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Sambhav-2023

  • 08 Mar 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 103

    प्रश्न.1 साइबर-भौतिक प्रणालियों (CPS) के कार्यान्वयन के महत्त्व और चुनौतियों की उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रक में क्रांति लाने में नैनो तकनीक की क्षमता पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • साइबर-भौतिक प्रणालियों (CPS) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • साइबर-भौतिक प्रणालियों के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • साइबर-भौतिक प्रणालियाँ (CPS) भौतिक और कम्प्यूटेशनल घटकों की एकीकृत प्रणालियाँ हैं जिन्हें विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक साथ काम करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
    • विनिर्माण, परिवहन, स्वास्थ्य देखभाल और ऊर्जा प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों में इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
    • CPS में इन उद्योगों में क्रांति लाने की क्षमता है लेकिन इनके कार्यान्वयन से विभिन्न चुनौतियाँ भी संबंधित हैं।

    मुख्य भाग:

    • महत्त्व:
      • उपलब्धता: आवश्यकता होने पर CPS की सुलभ उपलब्धता होना चाहिये। इसका मतलब यह है कि यह प्रणाली विश्वसनीय होने के साथ बिजली आउटेज या नेटवर्क विफलताओं जैसे संभावित व्यवधानों को हल करने में सक्षम होनी चाहिये।
      • सुरक्षा: CPS को सुरक्षा को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया जाना चाहिये। इसमें संभावित खतरों की पहचान करना, सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि यह प्रणाली अप्रत्याशित घटनाओं को हल करने में सक्षम हो।
      • सुरक्षा: अनधिकृत पहुँच या बाहरी हमलों को रोकने के क्रम में यह प्रणाली सुरक्षित होनी चाहिये। इसमें डेटा की सुरक्षा के लिये एन्क्रिप्शन, फायरवॉल और अन्य सुरक्षा उपायों को लागू करना शामिल है।
      • इंटरऑपरेबिलिटी: CPS को अन्य प्रणाली के साथ इंटरऑपरेबल होने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये ताकि विभिन्न सिस्टम के बीच निर्बाध संचार और सहयोग को सक्षम किया जा सके।
    • साइबर-भौतिक प्रणालियों के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ:
      • CPS को लागू करने की प्रमुख चुनौतियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि भौतिक और कम्प्यूटेशनल घटक निर्बाध रूप से एक साथ कार्य कर सकें। कई मामलों में भौतिक घटकों को इंजीनियरों की एक अलग टीम द्वारा डिज़ाइन किया जा सकता है जबकि उन्हें नियंत्रित करने वाला सॉफ़्टवेयर किसी अन्य टीम द्वारा विकसित किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ये घटक सुचारू रूप से एक साथ संचालित हो सकें, उचित समन्वय और परीक्षण की आवश्यकता होती है।
      • CPS को लागू करने की एक और चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि ये सुरक्षित होने के साथ साइबर हमलों के प्रति प्रतिरोधी हैं। जैसे-जैसे ये प्रणालियाँ इंटरनेट से अधिक संबंधित होती जाती हैं, ये साइबर-हमलों के प्रति संवेदनशील होती जाती हैं जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
        • उदाहरण के लिये, किसी हैकर द्वारा CPS को नियंत्रण किया जा सकता है जिससे व्यापक व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
      • इन चुनौतियों के बावजूद, CPS का कार्यान्वयन पहले से ही विभिन्न प्रकार के उद्योगों में किया जा रहा है।
        • इसका एक उदाहरण विनिर्माण उद्योग में CPS का उपयोग होना है।
          • आधुनिक कारखाने में CPS का उपयोग उत्पादन प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने और डाउनटाइम को कम करने के लिये मशीनों, रोबोटों और अन्य उपकरणों की निगरानी एवं नियंत्रण के लिये किया जा सकता है।
          • वास्तविक समय में उत्पादन प्रक्रिया की निगरानी के लिये सेंसर और सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, निर्माता समस्याओं को जल्दी से पहचानने और ठीक करने के साथ अपशिष्ट को कम कर सकते हैं और गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।
        • इसका एक अन्य उदाहरण परिवहन में CPS का उपयोग होना है। स्वचालित कार में CPS के उपयोग से वाहन को नियंत्रित करने के लिये सेंसर और एल्गोरिदम का नेटवर्क एक साथ काम करता है।
      • इन प्रणालियों को मानव चालकों की तुलना में अधिक सुरक्षित और कुशल बनाने के लिये डिज़ाइन किया गया है लेकिन इनके कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि इनकी सटीकता और विश्वसनीयता में सुधार की आवश्यकता के साथ इनके सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने के लिये नियमों और नीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है।
    • CPS से संबंधित कई उपाय हैं जिन पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है जैसे:
      • परीक्षण और सत्यापन करना: CPS के परीक्षण द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि यह सही ढंग से कार्य करने के साथ आवश्यक विनिर्देशों को पूरा करने में सक्षम है। इसमें भौतिक घटकों और उन्हें नियंत्रित करने वाले सॉफ़्टवेयर दोनों का परीक्षण किया जाना शामिल है। डिज़ाइन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में परीक्षण करने के साथ इस प्रणाली से संबंधित किसी भी मुद्दे को हल किया जाना चाहिये।
      • जोखिम मूल्यांकन: इस प्रणाली में संभावित सुरक्षा खतरों की पहचान करने के लिये इसका जोखिम मूल्यांकन किया जाना चाहिये। इसमें इस प्रणाली के कमजोर बिंदु के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करना शामिल हो सकता है।
      • नियमित अपडेट करते रहना: ज्ञात कमियों को हल करने के लिये इस प्रणाली को नियमित अपडेट करते रहना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    CPS के कार्यान्वयन से महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होने के साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये इंजीनियरों, कंप्यूटर वैज्ञानिकों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन प्रणालियों को सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से डिज़ाइन और कार्यान्वित किया गया है।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैनो तकनीक का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रक में क्रांति लाने में नैनो तकनीक के योगदान की चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • नैनो तकनीक में बीमारियों के निदान, उपचार और रोकथाम के लिये नए और उन्नत उपकरणों के विकास द्वारा स्वास्थ्य सेवा में क्रांति लाने की क्षमता है। नैनोटेक्नोलॉजी में अद्वितीय और वांछनीय गुणों को प्राप्त करने के लिये नैनोस्केल स्तर (1 से 100 नैनोमीटर) पर पदार्थों की डिज़ाइन एवं संश्लेषण करना शामिल है।

    मुख्य भाग:

    • नैनो तकनीक का पहले से ही स्वास्थ्य सेवा में उपयोग किया जा रहा है और यह भविष्य में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रक को संभावित रूप से बदलने में सक्षम है जैसे:
      • बेहतर निदान: नैनोकणों को विशिष्ट जैविक अणुओं जैसे रोग मार्कर या कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है जिससे रक्त या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों से इनका पता लगाना आसान हो जाता है। इससे बीमारियों का पहले और अधिक सटीक निदान हो सकता है, जिससे उपचार के परिणामों में काफी सुधार हो सकता है।
      • लक्षित दवा को प्रोत्साहन मिलना: नैनोकणों को विशेष रूप से रोगग्रस्त कोशिकाओं या ऊतकों को लक्षित करने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है। इससे स्वस्थ ऊतक को कम नुकसान होने के साथ सीधे बीमार अंग तक दवाएँ पहुँचाई जा सकती हैं। इससे कम साइड इफेक्ट होने के साथ अधिक प्रभावी उपचार हो सकता है।
      • पुनर्योजी चिकित्सा: नैनो तकनीक का उपयोग उन पदार्थों को विकसित करने के लिये किया जा सकता है जो हड्डी या उपास्थि जैसे प्राकृतिक ऊतकों का कार्य कर सकते हैं। इन पदार्थों का उपयोग क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत या उन्हें बदलने के लिये किया जा सकता है जिससे पुनर्योजी चिकित्सा के लिये नई संभावनाएँ विकसित हो सकती हैं।
      • उपयोग में सुलभ सेंसर और डिवाइस विकसित करना: वास्तविक समय में स्वास्थ्य की स्थिति की निगरानी के लिये नैनो सेंसर को स्मार्टवॉच या फिटनेस ट्रैकर जैसे पहनने योग्य उपकरणों में शामिल किया जा सकता है। इससे स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाना आसान हो सकता है।
      • नैनोरोबोट्स: नैनोरोबोट्स को सटीक चिकित्सा कार्यों को करने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है, जैसे सेलुलर स्तर पर दवाओं को वितरित करना या क्षतिग्रस्त ऊतक की मरम्मत करना।
    • स्वास्थ्य सेवा में नैनो तकनीक के संभावित लाभों के बावजूद इससे संबंधित संभावित जोखिम और चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है।
      • उदाहरण के लिये नैनोकणों की सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर इनके संभावित प्रभावों को अभी भी अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है। स्वास्थ्य सेवा में नैनो तकनीक के उपयोग से जुड़े नैतिक विचारों पर भी सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    स्वास्थ्य सेवा में क्रांति लाने में नैनो तकनीक में काफी संभावनाएँ हैं और इस क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान और विकास से हमारे समय की कुछ सबसे प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के लिये नए और अभिनव समाधान मिल सकते हैं।

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