्मीर की राजनीति में काफी प्रभाव था। इन नेताओं ने राज्य की कीमत पर राजनीतिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश की। अपने हितों की पूर्ति हेतु इन्होंने जम्मू-कश्मीर को ज्वलंत मुद्दा बने रहने दिया। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से इन नेताओं के प्रभाव में कमीं आई, जो जम्मू-कश्मीर को अपने हितों को साधने का उपकरण मानने लगे थे।
    • संवृद्धि और विकास: पहले कुछ बाधाओं के कारण उद्योगपतियों और बड़े संगठनों ने जम्मू और कश्मीर में निवेश में रूचि नहीं ली थी लेकिन धारा 370 के निरस्त होने के बाद, सरकार ने न केवल व्यापार और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया बल्कि विकास की राह में आने वाली सभी बाधाओं को भी दूर करने का प्रयास किया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन की स्थापना भी उन विभिन्न परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये की गई है जो वर्षों पहले शुरू की गई थीं लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई थीं।
    • जम्मू-कश्मीर में निवास संबंधी नियम और केंद्रीय कानून का लागू होना: शिक्षा का अधिकार, बाल विवाह की रोकथाम, अस्पृश्यता अधिनियम और इस तरह के कई अन्य कानून अनुच्छेद 370 के अस्तित्व के कारण जम्मू और कश्मीर पर लागू नहीं हो सकते थे। लेकिन इसके निरस्त होने के बाद सभी केंद्रीय कानूनों को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तक विस्तृत कर दिया गया है। यहाँ पर निवास संबंधी नया नियम लागू किया गया,जिसके अनुसार ऐसे लोग और उनके बच्चे जो इस राज्य में पिछले 15 साल से रह रहे थे या यहाँ सात साल तक अध्ययन किया है और जम्मू-कश्मीर में किसी शैक्षणिक संस्थान में अपनी 10वीं या 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, यहाँ के निवासी बनने हेतु आवेदन कर सकते हैं।
    • महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का बहाल होना: इस राज्य में महिलाएँ सबसे वंचित वर्गों में से एक थीं। इन्हें न केवल संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया था बल्कि उनके अन्य मौजूदा अधिकारों को भी धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया था। जम्मू-कश्मीर के बाहर के राज्य के पुरुषों से शादी करने वाली महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाता था। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद इस व्यवस्था में बदलाव आया। जम्मू और कश्मीर में महिलाएँ अब अचल संपत्ति खरीदने के साथ इसे बच्चों को हस्तांतरित करने में सक्षम हैं, भले ही वे किसी अनिवासी से शादी कर लें।

    निष्कर्ष

    अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से इस राज्य के शासन में भारत के आम लोगों की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त होने के साथ न केवल भारत की राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली में व्यापक स्तर पर सुधार हुआ है बल्कि इससे विकास की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहन मिला है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2