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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

सितंबर 2019

  • 26 Oct 2019
  • 64 min read

पीआरएस की प्रमुख हाइलाइट्स

  • वित्त
    • टैक्सेशन कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019
    • फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी संबंधी मुद्दों पर गठित स्टीयरिंग कमेटी की रिपोर्ट
    • कुछ श्रेणियों के ऋण के लिये एक्सटर्नल बेंचमार्किंग अनिवार्य
    • कॉर्पोरेट ऋण के लिये सेकेंडरी मार्केट के विकास पर गठित टास्क फोर्स
    • लिक्विडिटी मैनेजमेंट फ्रेमवर्क पर गठित इंटरनल वर्किंग ग्रुप
    • प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग के अंतर्गत निर्यात ऋण के वर्गीकरण की सीमा में वृद्धि
    • सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर वर्किंग ग्रुप का गठन
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
    • ई-सिगरेट पर प्रतिबंध अध्यादेश, 2019 जारी
    • स्वास्थ्यकर्मियों से हिंसा को प्रतिबंधित करने वाला ड्राफ्ट बिल
  • गृह मामले
    • असम में एनआरसी दावा प्रक्रिया में संशोधन
    • एफसीआरए नियमों में संशोधन अधिसूचित
  • कृषि
    • एपीएमसी व्यापारियों को टैक्स से छूट
    • खरीफ मौसम 2019-20 के लिये अग्रिम अनुमान जारी
  • संचार
    • नॉन पर्सनल डेटा के रेगुलेशन हेतु कमेटी ऑफ एक्सपर्ट्स की नियुक्ति
    • इंटरकनेक्शन यूसेज की समीक्षा
  • आदिवासी मामले
    • लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का सुझाव
  • विज्ञान और तकनीक
    • वैज्ञानिक सामाजिक ज़िम्मेदारी नीति
  • नागरिक उड्डयन
    • एयरक्राफ्ट नियम, 1937 का मसौदा संशोधन
  • रेलवे
    • मालवहन संबंधी प्रोत्साहनों की घोषणा
  • ऊर्जा
    • ट्रांसमिशन के उपयोग से प्राप्त राजस्व को दूसरे व्यवसायों से साझा करने पर केंद्रित ड्राफ्ट रेगुलेशन
    • विकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र के विकास पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश
  • दक्षता विकास
    • अप्रेंटिसशिप नियम, 1992 में संशोधन अधिसूचित
  • सूचना और प्रसारण
    • बधिरों के लिये टेलीविज़न कार्यक्रमों हेतु सुगमता संबंधी मानक जारी
  • विदेशी मामले
    • राष्ट्रपति का स्लोवेनिया दौरा
    • मंगोलिया के राष्ट्रपति का भारत दौरा
    • प्रधानमंत्री के रूस दौरे के दौरान वाणिज्यिक दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षऱ
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन

वित्त

टैक्सेशन कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019

टैक्सेशन कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019 [Taxation Laws (Amendment) Ordinance, 2019] जारी किया गया। यह अध्यादेश इनकम टैक्स एक्ट, 1961 और फाइनेंस (संख्या 2) एक्ट, 2019 में संशोधन करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • घरेलू कंपनियों के लिये इनकम टैक्स की दर: वर्तमान में 400 करोड़ रुपए तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियाँ 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाती हैं। दूसरी घरेलू कंपनियों के लिये यह दर 30% है। अध्यादेश में प्रावधान है कि अगर घरेलू कंपनियाँ इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा नहीं करतीं तो उनके पास 22% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प है। इनमें निम्नलिखित के लिये प्रदत्त कटौतियाँ शामिल हैं: (i) स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन्स के अंतर्गत स्थापित नई यूनिट्स, (ii) अधिसूचित पिछड़े क्षेत्रों में नए संयंत्र या मशीनरी में निवेश करना, (iii) वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि विस्तारीकरण और कौशल विकास के प्रोजेक्ट्स पर व्यय, (iv) नए संयंत्र या मशीनरी का ह्रास (कुछ मामलों में) और (v) इनकम टैक्स एक्ट के विभिन्न प्रावधान (अध्याय VI-ए के अंतर्गत, नए कर्मचारियों के रोज़गार के लिये प्रदत्त कटौतियों को छोड़कर)।
  • नई घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिये इनकम टैक्स की दर: अध्यादेश में प्रावधान है कि अगर नई घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियाँ एक्ट के अंतर्गत (उपरोक्त के अनुसार) कुछ कटौतियों का दावा नहीं करतीं, तो वे 15% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प चुन सकती हैं। नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में ऐसी कंपनियाँ शामिल हैं जो कि 30 सितंबर, 2019 के बाद बनाई और रजिस्टर की जाएंगी और 1 अप्रैल, 2023 से पहले उत्पादन शुरू कर देंगी। इनमें निम्नलिखित कंपनियाँ शामिल नहीं होंगी: (i) मौजूदा व्यापार के विभाजन या पुनर्निर्माण से बनी कंपनियाँ, (ii) मैन्युफैक्चरिंग के अलावा दूसरे व्यापार में संलग्न और (iii) भारत में पहले इस्तेमाल होने वाले संयंत्र या मशीनरी का प्रयोग करने वाली कंपनियाँ (कुछ विशिष्ट शर्तों को छोड़कर)।
  • टैक्स की नई दरों की एप्लिकेबिलिटी: कंपनियाँ 2019-20 के वित्तीय वर्ष से नई टैक्स दरों (यानी आकलन वर्ष 2020-21) का विकल्प चुन सकती हैं। एक बार विकल्प चुनने के बाद आगे के वर्षों में यही विकल्प लागू होगा।
  • टैक्स की नई दरों पर सरचार्ज: वर्तमान में एक से 10 करोड़ रुपए के बीच की आय वाली घरेलू कंपनियों को टैक्स पर 7% सरचार्ज देना होता है। 10 करोड़ रुपए से अधिक की आय वाली कंपनियों को 12% सरचार्ज देना होता है। अध्यादेश में प्रावधान है कि नई टैक्स दरों (15% या 22%, जो भी लागू हो) को चुनने वाली कंपनियों को संबंधित प्रावधान के अंतर्गत 10% सरचार्ज देना होगा।

फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी संबंधी मुद्दों पर गठित स्टीयरिंग कमेटी की रिपोर्ट

फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी (Financial Technology) संबंधी मुद्दों पर गठित स्टीयरिंग कमेटी ( Steering Committee)(अध्यक्ष: सुभाष चंद्र गर्ग) ने वित्त मंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी से संबंधित रेगुलेशनों को अधिक फ्लेक्ज़िबल बनाने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये मार्च 2018 में कमेटी का गठन किया गया था। फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी, तकनीक आधारित उन व्यापारों को कहते हैं जो वित्तीय संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं और उनके साथ सहयोग भी करते है। कमेटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी सेवाओं का विस्तारीकरण: कमेटी ने उन उभरती हुई तकनीकों पर गौर किया जो कि फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी के एनेबलर के रूप में काम करती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) डेटा-फोकस्ड टेक्नोलॉजी, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और बायोमैट्रिक्स, (ii) ऑपरेशनल एक्सीलेंस टेक्नोलॉजी, जैसे-डिस्ट्रिब्यूटेड लेज़र टेक्नोलॉजी और चैटबोट्स, (iii) इंफ्रास्ट्रक्चरल एनेबलर्स, जैसे-ओपन एप्लीकेशन प्रोग्राम इंटरफेस और (iv) फ्रंट-एंड इंटरफेस जैसे गैमिफिकेशन या ऑग्मेंटेड और वर्चुअल रियलिटी।

  • फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी के दायरे को बढ़ाने के लिये कमेटी ने निम्नलिखित सुझाव दिये: (i) साइबर सुरक्षा को मज़बूती देने, धोखाधड़ी एवं मनी लॉन्ड्रिंग को नियंत्रित करने के लिये फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल, (ii) भारत में वर्चुअल बैंकिंग की उपयुक्तता की जाँच और (iii) फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट्स की डीमैटीरियलाइजिंग (फिजिकल सर्टिफिकेट्स को इलेक्ट्रॉनिक रूप में बदलना)।
  • फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत कार्रवाइयाँ: फाइनेंसियल सर्विसेज़ और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विभाग को ऑटोमेटिंग बैक-एंड प्रक्रियाओं के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग की संभावनाओं को तलाशना चाहिये। इसके अतिरिक्त एमएसएमई मंत्रालय को विभाग और आरबीआई के साथ सहयोग करना चाहिये ताकि एमएसएमई के लिये व्यापारिक वित्तपोषण हेतु ब्लॉकचेन समाधानों को लागू किया जा सके। सरकार को देश में भूमि रिकॉर्ड्स के आधुनिकीकरण और मानकीकरण का काम करना चाहिये जो कि तीन वर्ष की अवधि में पूरा हो जाए।
  • प्रशासनिक उपाय: कमेटी ने सुझाव दिया कि चूँकि फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी एक उभरता हुआ क्षेत्र है, इसलिये सरकार को जोखिमों और लाभ की साझा जानकारियों के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग करना चाहिये। वित्त क्षेत्र से जुड़े सभी रेगुलेटरों को फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी पर एक सलाहकारी परिषद की स्थापना करनी चाहिये ताकि उद्योग के विशेषज्ञों को साथ लाया जा सके। इसके अतिरिक्त फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी पर अंतर-मंत्रालयी समूह का गठन किया जाना चाहिये। यह समूह फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी सर्विसेज़ को एनेबल करने वाली तकनीकों के कार्यान्वयन की संभावनाएँ तलाशेगा।
  • कमेटी ने कहा कि फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी उद्योग के उभरने से निजता और डेटा सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित ड्राफ्ट डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2018 का फाइनेंसियल टेक्नोलॉजी क्षेत्र के विकास पर दीर्घावधि में बहुत हैं।

कुछ श्रेणियों के ऋण के लिये एक्सटर्नल बेंचमार्किंग अनिवार्य

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने 1 अक्तूबर, 2019 से बैंकों के लिये सभी नए (क) फ्लोटिंग रेट पर्सनल या रीटेल ऋण (हाउसिंग और ऑटो ऋण सहित) और (ख) एमएसएमई के फ्लोटिंग रेट ऋण को एक्सटर्नल बेंचमार्क (External Benchmark) से लिंक करना अनिवार्य कर दिया है। फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) ऋण वे ऋण होते हैं जिनके ब्याज की दर परिवर्तनशील होती है। वर्तमान में बैंकों की ऋण दरें या तो फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट के बेस रेट या मार्जिनल कॉस्ट पर आधारित होती हैं।

  • बैंक निम्नलिखित एक्सटर्नल बेंचमार्क्स में से किसी को चुन सकते हैं:(i) आरबीआई रेपो रेट (जिस दर पर कमर्शियल बैंकों से उधार लेता है), (ii) 3 से 6 महीने का ट्रेज़री बिल यील्ड या कोई दूसरा बेंचमार्क मार्केट इंटरेस्ट रेट जिसे फाइनेंसियल बेंचमार्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने प्रकाशित किया हो। बैंकों को बेंचमार्क रेट से कम पर उधार देने की अनुमति नहीं है।
  • बैंकों को लोन की किसी श्रेणी में यूनिफॉर्म एक्सटर्नल बेंचमार्क को अपनाना होता है। हालाँकि उन्हें एक्सटर्नल बेंचमार्क में स्प्रेड तय करने की आज़ादी है। स्प्रेड बेंचमार्क रेट से ऊपर की ब्याज दर होती है जो रिस्क प्रीमियम से तय होता है। इसके अतिरिक्त बैंकों को दूसरे प्रकार के उधारकर्त्ताओं को ऐसे एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड ऋण देने की आज़ादी होती है। बैंकों को हर तीन महीने में कम-से-कम एक बार एक्सटर्नल बेंचमार्क के अंतर्गत ब्याज दर पुनर्गठित करनी होती है।
  • मौजूदा फ्लोटिंग रेट ऋण वाले उधारकर्त्ता, जो कि प्री-पेमेंट चार्ज दिये बिना पूर्व-भुगतान के पात्र होते हैं, शुल्क या फीस (उपयुक्त प्रशासनिक/कानूनी लागत के अतिरिक्त) के बिना एक्सटर्नल बेंचमार्क का प्रयोग कर सकेंगे। इस परिवर्तन के बाद इन उधारकर्त्ताओं से वसूली जाने वाली दर, ऋण की शुरुआत के समय कुछ विशिष्टताओं (श्रेणी, अवधि, राशि) के साथ नए लोन के लिये ली जाने वाली दर के बराबर होगी।
  • उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने 2017 में मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट के कामकाज की समीक्षा के लिये इंटरनल स्टडी ग्रुप का गठन किया था। अपनी रिपोर्ट में ग्रुप ने कहा था कि इंटरनल बेंचमार्क, जैसे बेस रेट और फंड्स- बेस्ड लेंडिंग रेट की मार्जिनल कॉस्ट ने मौद्रिक नीति का कारगर हस्तांतरण नहीं किया। समूह ने समयबद्ध तरीके से एक्सटर्नल बेंचमार्क में परिवर्तन का सुझाव दिया।

कॉर्पोरेट ऋण के लिये सेकेंडरी मार्केट के विकास पर गठित टास्क फोर्स

कॉर्पोरेट ऋण ( Corporate Loans ) के लिये सेकेंडरी मार्केट ( Secondary Market) के विकास पर गठित टास्क फोर्स (अध्यक्ष: टी.एन. मनोहरन) ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। मई 2019 में इस कमेटी का गठन किया गया था। कॉर्पोरेट ऋण के लिये सेकेंडरी मार्केट ऐसा मार्केटप्लेस होता है जहाँ ऋण का ट्रेड किया जा सकता है। टास्क फोर्स ने कहा कि सक्रिय सेकेंडरी मार्केट से बैंकों और उधारकर्त्ताओं, दोनों को लाभ होता है और इससे अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त ऋण सृजन होता है। इससे बैंकों को कैपिटल ऑप्टिमाइजेशन, लिक्विडिटी और रिस्क मैनेजमेंट में मदद मिलेगी। इससे उधारकर्त्ताओं को कम लागत पर पूंजी और अधिक ऋण उपलब्धता का लाभ मिलेगा।

टास्क फोर्स ने कहा कि सिक्योरिटाइजेशन मार्केट (जिसमें पूलिंग सिक्योरिटीज़ और उनकी सेकेंडरी मार्केट में ट्रेडिंग शामिल है) मुख्य रूप से रीटेल सेगमेंट तक सीमित है और कॉर्पोरेट लोन मार्केट का बहुत अधिक विकास नहीं हो रहा। उसने कई कारकों की पहचान की, जो सेकेंडरी मार्केट के विकास को बाधित करते हैं, जैसे- मानकीकरण की कमी, सक्रिय प्रतिभागियों और रेगुलेटरी प्रतिबंधों की कमी। टास्क फोर्स के प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • टास्क फोर्स ने उल्लेख किया कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सेल्फ रेगुलेटरी संगठनों ने सेकेंडरी मार्केट के विकास में सहायता की है। इनमें यूएस में लोन सिंडिकेशन एंड ट्रेडिंग एसोसिएशन, यूरोप में लोन मार्केट एसोसिएशन और एशिया प्रशांत क्षेत्र में एशिया पैसिफिक लोन मार्केट एसोसिएशन शामिल हैं। ये लोन डॉक्यूमेंटेशन और प्रैक्टिसेज़ के मानकीकरण में सहायक रहे हैं। टास्क फोर्स ने भारत में भी ऐसे ही एक सेल्फ रेगुलेटरी निकाय की स्थापना का सुझाव दिया।
  • टास्क फोर्स ने कहा कि वर्तमान में इस संबंध में कोई पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री नहीं है। उसने केंद्रीय लोन कॉन्ट्रैक्ट रजिस्ट्री और सेकेंडरी लोन मार्केट्स के लिये एक ऑनलाइन लोन सेल्स प्लेटफॉर्म को स्थापित करने का सुझाव दिया।
  • टास्क फोर्स ने सुझाव दिया कि गैर-बैंकिंग संस्थाओं जैसे पंजीकृत म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और पेंशन फंड को भी लिक्विडिटी प्रदान करने के लिये सेकेंडरी मार्केट में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिये। ऐसा सेबी तथा भारतीय बीमा और नियामक विकास प्राधिकरण सहित रेगुलेटरों द्वारा जारी किये गए नियमों में उपयुक्त संशोधन लाकर किया जा सकता है।

लिक्विडिटी मैनेजमेंट फ्रेमवर्क पर गठित इंटरनल वर्किंग ग्रुप

मौजूदा लिक्विडिटी मैनेजमेंट फ्रेमवर्क (Liquidity Management Framework) की समीक्षा हेतु गठित आरबीआई के इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। लिक्विडिटी मैनेजमेंट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रणाली में पर्याप्त लिक्विडिटी हो ताकि अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक क्षेत्रों को पर्याप्त ऋण प्रदान किया जा सके। फ्रेमवर्क का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि टार्गेट इंटर-बैंक रेट पॉलिसी रेट (यानी रेपो दर) के करीब है। टार्गेट इंटर-बैंक रेट आमतौर पर वह दर होती है, जिस पर बैंकों से ऋण लिया जाता है या उधार दिया जाता है, जिसे कॉल मनी मार्केट रेट भी कहा जाता है। यहाँ लिक्विडिटी आरबीआई की लिक्विडिटी को संदर्भित करती है जिसे बैंकों को आरबीआई के साथ बरकरार रखना ज़रूरी होता है।

अपनी रिपोर्ट में वर्किंग ग्रुप ने प्रस्तावित लिक्विडिटी फ्रेमवर्क के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं:

  • फ्रेमवर्क: लिक्विडिटी फ्रेमवर्क दो प्रकार के होते हैं: कॉरिडोर प्रणाली और फ्लोर प्रणाली। कॉरिडोर प्रणाली केंद्रीय बैंक की उधार (रेपो) दर और जमा (रिवर्स रेपो) दर को लक्षित करती है, जबकि फ्लोर प्रणाली केवल जमा दर को लक्षित करती है। बैंक, केंद्रीय बैंक से कम ब्याज दर पर बाज़ार में पैसा उधार नहीं देंगे और केंद्रीय बैंक के शुल्क से अधिक दर पर पैसा उधार नहीं लेंगे, कॉरिडोर प्रणाली इंटर-बैंक बाज़ार दर के लिये सीलिंग और फ्लोर दोनों की स्थापना करती है। वर्किंग ग्रुप ने गौर किया कि कॉरिडोर प्रणाली लिक्विडिटी की कमी के साथ-साथ अधिशेष की स्थितियों के प्रबंधन के लिये फ्लेक्सिबिलिटी देती है। इसके अतिरिक्त यह ध्यान दिया कि रेपो दर मौद्रिक नीति समिति द्वारा निर्धारित पॉलिसी रेट है। इन कारणों से उसने कॉरिडोर प्रणाली के आधार पर लिक्विडिटी मैनेजमेंट की वर्तमान प्रणाली को जारी रखने का सुझाव दिया।
  • कॉरिडोर प्रणाली की सीमाएँ: वर्किंग ग्रुप ने कहा कि पॉलिसी रेट के करीब इंटर-बैंक रेट को लक्षित करने के लिये कॉरिडोर प्रणाली को सामान्य रूप से सिस्टम की लिक्विडिटी की आवश्यकता कम होती है (जहाँ बैंकिंग प्रणाली के पास आवश्यक रिज़र्व से कम पैसा होता है और केंद्रीय बैंक से उधार लेने की ज़रूरत होती है)। ग्रुप ने सुझाव दिया कि अगर वित्तीय स्थिति लिक्विडिटी अधिशेष की स्थिति बताती है तो फ्रेमवर्क को अनुकूल होना चाहिये।
  • वैकल्पिक उपाय: ओपन मार्केट ऑपरेशंस और विदेशी मुद्रा स्वैप के अतिरिक्त वर्किंग ग्रुप ने लिक्विडिटी के लिये बाज़ार से संबंधित दरों पर लंबी अवधि (1 वर्ष तक) के रेपो ऑपरेशंस का सुझाव दिया।
  • एश्योर्ड लिक्विडिटी: वर्किंग ग्रुप ने सुझाव दिया कि 1% तक की लिक्विडिटी का मौजूदा प्रावधान, जिसे बैंकों को बरकरार रखना है, अब ज़रूरी नहीं है क्योंकि लिक्विडिटी की ज़रूरतें लिक्विडिटी फ्रेमवर्क से पूरी हो जाएंगी।

प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग के अंतर्गत निर्यात ऋण के वर्गीकरण की सीमा में वृद्धि

भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग (Priority Sector Lending) के अंतर्गत निर्यात ऋण के वर्गीकरण की सीमा 25 करोड़ रुपए प्रति उधारकर्त्ता से बढ़ाकर 40 करोड़ रुपए प्रति उधारकर्त्ता कर दी है। इसके अतिरिक्त 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली इकाइयों का मौजूदा मानदंड हटा दिया गया है। वर्तमान मानदंडों के अनुसार, घरेलू बैंकों द्वारा निर्यात ऋण को केवल 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली इकाइयों के लिये प्रायोरिटी सेक्टर के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग के अंतर्गत बैंकों (20 और उससे अधिक शाखाओं वाले घरेलू और विदेशी बैंकों) को कुछ प्रायोरिटी सेक्टरों के लिये 40% बैंक क्रेडिट देना आवश्यक है। इनमें कृषि, एमएसएमई, निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी ढाँचा और नवीकरणीय ऊर्जा शामिल हैं।

सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर वर्किंग ग्रुप का गठन

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सोशल स्टॉक एक्सचेंजों ( Social Stock Exchanges) पर एक वर्किंग ग्रुप (अध्यक्ष: इशात हुसैन) का गठन किया है। वर्किंग ग्रुप सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों द्वारा धन जुटाने की सुविधा के लिये संभावित संरचनाओं और तंत्रों के संबंध में जाँच करेगा और सुझाव देगा।

उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री ने बजट अभिभाषण 2019-20 में सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध करने के लिये सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज बनाने हेतु कदम उठाने का प्रस्ताव दिया था।


स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

ई-सिगरेट पर प्रतिबंध अध्यादेश, 2019

इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स पर प्रतिबंध (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, स्टोरेज और विज्ञापन) अध्यादेश, 2019 [Prohibition of Electronic Cigarettes (Production, Manufacture, Import, Export, Transport, Sale, Distribution, Storage, and Advertisement] Ordinance, 2019 ) को जारी किया गया। अध्यादेश इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स के उत्पादन, व्यापार, स्टोरेज, परिवहन और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है।

  • इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स: इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (ई-सिगरेट्स) एक बैटरी चालित उपकरण होता है जो कि किसी पदार्थ को गर्म करता है ताकि कश लेने के लिये वाष्प पैदा हो। ई-सिगरेट्स में निकोटिन और फ्लेवर हो सकते हैं और इनमें इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम के सभी प्रकार, हीट-नॉट बर्न उत्पाद, ई-हुक्का और ऐसे ही दूसरे उपकरण शामिल हैं।
  • ई-सिगेट्स पर प्रतिबंध: अध्यादेश भारत में ई-सिगरेट्स के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक का कारावास भुगतना पड़ेगा या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा या दोनों सज़ा भुगतनी होगी। एक से अधिक बार अपराध करने पर तीन वर्ष तक का कारावास भुगतना पड़ेगा और पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा।
  • ई-सिगेट्स का स्टोरेज: ई-सिगरेट्स के स्टॉक के स्टोरेज के लिये कोई व्यक्ति किसी स्थान का प्रयोग नहीं कर सकता। अगर कोई व्यक्ति ई-सिगेट्स का स्टॉक रखता है तो उसे छह महीने तक का कारावास भुगतना होगा या 50,000 रुपए तक का जुर्माना भरना होगा, या दोनों सज़ा भुगतनी पड़ेगी।

स्वास्थ्यकर्मियों से हिंसा को प्रतिबंधित करने वाला ड्राफ्ट बिल

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में स्वास्थ्यकर्मियों से हिंसा और क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट्स की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के मामलों से निपटने के लिये एक मसौदा बिल जारी किया है। मसौदा बिल की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • हिंसा पर प्रतिबंध: मसौदा बिल डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल वर्कर्स और एंबुलेंस ड्राइवर्स सहित स्वास्थ्यकर्मियों से हिंसा को प्रतिबंधित करता है। यह अस्पतालों, क्लिनिकों और एंबुलेंस को नुकसान पहुँचाने को भी प्रतिबंधित करता है।
  • जुर्माना: ऐसा व्यक्ति जो हिंसा करता है या हिंसा के लिये उकसाता है, उसे छह महीने से लेकर पाँच वर्ष तक की सज़ा हो सकती है और पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। अगर कोई व्यक्ति किसी स्वास्थ्यकर्मी को गंभीर चोट पहुंचाता है तो उसे तीन वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की सज़ा भुगतनी होगी और दो लाख रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भरना होगा।
  • मसौदा बिल के अंतर्गत अपराध की सज़ा के अतिरिक्त अपराधी को प्रभावित पक्षों को मुआवज़ा भी चुकाना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) क्षतिग्रस्त संपत्ति के बाज़ार मूल्य से दोगुनी राशि का भुगतान, (ii) स्वास्थ्यकर्मी को नुकसान पहुँचाने की एवज में एक लाख रुपए और (iii) स्वास्थ्यकर्मी को गंभीर चोट पहुँचाने की एवज में पाँच लाख रुपए।
  • अपराधों का संज्ञान: मसौदा बिल के अंतर्गत सभी अपराध संज्ञेय (यानी पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है) और गैर-जमानती होंगे। पीड़ित स्वास्थ्यकर्मी क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट के पर्सन-इन-चार्ज को लिख सकता है कि वह मसौदा बिल के अंतर्गत किये गए अपराध की सूचना पुलिस को दे। इसके अतिरिक्त मसौदा बिल के अंतर्गत पंजीकृत किसी मामले की जाँच डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस और उससे उच्च पद के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी।

गृह मामले

असम में एनआरसी दावा प्रक्रिया में संशोधन जारी

गृह मामलों के मंत्रालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश, 1964 [Foreigners (Tribunal) Order, 1964] में संशोधन जारी किये हैं। नागरिकता (नागरिकता का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र) आदेश, 2003 [Citizenship (Registration of Citizenship and National Identity Card) Rules, 2003] के अंतर्गत असम में राष्ट्रीय भारतीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया जा रहा है। जिन लोगों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं हैं या गलत तरीके से शामिल किये गए हैं, वे नागरिक पंजीकरण के स्थानीय रजिस्ट्रार को शिकायत कर सकते हैं। रजिस्ट्रार के फैसले के खिलाफ 120 दिनों के भीतर 1964 के आदेश के अंतर्गत गठित ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है। 1964 के आदेश में एनआरसी दावा प्रक्रिया के संबंध में कुछ संशोधनों को अधिसूचित किया गया है। मुख्य संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अपील दायर करने पर प्रक्रिया: आदेश कहता है कि अगर कोई व्यक्ति ट्रिब्यूनल में अपील दायर करता है तो इसी के साथ ज़िला मेजिस्ट्रेट यह मामला ट्रिब्यूनल को भेज सकता है कि क्या व्यक्ति विदेशी है (यानी भारत का नागरिक नहीं है)। ट्रिब्यूनल दोनों मामलों पर एक साथ फैसला करेगा। संशोधन इन प्रावधानों को हटाता है और कहता है कि अगर ट्रिब्यूनल इस अपील को रद्द करता है तो उसे यह फैसला भी करना होगा कि क्या व्यक्ति विदेशी एक्ट, 1946 के अंतर्गत विदेशी है।
  • अपील दायर न करने पर प्रक्रिया: आदेश के अनुसार, अगर अपील दायर नहीं की जाती है तो इस स्थिति में केंद्र या राज्य सरकार या ज़िला मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल को यह मामला भेज सकता है कि क्या व्यक्ति विदेशी है। संशोधन इस प्रावधान को हटाता है और कहता है कि अगर व्यक्ति अपील दायर नहीं करता तो उसके विदेशी होने के सवाल को केवल ज़िला मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल के पास भेज सकता है।

एफसीआरए नियमों (FCRA Rules) में संशोधन अधिसूचित

गृह मामलों के मंत्रालय ने विदेशी योगदान (रेगुलेशन) एक्ट, 2017 [Foreign Contribution (Regulation) Act, 2017] के अंतर्गत नियमों में संशोधनों को अधिसूचित किया है। एक्ट कुछ निश्चित व्यक्तियों और संगठनों द्वारा विदेशी योगदान या विदेशी हास्पिटैलिटी की प्राप्ति को रेगुलेट करता है। मुख्य संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • एक्ट के अंतर्गत विदेशी योगदान की इच्छुक पात्र संस्थाओं (निश्चित सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम वाली) को सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन के लिये आवेदन करना होता है। अगर यह सर्टिफिकेट नहीं मिलता, तो पात्र संस्थाएँ केंद्र सरकार से इस बात की पूर्व अनुमति ले सकती हैं कि उन्हें विशिष्ट स्रोत से और विशिष्ट उद्देश्य के लिये विदेशी योगदान हासिल करना है।
  • नियम सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन या पूर्व अनुमति के लिये आवेदन के प्रकारों को निर्दिष्ट करते हैं। संशोधनों में ऐसी संस्थाओं के मुख्य पदाधिकारियों से यह अतिरिक्त रूप से अपेक्षा की गई है कि वे एक एफिडेविड जमा कराएंगे जिसमें यह पुष्टि की गई हो कि उन्होंने एक्ट के अंतर्गत सर्टिफिकेट देने से जुड़ी सभी शर्तें पूरी की हैं। इन शर्तों में यह भी शामिल है कि धर्मांतरण कराने या सांप्रदायिक तनाव और विसंगति पैदा करने के लिये उन पर मुकदमा नहीं चलाया गया है या उन्हें ऐसे मामलों में दोषी नहीं माना गया है।
  • नियमों के अनुसार, एक्ट के अंतर्गत 25,000 रुपए तक के बाज़ार मूल्य के व्यक्तिगत उपहारों को ‘विदेशी योगदान’ नहीं माना जाता। संशोधन इस सीमा को 25,000 रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए करता है।
  • एक्ट कुछ विशिष्ट श्रेणी के व्यक्तियों (जैसे विधायक-सांसद, जज और सरकारी एवं पीएसयू के कर्मचारी) के लिये विदेशी स्रोत (जैसे विदेशी सरकार या निगम) से हास्पिटैलिटी लेने को प्रतिबंधित करता है, बशर्ते व्यक्ति ने केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति ली हो। हालाँकि अगर व्यक्ति विदेश में एकाएक बीमार पड़ जाता है तो विदेशी हास्पिटैलिटी लेने के लिये पूर्व अनुमति की ज़रूरत नहीं है। ऐसे मामले में व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह हास्पिटैलिटी लेने के 60 दिनों के भीतर सरकार को सूचित करेगा। संशोधन इस समयावधि को 60 दिनों से कम करके एक महीने करता है। उल्लेखनीय है कि एक्ट में हास्पिटैलिटी हासिल करने के लिये 30 दिन की समयावधि दी गई है।

कृषि

एपीएमसी (APMC ) व्यापारियों को टैक्स से छूट

वित्त मंत्रालय ने कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) के अंतर्गत काम करने वाले व्यापारियों और कमीशन एजेंटों को एक करोड़ रुपए से अधिक नकद निकासी पर दो प्रतिशत टैक्स वसूली से छूट दी है। इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत वित्तीय वर्ष में एक करोड़ रुपए से अधिक की नकद निकासी पर बैंक और पोस्ट ऑफिस यह टैक्स काटते हैं। एक्ट में केंद्र सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह आरबीआई की सलाह से कुछ व्यक्तियों या व्यक्ति समूहों को इस टैक्स से छूट दे सकती है।

एपीएमसी से संबंधित किसी कानून के अंतर्गत पंजीकृत व्यापारी और कमीशन एजेंट इस छूट के लिये पात्र हैं। इसके अतिरिक्त छूट हासिल करने वाले व्यापारी या कमीशन एजेंट से बैंक या पोस्ट ऑफिस में यह सर्टिफाई करने की अपेक्षा की जाती है कि वे कृषि उपज की खरीद हेतु किसानों को भुगतान करने के लिये इस धनराशि की निकासी कर रहे हैं।

खरीफ मौसम 2019-20 के लिये अग्रिम अनुमान जारी

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खरीफ मौसम 2019-20 के लिये खाद्यान्न और वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान जारी किये। तालिका 2 में खरीफ 2018-19 के अनुमानों की तुलना खरीफ 2019-20 के पहले अग्रिम अनुमानों से की गई है। यहाँ कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं:

  • खरीफ 2018-19 की तुलना में खरीफ 2019-20 में खाद्यान्न उत्पादन में 0.8% की गिरावट हुई। यह गिरावट मुख्य रूप से चावल के उत्पादन में 1.7% की गिरावट के कारण हुई। मोटे अनाज के उत्पादन में 3.3% की वृद्धि अनुमानित है जबकि दालों में 4.2% की गिरावट का अनुमान है।
  • खरीफ 2018-19 की तुलना में खरीफ 2019-20 में तिलहन के उत्पादन में 5.2% की वृद्धि का अनुमान है। दूसरी ओर मूँगफली के उत्पादन में 17.7% की वृद्धि और सोयाबीन के उत्पादन में 2% की गिरावट अनुमानित है।
  • 2019-20 में कपास के उत्पादन में 12.4% की वृद्धि का अनुमान है। इस वर्ष गन्ने का उत्पादन 5.6% घटकर 378 मिलियन टन रहने का अनुमान है।

तालिका 2: खरीफ 2019-20 में उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान (मिलियन टन)

फसल चौथे अग्रिम अनुमान खरीफ 2018-19 पहले अग्रिम अनुमान खरीफ 2019-20 2018-19 की तुलना में परिवर्तन का %
खाद्यान्न (क+ख) 141.7 140.6 -0.8%
क. अनाज 133.1 132.4 -0.6%
चावल 102.1 100.4 -1.7%
मोटे अनाज 31.0 32.0 3.3%
ख. दालें 8.6 8.2 -4.2%
तूर 3.6 3.5 -1.4%
उड़द 2.6 2.4 -5.1%
मूँग 1.8 1.4 -22.8%
तिलहन 21.3 22.4 5.2%
सोयाबीन 13.8 13.5 -2.0%
मूँगफली 5.4 6.3 17.7%
कपास* 28.7 32.3 12.4%
चीनी 400.2 377.8 -5.6%

*million bales of 170 kg each.


संचार

नॉन पर्सनल डेटा के रेगुलेशन का अध्ययन करने हेतु कमेटी ऑफ एक्सपर्ट्स की नियुक्ति

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नॉन पर्सनल डेटा (Non-Personal Data) हेतु डेटा गवर्नेस फ्रेमवर्क पर विचार-विमर्श के लिये कमेटी ऑफ एक्सपर्ट्स (अध्यक्ष: इंफोसिस के सह संस्थापक क्रिस गोपालकृष्ण) का गठन किया। डेटा प्रोटेक्शन पर श्रीकृष्णा कमेटी ने पर्सनल डेटा (जो कि किसी एक व्यक्ति से संबंधित होता है) और कम्युनिटी डेटा (विशिष्ट व्यक्ति नहीं, अनेक व्यक्तियों से एकत्र किया जाता है) के बीच भेद किया था। कम्युनिटी डेटा में ई-कॉमर्स डेटा, एआई ट्रेनिंग डेटा और डेराइव्ड डेटा शामिल हो सकता है। कमेटी ऐसे नॉन पर्सनल डेटा पर फ्रेमवर्क के लिये विचार-विमर्श करेगी।

कमेटी के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) नॉन-पर्सनल डेटा से संबंधित मुद्दों का अध्ययन और (ii) नॉन-पर्सनल डेटा के रेगुलेशन पर विशिष्ट सुझाव देना।

इंटरकनेक्शन यूसेज की समीक्षा

ट्राई ने इंटरकनेक्शन यूसेज चार्ज (Interconnection Usage Charges) की समीक्षा पर सुझावों को आमंत्रित किया है। दो पब्लिक टेलीकॉम नेटवर्क्स के बीच इंटरकनेक्शन से एक सर्विस प्रोवाइडर के उपभोक्ता दूसरे सर्विस प्रोवाइडर के उपभोक्ता से संवाद कर सकते हैं। इंटरकनेक्शन यूसेज चार्ज (आईयूसी) वह लागत होती है जो एक मोबाइल ऑपरेटर दूसरे ऑपरेटर को कॉल के लिये चुकाता है। अगर मोबाइल ऑपरेटर-ए का उपभोक्ता ऑपरेटर-बी के उपभोक्ता को कॉल करता है और कॉल पूरी हो जाती है तो ए उस कॉल को करने की एवज में बी को आईयूसी चार्ज चुकाएगा। वर्तमान में वायरलेस से वायरलेस घरेलू कॉल के लिये आईयूसी चार्ज 0.06 रुपए प्रति मिनट है। वायरलेस से वायरलाइन, वायरलाइन से वायरलाइन और वायरलाइन से वायरलेस घरेलू कॉल का आईयूसी चार्ज शून्य है।

2017 में ट्राई ने घरेलू कॉल्स के सभी प्रकारों के लिये 1 जनवरी, 2020 से जीरो आईयूसी चार्ज को प्रभावी करना निर्धारित किया था। इस पेपर में जीरो आईयूसी चार्जेज़ के लिये लागू तिथि में संशोधन पर विचार प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। टिप्पणियाँ 18 अक्तूबर, 2019 तक आमंत्रित हैं।


आदिवासी मामले

लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का सुझाव

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने सुझाव दिया है कि लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। छठी अनुसूची विशिष्ट क्षेत्रों जैसे असम और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है।

आयोग ने कहा कि नव गठित लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश एक जनजातीय क्षेत्र है जिसकी कुल जनजातीय आबादी लगभग 97% है। इसके अतिरिक्त यह गौर किया गया कि केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले लद्दाख के लोगों के पास भूमि अधिकार सहित अनेक कृषि अधिकार थे जिसके कारण देश के बाकी लोगों के लद्दाख में ज़मीन खरीदने पर पाबंदी थी। इसके अतिरिक्त आयोग ने कहा कि लद्दाख में ऐसी अनेक विशिष्ट सांस्कृतिक विरासतें हैं जिन्हें संरक्षित और प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।

इस संबंध में आयोग ने सुझाव दिया कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए जिससे निम्नलिखित की अनुमति मिलेगी; (i) शक्ति का लोकतांत्रिक हस्तांतरण, (ii) संस्कृति का संरक्षण और संवर्द्धन, (iii) कृषि एवं भू अधिकारों का संरक्षण तथा (iv) लद्दाख के विकास के लिये अधिक धनराशि का हस्तांतरण।


विज्ञान और तकनीक

वैज्ञानिक सामाजिक ज़िम्मेदारी नीति

विज्ञान और तकनीक मंत्रालय ने सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये मसौदा वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (Scientific Social Responsibility-SSR) नीति जारी की। नीति एसएसआर को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों के नॉलेज वर्कर्स की ऐसी नैतिक बाध्यता के रूप में व्याख्यायित करती है जो कि अपने ज्ञान और संसाधनों को बड़े समुदाय के साथ स्वेच्छा से साझा करें। नीति के अनुसार मानव, सामाजिक, मेडिकल, गणित, कंप्यूटर/डेटा साइंस या संबद्ध तकनीक के क्षेत्रों से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नॉलेज वर्कर हो सकता है। एसएसआर में शिक्षण, मेंटरिंग, दक्षता विकास प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ, प्रदर्शनी लगाना, स्थानीय समस्याओं के वैज्ञानिक एवं तकनीकी समाधानों के प्रदर्शन सहित अन्य गतिविधियाँ शामिल होंगी।

नीति का उद्देश्य समाज और विज्ञान के बीच की कड़ी को मज़बूत करने के लिये वैज्ञानिक समुदाय की स्वैच्छिक क्षमता का उपयोग करना है। नीति केंद्रीय और राज्य सरकार के सभी मंत्रालयों को निर्देश देती है कि वे अपने जनादेश के अनुसार अपने एसएसआर की योजना और रणनीति बनाएँ। इसके अतिरिक्त प्रत्येक नॉलेज वर्कर प्रतिवर्ष एसएसआर के कम-से-कम 10 कार्य दिवसों के लिये उत्तरदायी होगा। प्रत्येक संस्थान में एक एसएसआर मॉनीटरिंग सिस्टम मौजूद होना चाहिये जो कि संस्था के प्रोजेक्ट्स और व्यक्तिगत गतिविधियों का विश्लेषण करेगा तथा प्रत्येक नॉलेज संस्थान को एक वार्षिक एसएसआर रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिये। नीति का उद्देश्य एसएसआर गतिविधियों और प्रोजेक्ट्स को ज़रूरी बजटीय सहयोग प्रदान करना चाहिये ताकि उन्हें प्रोत्साहित किया जा सके।


नागरिक उड्डयन

एयरक्राफ्ट नियम, 1937 का मसौदा संशोधन

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ड्राफ्ट नियम जारी किये जो कि एयरक्राफ्ट नियम, 1937 (Aircraft Rules, 1937) में संशोधन करते हैं। ये नियम पायलटों को लाइसेंस जारी करने की शर्तों में संशोधन करते हैं और एयरक्राफ्ट्स में वाई-फाई के प्रयोग की अनुमति देते हैं।

लाइसेंसिंग की शर्तें: वर्तमान में एयरलाइन पायलट का लाइसेंस हासिल करने के लिये आवेदक को पायलट के रूप में कम-से-कम 1,500 घंटे का फ्लाइट टाइम पूरा करना चाहिये। इसमें कम-से-कम 150 घंटे, पिछले 12 महीनों में पूरे होने चाहिये। ड्राफ्ट नियम इस अतिरिक्त शर्त को हटाते हैं।

वर्तमान में नियमों में यह अपेक्षा भी की गई है कि लाइसेंस हासिल करने के लिये कम-से-कम 500 घंटे का फ्लाइट टाइम पायलट इन कमांड या को-पायलट के रूप में पूरा किया जाना चाहिये। इसमें से कम-से-कम 200 घंटे क्रॉस कंट्री फ्लाइट टाइम के तौर पर पूरे करने चाहिये। इसके अतिरिक्त आवेदक कम-से-कम 1,000 घंटे कुल क्रॉस कंट्री फ्लाइट टाइम पूरे होने चाहिये। ड्राफ्ट नियम इस समयावधि को कम करके 500 घंटे करते हैं।

वाई-फाई का प्रयोग: वर्तमान में एयरक्राफ्ट नियम, 1937 फ्लाइट में एयरक्राफ्ट पर किसी भी पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के ऑपरेशन पर प्रतिबंध लगाते हैं (सिवाय पेसमेकर जैसे अपवादों को छोड़कर)। पायलट-इन-कमांड फ्लाइट के लैंड होने पर यात्रियों को सेलुलर फोन के प्रयोग की अनुमति दे सकता है। ड्राफ्ट नियम कहते हैं कि पायलट विशिष्ट प्रक्रियाओं के अनुसार एयरक्राफ्ट में बोर्ड पर वाई-फाई के ज़रिये मोबाइल कम्युनिकेशन और इंटरनेट सर्विसेज़़ के प्रयोग की अनुमति भी दे सकता है। ऐसे एयरक्राफ्ट को इन सेवाओं के लिये महानिदेशालय से सर्टिफाई होना चाहिये।


रेलवे

मालवहन संबंधी प्रोत्साहनों की घोषणा

मालवहन संबंधी प्रोत्साहन: रेलवे मंत्रालय ने रेलवे में मालवहन सेवा (Freight Services) हेतु अनेक उपायों की घोषणा की।

  • अगली सूचना तक बिजी सीज़न चार्ज को हटा दिया गया है।
  • कंटेनर ट्रैफिक पर राउंड ट्रिप चार्ज के लिये आवश्यक न्यूनतम दूरी 50 किमी से बढ़ाकर 100 किमी. कर दी गई है। इससे ढुलाई शुल्क में 35% की कमी आने की उम्मीद है।
  • बंदरगाहों को खाली कंटेनरों की आवाजाही को प्रोत्साहित करने के लिये ढुलाई शुल्क में 25% की छूट दी जाएगी।

यात्री किराया: मंत्रालय ने हमसफर ट्रेनों के लिये किराया संरचना और कंपोज़िशन को तर्कसंगत बनाने की भी घोषणा की। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) इन ट्रेनों के लिये परिवर्तनशील किराया प्रणाली को दूर करना, (ii) बेस किराया कम करना और (iii) तत्काल शुल्क कम करना।


ऊर्जा

ट्रांसमिशन के उपयोग से प्राप्त राजस्व को दूसरे व्यवसायों से साझा करने पर केंद्रित ड्राफ्ट रेगुलेशन

केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी कमीशन (Central Electricity Regulatory Commission) ने ट्रांसमिशन एसेट के उपयोग से प्राप्त राजस्व को दूसरे व्यवसायों से साझा करने पर केंद्रित ड्राफ्ट रेगुलेशन जारी किये। यह इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन लाइसेंसीज़ पर लागू होगा जिनके ट्रांसमिशन शुल्क को सीईआरसी द्वारा निर्धारित किया जाता है। ड्राफ्ट रेगुलेशन पर टिप्पणियाँ 31 अक्तूबर, 2019 तक आमंत्रित हैं।

अपने एसेट्स के अधिक-से-अधिक उपयोग के लिये अन्य व्यवसाय करने के इच्छुक ट्रांसमिशन लाइसेंसी को सीईआरसी को पूर्व सूचना देनी होगी। लाइसेंसी को प्रस्तावित व्यवसाय के संबंध में सूचनाएँ प्रदान करनी होंगी जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) व्यापार की प्रकृति, (ii) व्यापार में पूंजीगत निवेश, (iii) व्यापार की लागत और राजस्व मॉडल तथा (iv) बिजली के इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन का असर।

लाइसेंसी को अपने दीर्घावधि के ग्राहकों के साथ इस राजस्व को साझा करना होगा। दीर्घावधि का ग्राहक वह होता है जिसे 12 से 25 वर्षों की अवधि के लिये इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन प्रणाली का इस्तेमाल करने का अधिकार होता है। राजस्व निम्नलिखित प्रकार से साझा किया जाएगा:

  • जहाँ दूसरा व्यवसाय दूरसंचार से संबंधित है, वहाँ उस व्यवसाय के वार्षिक सकल राजस्व का 10% हिस्सा दीर्घावधि के ग्राहकों के साथ साझा किया जाएगा।
  • बाकी सभी व्यवसायों के लिये राजस्व साझा करने का पैटर्न सीईआरसी द्वारा मामलों को देखकर निर्धारित किया जाएगा।

दीर्घावधि के ग्राहकों द्वारा चुकाए जाने वाले ट्रांसमिशन शुल्क में कटौती करके साझा राजस्व का इस्तेमाल किया जाएगा।

विकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र के विकास पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने विकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्रों (Decentralised Solar Power Plants) के विकास पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किये। वितरण कंपनियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्रों से जो सौर ऊर्जा खरीदती हैं, उस खरीद पर ये दिशा-निर्देश लागू होंगे। दिशा-निर्देश सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती एवं भरोसेमंद सौर ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं। ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों पर 11 अक्तूबर, 2019 तक टिप्पणियाँ आमंत्रित हैं। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रोजेक्ट्स की पहचान और चयन: डिस्कॉम्स दिन के समय औसत ज़रूरत के आधार पर सभी सबस्टेशनों में सौर ऊर्जा क्षमता को चिह्नित करेंगे। इसके बाद कंपनियाँ बिल्ड, ओन और ऑपरेशन के आधार पर सौर ऊर्जा संयंत्रों के विकास के लिये खुली बोली लगाएंगी।
  • प्रॉजेक्ट का विवरण: डिस्कॉम और सौर ऊर्जा उत्पादक 25 वर्षों की अवधि के लिये पावर परचेज़ एग्रीमेंट करेंगे। जहाँ डिस्कॉम प्रॉजेक्ट के लिये ज़मीन और कनेक्टिविटी देती है, वहाँ संयंत्र को एग्रीमेंट की तारीख से नौ महीनों के भीतर चालू होना चाहिये। दूसरी स्थिति में यह समयावधि 12 महीने है।
  • कोऑर्डिनेटर बॉडी: राज्य की नोडल एजेंसी इन सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स से संबंधित मामलों में डिस्कॉम्स के साथ समन्वय के लिये ज़िम्मेदार होगी। नोडल एजेंसी ज़रूरी मंज़ूरी हासिल करने और प्रॉजेक्ट के विकास में उत्पादकों की सहायता भी करेगी।

दक्षता विकास

अप्रेंटिसशिप नियम, 1992 में संशोधन अधिसूचित

दक्षता विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने अप्रेंटिसशिप नियम, 1992 (Apprenticeship Rules, 1992) में संशोधनों को जारी किया। इन नियमों को अप्रेंटिसशिप एक्ट, 1961 के अंतर्गत अधिसूचित किया गया था। एक्ट अप्रेंटिसों के प्रशिक्षण के रेगुलेशन और नियंत्रण का प्रावधान करता है। संशोधनों में मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

प्रशिक्षु: संशोधनों में कहा गया है कि किसी इस्टैबलिशमेंट में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला प्रत्येक अप्रेंटिस एक प्रशिक्षु होगा, कर्मचारी नहीं। इसलिये अप्रेंटिस पर कोई श्रम कानून लागू नहीं होगा।

इस्टैबलिशमेंट का आकार: 1992 के नियमों के अंतर्गत छह या उससे अधिक श्रमिकों वाले नियोक्ता अप्रेंटिस रखने के पात्र होंगे। संशोधन इस्टैबलिशमेंट के आकार को कम करते हैं और कहते हैं कि छह से चार श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट में अप्रेंटिस रखे जा सकते हैं।

  • इसके अतिरिक्त 40 से कम श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर अप्रेंटिस रखने की अनिवार्य बाध्यता नहीं है। संशोधन 30 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट में अप्रेंटिस रखना अनिवार्य करते हैं।

इस्टैबलिशमेंट में अप्रेंटिस की संख्या: 1992 के नियमों के अंतर्गत एक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक इस्टैबलिशमेंट को अपने कुल कर्मचारियों (ठेके पर रखने जाने वाले कर्मचारियों सहित) में 2.5%-10% अप्रेंटिस रखने होंगे। संशोधन कहते हैं कि प्रत्येक इस्टैबलिशमेंट को अपने कुल कर्मचारियों में 2.5%-15% अप्रेंटिस रखने होंगे। इनमें से 5% फ्रेशर अप्रेंटिस और दक्षता सर्टिफिकेट वाले अप्रेंटिसों के लिये आरक्षित होगा।

अप्रेंटिस को स्टाइपेंड का भुगतान: 1992 के नियमों में अधिसूचित न्यूनतम वेतन और प्राप्त प्रशिक्षण के आधार पर अप्रेंटिस को देय स्टाइपेंड की दरें दी गई हैं। संशोधनों में अप्रेंटिस की क्वालिफिकेशन के आधार पर विभिन्न दरें दी गई हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है:

तालिका 3: अप्रेंटिस को दिया जाने वाला स्टाइपेंड

श्रेणी स्टाइपेंड की न्यूनतम राशि (रुपए प्रति महीने)
स्कूल पास-आउट (कक्षा पाँच से नौ) 5,000
स्कूल पास-आउट (कक्षा 10) 6,000
स्कूल पास-आउट (कक्षा 12) 7,000
राष्ट्रीय/राज्य सर्टिफिकेट होल्डर 7,000
वोकेशनल सर्टिफिकेट होल्डर 7,000
टेक्नीशियन 8,000
ग्रेजुएट 9,000

सूचना और प्रसारण

बधिरों के लिये टेलीविज़न कार्यक्रमों हेतु सुगमता संबंधी मानक जारी

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बधिरों के लिये टेलीविज़न कार्यक्रमों हेतु सुगमता संबंधी मानक जारी किये हैं (परंपरागत हार्डवेयर के ज़रिये या इंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये)। यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकार एक्ट, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के अनुरूप है। सुगमता संबंधी मानकों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

एसेस के तरीके

  • सर्विस प्रोवाइडर्स से यह अपेक्षा की जाती है कि वे विशिष्ट टेलीविज़न कार्यक्रमों को एसेस करने के लिये निम्नलिखित में से कोई एक या अनेक विकल्प प्रदान करें: (i) सब-टाइटिल्स, (ii) ओपन या क्लोज़्ड कैपशनिंग या (iii) संकेत भाषा।
  • चैनल की भाषा या लक्षित दर्शकों और लक्षित क्षेत्र सहित विभिन्न कारकों पर आधारित किसी दूसरी उपयुक्त भाषा में सब-टाइटिल्स या ओपन कैप्शनिंग या क्लोज़्ड कैप्शनिंग प्रदान किये जाने चाहिये।
  • अगर संकेत भाषा को प्रस्तुत किया जा रहा है तो सर्विस प्रोवाइडर्स को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि साइनर के हाथ और चेहरे के भाव दिखाई दें। साइनर की इमेज स्क्रीन की दाईं तरफ होनी चाहिये और उसे पिक्चर के एक बटे छह हिस्से से छोटी जगह नहीं दी जानी चाहिये।
  • विदेशी भाषा के टेलीविज़न कार्यक्रमों में अंग्रेज़ी या किसी दूसरी भाषा में क्लोज़्ड कैप्शन्स होने चाहिये।
  • सर्विस प्रोवाइडर्स को बधिरों के लिये कस्टमर सर्विस की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके अतिरिक्त सरकार तथा सर्विस प्रोवाइडर्स को टेलीविज़न कार्यक्रमों की सुगमता के संबंध में जागरूकता फैलाने के लिये ज़रूरी कदम उठाने होंगे।

छूट

  • जिन टीवी चैनलों का ऑडियंस शेयर साल में 1% से भी कम है, उन्हें इन नियमों से छूट प्राप्त है।
  • ये मानक कंटेंट के कुछ फॉरमैट्स को इन नियमों से छूट देते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्ट सहित लाइव और डेफर्ड लाइव कंटेंट या घटनाएँ, (ii) लाइव न्यूज़, या अवार्ड शोज़ और लाइव रिएलिटी शोज़ सहित दूसरी घटनाएँ तथा (iii) विज्ञापन या टेलीशॉपिंग कंटेंट।
  • इन मानकों को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनरल इंटरटेनमेंट, फिल्म आधारित और न्यूज़ चैनलों का कम-से-कम 50% कंटेंट 2025 तक सुगम सेवा प्रदान करे। हर दो वर्षों में इन मानकों की समीक्षा की जाएगी।

विदेशी मामले

राष्ट्रपति का स्लोवेनिया दौरा

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने स्लोवेनिया का दौरा किया। दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) वैज्ञानिक और तकनीकी समन्वय, (ii) संस्कृति, कला, शिक्षा, खेल और मास मीडिया तथा (iii) वाणिज्य एवं उद्योग।

मंगोलिया के राष्ट्रपति का भारत दौरा

मंगोलिया के राष्ट्रपति खल्तमागीन बत्तुल्गा ने भारत का दौरा किया। दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सांस्कृतिक आदान-प्रदान, (ii) आपदा प्रबंधन, (iii) अंतरिक्ष की खोज और (iv) पशु स्वास्थ्य।

प्रधानमंत्री के रूस दौरे के दौरान वाणिज्यिक दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षऱ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस का दौरा किया। उनके दौरे के दौरान विभिन्न भारतीय और रूसी संस्थाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में 35 समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) खनन, (ii) दक्षता विकास और (iii) फसल सुरक्षा।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 74वें सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को समाप्त करने, प्रत्येक परिवार को पानी प्रदान करने और पाँच वर्षों में ट्यूबरकुलोसिस को समाप्त करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। विश्व स्तर पर उन्होंने आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया।

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