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पीआरएस 2019

विविध

जून 2019

  • 05 Aug 2019
  • 52 min read

पीआरएस की प्रमुख हाइलाइट्स

  • वित्त
    • डिजिटल भुगतान को बढ़ाने पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान हेतु RBI का प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क
    • नए प्रत्यक्ष कर कानून के मसौदे हेतु गठित टास्क फोर्स की संदर्भ शर्तें
    • राष्ट्रीय मुनाफाखोरी विरोधी प्राधिकरण की अवधि में वृद्धि
    • टैक्स संबंधित अपराधों की कम्पाउंडिंग के लिये संशोधित दिशा-निर्देश
  • कानून और न्याय
    • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019
    • आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, 2019
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
    • इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) विधेयक, 2019
    • होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) विधेयक, 2019
    • डेंटिस्ट (संशोधन) विधेयक, 2019
  • शिक्षा
    • केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) विधेयक, 2019
  • गृह मामले
    • जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019
    • विदेशी (प्राधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन
  • वाणिज्य और उद्योग
    • विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) विधेयक, 2019
    • मंत्रालय ने कॉपीराइट नियम, 2013 में संशोधन का मसौदा
  • आवास और शहरी मामले
    • सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019
  • ऊर्जा
    • वायु/सौर ऊर्जा क्षेत्र हेतु विवाद निवारण की प्रणाली को मंज़ूरी
    • भारतीय विद्युत् ग्रिड कोड की समीक्षा हेतु एक्सपर्ट ग्रुप
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग
    • एयर इंडिया में विनिवेश को मंज़ूरी
    • केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 का संशोधन मसौदा
  • जल शक्ति
    • जल शक्ति अभियान
  • विदेशी मामले
    • प्रधानमंत्री की किर्गीज़ गणराज्य और मालदीव की यात्रा

वित्त

डिजिटल भुगतान को बढ़ाने पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट

डिजिटल भुगतान को बढ़ाने हेतु गठित उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: नंदन नीलेकणी) ने RBI को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:

(i) भारत में डिजिटल भुगतान की मौजूदा स्थिति की समीक्षा

(ii) अंतराल को चिह्नित करना और उसे कम करने के उपाय सुझाना

(iii) वित्तीय समावेश में डिजिटल भुगतान के मौजूदा स्तरों का मूल्यांकन

(iv) डिजिटल भुगतान को बढ़ाने के लिये मध्यावधि की रणनीति का सुझाव देना।

समिति के मुख्य सुझाव:

  • लक्ष्य: समिति ने 3 वर्षों के लिये निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये हैं:

(i) प्रति व्यक्ति डिजिटल लेनदेन में दस गुना वृद्धि

(ii) GDP के अनुपात के रूप में डिजिटल लेनदेन के मूल्य को दोगुना करना (मौजूदा 769% से 1500%)

(iii) डिजिटल भुगतान प्रयोक्ताओं की संख्या को तीन गुना (मौजूदा 10 करोड़ से 30 करोड़) करना।

  • विशिष्ट भुगतान तंत्र: वर्तमान में व्यापारी ग्राहकों से डेबिट (या क्रेडिट) कार्ड के ज़रिये भुगतान स्वीकार करने के लिये बैंकों को मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate- MDR) चुकाते हैं। समिति ने सुझाव दिया कि सरकार द्वारा MDR पर सब्सिडी दी जानी चाहिये और कार्ड से भुगतान पर इंटरचेंज को 15 बेसिस प्वाइंट तक कम करना चाहिये ताकि डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन मिले। समिति ने यह भी सुझाव दिया कि RBI को MDR की आवर्ती समीक्षा के लिये एक समिति का गठन करना चाहिये।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT): सरकार को DBT के लिये कनेक्टिविटी और सत्यापन संबंधी त्रुटियों को दूर करने की प्रक्रिया के लिये विशेष रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में एक समर्पित शिकायत निवारण प्रणाली प्रदान करनी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System- PFMS) और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) जैसी सत्यापन सेवाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिये ताकि गलत खाते या गलत आधार विवरण के कारण जो लेनदेन नहीं हो पाते, उन मामलों को कम किया जा सके।
  • सरकारी भुगतान: समिति ने सुझाव दिया कि सभी सरकारी विभागों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सभी पेआउट डिजिटल माध्यम से हों, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिये भुगतान, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, वेतन और पेंशन आदि शामिल हैं।
  • वित्तीय समावेश: समिति ने सुझाव दिया कि RBI को वित्तीय समावेश से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों के बीच तुलना के लिये परिमाणात्मक वित्तीय समावेशन सूचकांक (Quantitative Financial Inclusion Index) विकसित करना चाहिये।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान हेतु RBI का प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने बैंकों द्वारा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Stressed Assets) के समाधान के लिये प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क जारी किया है।

  • ये फ्रेमवर्क गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान पर RBI के पूर्व सर्कुलर (फरवरी 2018 में जारी) में संशोधन करता है। अप्रैल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 के सर्कुलर को रद्द कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम [Banking Regulation (Amendment) Act] 2017 के अनुच्छेद 35AA में संशोधन करना RBI के अधिकारों के दायरे में नहीं आता।
  • प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क में कहा गया है कि ऋणदाताओं को डिफॉल्ट पर तुरंत लोन एकाउंट्स में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को स्वीकार करना होगा और उन परिसंपत्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में विशेष उल्लेख खातों (Special Mention Account- SMA) के रूप में वर्गीकृत करना होगा:

विशेष उल्लेख खाते की श्रेणियाँ

SMA की उप श्रेणियाँ वर्गीकरण का आधार (बीच की ओवरड्यू राशि)
SMA-0 1-30 दिन
SMA -1 31-60 दिन
SMA -2 61-90 दिन

  • संशोधित सर्कुलर ऋणदाताओं को दो SMA श्रेणियों में नकद ऋण जैसी क्रेडिट सुविधाओं को वर्गीकृत करने की अनुमति देता है।
  • प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क डिफॉल्ट की तारीख से 30 दिनों की अवधि में समीक्षा का प्रावधान करता है। इस अवधि के दौरान ऋणदाता रेज़ोल्यूशन प्लान तय कर सकते हैं या दिवालियेपन या ऋण की रिकवरी के लिये कानूनी कार्यवाही का विकल्प चुन सकते हैं।

“रेज़ोल्यूशन प्लान (Resolution Plan) उस प्लान को कहते हैं जिसके ज़रिये किसी संस्था को दिवालियेपन (Insolvency) से बाहर निकाला जाता है।”

  • इसके अतिरिक्त सभी ऋणदाताओं को इस समीक्षा अवधि के दौरान उन सभी मामलों में एक इंटर-क्रेडिटर एग्रीमेंट (Inter Creditor Agreement- ICA) करना होता है जिसमें रेज़ोल्यूशन प्लान को लागू किया जाता है। कुल बकाया ऋण के 75% हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले ऋणदाताओं और 60% ऋणदाताओं की सहमति से ICA द्वारा लिया गया निर्णय सभी ऋणदाताओं के लिये बाध्यकारी होता है।
  • समीक्षा अवधि खत्म होने के 180 दिनों के भीतर रेज़ोल्यूशन प्लान को लागू किया जाना चाहिये।

नए प्रत्यक्ष कर कानून के मसौदे हेतु गठित टास्क फोर्स की संदर्भ शर्तें

वित्त मंत्री ने नए प्रत्यक्ष कर कानून के मसौदे के लिये गठित टास्क फोर्स के संदर्भ की शर्तों को व्यापक बनाया। नवंबर 2017 में इस टास्क फोर्स का गठन किया गया था ताकि आय कर अधिनियम, 1961 की समीक्षा की जा सके और निम्नलिखित के मद्देनज़र नए प्रत्यक्ष कर कानून का मसौदा तैयार किया जा सके:

(i) विभिन्न देशों की प्रत्यक्ष कर प्रणाली

(ii) अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्कृष्ट पद्धतियाँ

(iii) भारत की आर्थिक ज़रूरतें

(iv) अन्य संबंधित मामले

  • मंत्रालय ने टास्क फोर्स के विचारणीय विषयों में निम्नलिखित को शामिल किया:
  1. अनाम सत्यापन और जाँच
  2. मुकदमों को कम करना और अपील का शीघ्र निपटान
  3. प्रक्रियाओं को सरल बनाकर अनुपालन के बोझ को कम करना
  4. वित्तीय लेनदेन की व्यवस्था आधारित क्रॉस वैरिफिकेशन की प्रणाली
  5. GST, कस्टम्स और प्रत्यक्ष कर तथा फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट के लिये ज़िम्मेदार विभागों के बीच सूचनाओं को साझा करना।
  • टास्क फोर्स 31 जुलाई, 2019 तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।

राष्ट्रीय मुनाफाखोरी विरोधी प्राधिकरण की अवधि में वृद्धि

GST काउंसिल ने राष्ट्रीय मुनाफाखोरी विरोधी प्राधिकरण(National Anti-profiteering Authority) की अवधि को दो वर्ष के लिये बढ़ा दिया है।

“नवंबर 2017 में इस अथॉरिटी को स्थापित किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि GST दरों में कटौती या इनपुट क्रेडिट का लाभ, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में कमी के ज़रिये उपभोक्ताओं को मिल सके।”

  • अगर अथॉरिटी को पता चलता है कि कोई करदाता इस प्रावधान का उल्लंघन कर रहा है तो वह (i) अतिरिक्त राशि के रिफंड (ii) मूल्य को कम करने (iii) जुर्माना लगाने या (iv) करदाता के GST रजिस्ट्रेशन को रद्द करने का आदेश दे सकती है।
  • केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर नियम 2017 ने यह विनिर्दिष्ट किया था कि अध्यक्ष द्वारा पदभार ग्रहण करने की तारीख से दो वर्ष बाद अथॉरिटी खत्म हो जाएगी, पर GST काउंसिल उसकी अवधि को बढ़ा सकती है। अब इस अथॉरिटी की अवधि को दो वर्षों (नवंबर 2021) तक बढ़ा दिया गया है।

टैक्स संबंधी अपराधों की कम्पाउंडिंग के लिये संशोधित दिशा-निर्देश

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes- CBDT) ने प्रत्यक्ष कर कानूनों के अंतर्गत अपराधों की कम्पाउंडिंग की प्रक्रिया से संबंधित संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये।

“किसी अपराध की कम्पाउंडिंग का अर्थ है, अपराधी द्वारा बकाया करों के भुगतान और दूसरे प्रभार (चार्जेज़) चुकाने के बदले उसके खिलाफ प्रॉसीक्यूशन के मामले को निपटाना। अन्य प्रभारों में जुर्माना, बकाया राशि पर ब्याज और कम्पाउंडिंग की राशि (मामलों के निपटारे के लिये चुकाई जाने वाली राशि) शामिल है।”

  • संशोधित दिशा-निर्देशों में आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत कुछ अपराधों (जो कि पहले कम्पाउंडिंग थे) की प्रकृति को नॉन-कम्पाउंडिंग बना दिया गया है, यानी इन अपराधों के अंतर्गत आने वाले प्रॉसीक्यूशन के मामलों को बकाया चुकाने या दूसरे प्रभार चुकाने के बावजूद निपटाया नहीं जा सकता। ये अपराध हैं:

(i) अधिकृत अधिकारियों के आदेश के बाद बुक्स ऑफ एकाउंट (या ज़ब्त किये गए दूसरे सबूत) को हटाना या उसे काम में लाना (एक्ट का सेक्शन 275 A)

(ii) अधिकृत अधिकारी को बुक्स ऑफ एकाउंट या दूसरे दस्तावेज़, जो कि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से स्टोर किये गए हैं, उपलब्ध कराने से इनकार करना (एक्ट का सेक्शन 275 B)

(iii) टैक्स से बचने के लिये प्रॉपर्टी को हटाना, उसे छुपाना, ट्रांसफर करना या उसकी डिलिवरी करना (एक्ट का सेक्शन 276)।

  • इसके अतिरिक्त संशोधित दिशा-निर्देश निम्नलिखित अपराधों को नॉन कम्पाउंडिंग बनाते हैं (सामान्य तौर से):

(i) जो लोग दूसरों को टैक्स चोरी में मदद करते हैं, उनके अपराध

(ii) अघोषित विदेशी बैंक खाते या एसेट्स से संबंधित अपराध

(iii) बेनामी लेनदेन (प्रतिबंध) एक्ट, 1988 से संबंधित अपराध

(iv) काला धन (अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियाँ) और कर कानून का अधिरोपण, 2015 से संबंधित अपराध।

  • संशोधित दिशा-निर्देश 17 जून, 2019 से लागू हुए हैं। इस तिथि से पहले किये गए कंपाउंडिंग के आवेदन पिछले दिशा-निर्देशों के अनुसार जारी रहेंगे।

कानून और न्याय

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019

लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक [Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill] 2019 पेश किया गया। यह विधेयक 21 फरवरी, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • विधेयक तलाक कहने को, जिसमें लिखित और इलेक्ट्रॉनिक दोनों रूप शामिल हैं, कानूनी रूप से अमान्य और गैर-कानूनी बनाता है। विधेयक के अनुसार, तलाक से अभिप्राय है, तलाक-ए-बिद्दत या किसी भी दूसरी तरह का तलाक, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इंस्टेंट या इररिवोकेबल (जिसे पलटा न जा सके) तलाक दे देता है।
    • तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम पर्सनल कानूनों के अंतर्गत ऐसी प्रथा है जिसमें मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को एक सिटिंग में तीन बार ‘तलाक’ कहने से इंस्टेंट या इररिवोकेबल तलाक हो जाता है।
  • अपराध और सज़ा: विधेयक तलाक कहने को संज्ञेय अपराध बनाता है जिसके लिये किसी व्यक्ति को तीन वर्ष के कारावास की सज़ा हो सकती है और उसे जुर्माना भरना पड़ सकता है (एक संज्ञेय अपराध वह अपराध है जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है)।
    • यह अपराध तभी संज्ञेय होगा, जब अपराध से संबंधित सूचना: (i) विवाहित महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) या (ii) उससे रक्त या विवाह से जुड़े किसी व्यक्ति ने दी हो।
  • विधेयक कहता है कि मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है। जमानत महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) की सुनवाई के बाद दी जा सकती है या उस स्थिति में जब मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट हो जाए कि जमानत देने के पर्याप्त आधार हैं।
  • महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) के अनुरोध पर मेजिस्ट्रेट द्वारा अपराध को शमनीय या कम्पाउंडिंग माना जा सकता है।
    • शमनीय या कम्पाउंडिंग का अर्थ वह प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्ष कानूनी कार्यवाहियों को रोकने और विवाद को निपटाने के लिये सहमत हो जाते हैं। कम्पाउंडिंग के नियम और शर्तों को मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • भत्ता और कस्टडी: जिस मुस्लिम महिला को तलाक दिया गया है, वह पति से अपने और खुद पर निर्भर बच्चों के लिये गुजारा भत्ता हासिल करने के लिये अधिकृत है। जिस मुस्लिम महिला को इस प्रकार तलाक दिया गया है, वह अपने अवयस्क बच्चों की कस्टडी हासिल करने के लिये अधिकृत है। भत्ते की राशि और कस्टडी के तरीके का निर्धारण मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा।

आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, 2019

लोकसभा में आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, [Aadhaar and Other Law (Amendment) Bill] 2019 पेश किया गया।

यह विधेयक 2 मार्च, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। यह विधेयक आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम 2016; भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) निवारण अधिनियम, 2002 में संशोधन करता है। आधार अधिनियम विशिष्ट पहचान संख्या (Unique Identity Number- UAN), आधार संख्या के ज़रिये भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों को सब्सिडी और लाभ के लक्षित वितरण का प्रावधान करता है।

  • ऑफलाइन प्रमाणीकरण: आधार एक्ट के अंतर्गत व्यक्ति की पहचान आधार ‘प्रमाणीकरण’ द्वारा की जा सकती है। प्रमाणीकरण में व्यक्ति को अपना आधार नंबर और अपनी बायोमीट्रिक एवं डेमोग्राफिक सूचना केंद्रीय पहचान डेटा रिपॉजिटरी (Central Identities Data Repository) को सौंपनी होती है जो कि उस व्यक्ति का प्रमाणीकरण/वैरिफिकेशन करती है।
    • विधेयक प्रमाणीकरण के बिना भी व्यक्ति की पहचान के लिये ‘ऑफलाइन वैरिफिकेशन’ की अनुमति देता है। इस संबंध में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India-UIDAI) रेगुलेशंस के ज़रिये वे तरीके बताएगी जिनसे ऑफलाइन वैरिफिकेशन किया जा सके।
  • स्वैच्छिक प्रयोग: एक्ट में किसी व्यक्ति की पहचान के प्रमाण के रूप में आधार के प्रयोग का प्रावधान है जो कि प्रमाणीकरण के अधीन है। विधेयक इसे रीप्लेस करता है और कहता है कि व्यक्ति प्रमाणीकरण या ऑफलाइन वैरिफिकेशन के ज़रिये अपनी पहचान को स्थापित करने के लिये आधार नंबर का स्वेच्छा से उपयोग कर सकता है।
    • विधेयक में कहा गया है कि किसी सेवा के प्रावधान के लिये आधार के माध्यम से किसी व्यक्ति की पहचान का प्रमाणीकरण केवल संसद के कानून द्वारा अनिवार्य किया जा सकता है।
  • विधेयक टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) निवारण एक्ट, 2002 में संशोधन करता है और कहता है कि टेलीकॉम कंपनियाँ, बैंक और वित्तीय संस्थान अपने ग्राहकों की पहचान को निम्नलिखित के ज़रिये वैरिफाई कर सकते हैं (i) आधार का प्रमाणीकरण या ऑफलाइन वैरिफिकेशन या (ii) पासपोर्ट या (iii) केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य दस्तावेज़। व्यक्ति अपनी पहचान को प्रमाणित करने का कोई भी तरीका चुन सकता है और किसी भी व्यक्ति को आधार नंबर न होने के कारण कोई सेवा प्रदान करने से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • UIDAI फंड: एक्ट के अंतर्गत UIDAI द्वारा जमा की गई फीस और राजस्व को भारत के समेकित कोष में जमा कराया जाएगा। विधेयक इस प्रावधान को हटाता है और यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया फंड की स्थापना करता है।
    • UIDAI फीस, अनुदान और शुल्क को इस फंड में जमा करेगी। इस फंड का इस्तेमाल UIDAI अपने कर्मचारियों को वेतन और भत्ते देने में इस्तेमाल करेगी।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण

भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक, 2019

लोकसभा में भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक [Indian Medical Council (Amendment) Bill] 2019 पेश किया गया। विधेयक भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 में संशोधन करता है और भारतीय चिकित्सा परिषद (दूसरा संशोधन) अध्यादेश, 2019 का स्थान लेता है जिसे 21 फरवरी, 2019 को जारी किया गया था। अधिनियम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की स्थापना का प्रावधान करता है।

यह संस्था मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस को विनियमित करती है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • MCI का सुपरसेशन: 1956 का एक्ट MCI के सुपरसेशन और तीन वर्ष की अवधि में उसके पुनर्गठन का प्रावधान करता है। इस अंतरिम अवधि के दौरान केंद्र सरकार बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का गठन करेगी जो कि MCI की शक्तियों का उपयोग करेगा। विधेयक MCI के सुपरसेशन की समय अवधि को तीन वर्ष से दो वर्ष करने के लिये एक्ट में संशोधन करता है।
  • एक्ट के अंतर्गत बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में अधिकतम सात सदस्य हो सकते हैं जिनमें मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्ति भी शामिल होंगे। इनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। विधेयक इस प्रावधान में संशोधन करता है और बोर्ड के सदस्यों की संख्या सात से 12 करता है।
    • विधेयक के अनुसार, बोर्ड में विशिष्ट एडमिनिस्ट्रेटर्स को भी चुना जाएगा। इसके अतिरिक्त विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त महासचिव बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को एसिस्ट करेगा।

होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) विधेयक, 2019

होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, [Homeopathy Central Council (Amendment) Bill] 2019 को लोकसभा में पेश और पारित किया गया। विधेयक होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 में संशोधन करता है और होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) अध्यादेश, 2019 का स्थान लेता है जिसे 2 मार्च, 2019 को जारी किया गया था।

  • अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय होम्योपैथी परिषद की स्थापना की गई थी। केंद्रीय परिषद होम्योपैथिक शिक्षा और प्रैक्टिस को रेगुलेट करती है।
  • केंद्रीय परिषद के सुपरसेशन की समयावधि: केंद्रीय परिषद के सुपरसेशन के लिये पिछले वर्ष (वर्ष 2018 में) 1973 के अधिनियम में संशोधन किया गया था। केंद्रीय परिषद को उसके सुपरसेशन की तारीख के एक वर्ष के भीतर दोबारा गठित किया जाना था।
  • इस बीच केंद्र सरकार ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का गठन किया था जो सेंट्रल काउंसिल की शक्तियों का इस्तेमाल करेगा। विधेयक सेंट्रल काउंसिल के सुपरसेशन की समयावधि को एक वर्ष से दो वर्ष करने हेतु एक्ट में संशोधन करता है।

दंतचिकित्सक (संशोधन) विधेयक, 2019

लोकसभा में दंतचिकित्सक (संशोधन) विधेयक, [Dentist (Amendment) Bill)] 2019 पेश किया गया। विधेयक दंतचिकित्सक अधिनियम, 1948 में संशोधन करता है। अधिनियम दंत चिकित्सा (Dentistry) के पेशे को विनियमित करता है और निम्नलिखित का गठन करता है:

(i) भारतीय दंत चिकित्सा परिषद (Dental Council of India)

(ii) राज्य दंत चिकित्सा परिषद (State Dental Council)

(iii) संयुक्त राज्य दंत चिकित्सा परिषद (Joint State Dental Councils)

  • अधिनियम के दो भागों- भाग A और भाग B के अंतर्गत दंतचिकित्सकों को पंजीकृत किया जाता है। भाग A में मान्यता प्राप्त डेंटल क्वालिफिकेशन वाले व्यक्तियों को पंजीकृत किया जाता है और जिन लोगों के पास ऐसी क्वालिफिकेशन नहीं है, उन्हें भाग B में पंजीकृत किया जाता है।
  • भाग B में पंजीकृत व्यक्ति ऐसे भारतीय नागरिक हैं जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित पंजीकरण तिथि से कम-से-कम पाँच वर्ष पहले से दंतचिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
  • दंत चिकित्सा परिषदों की संरचना: अधिनियम के अंतर्गत भारतीय दंत चिकित्सा परिषद, राज्य दंत चिकित्सा परिषद और संयुक्त राज्य दंत चिकित्सा परिषदों में भाग B में पंजीकृत डेंटिस्ट्स के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। विधेयक अधिनियम की इस अनिवार्य शर्त को हटाता है कि भाग B में पंजीकृत दंतचिकित्सक को इन परिषदों में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये।

शिक्षा

केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) विधेयक, 2019

लोकसभा में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) विधेयक [Central Educational Institutions (Reservation in Teachers’ Cadre) Bill, 2019] को पेश किया गया। यह विधेयक 7 मार्च, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। विधेयक अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के पदों पर आरक्षण का प्रावधान करता है।

विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पदों पर आरक्षण: विधेयक केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों की सीधी भर्ती वाले पदों पर (कुल स्वीकृत संख्या में से) आरक्षण का प्रावधान करता है। इस आरक्षण के लिये केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को एक यूनिट के तौर पर माना जाएगा।
    • इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक विभाग के सामान्य पदों (जैसे असिस्टेंट प्रोफेसर) को एक यूनिट मानकर आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थियों को पद आवंटित किये जाएंगे। उल्लेखनीय है कि मौजूदा दिशा-निर्देशों में आरक्षण देने के लिये प्रत्येक विभाग को एक यूनिट माना जाता था।
  • कवरेज और अपवाद: विधेयक सभी ‘केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों’ पर लागू होगा जिनमें संसदीय कानूनों के अंतर्गत स्थापित विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय माने जाने वाले (डीम्ड) संस्थान, राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान, और केंद्र सरकार की सहायता प्राप्त संस्थान शामिल हैं।
  • हालांकि विधेयक में कुछ इंस्टीट्यूट्स ऑफ एक्सिलेंस, शोध संस्थान और राष्ट्रीय एवं कूटनीतिक महत्त्व के संस्थानों को अपवाद माना गया है और विधेयक की अनुसूची में उनके संबंध में विनिर्देश दिये गए हैं। विधेयक में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को भी अपवाद बताया गया है।

गृह मामले

जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019

लोकसभा में जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, [The Jammu and Kashmir Reservation (Amendment) Bill] 2019 को पेश और पारित किया गया। यह विधेयक जम्मू और कश्मीर आरक्षण एक्ट, 2004 में संशोधन करता है और 1 मार्च 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है।

  • अधिनियम प्रावधान करता है कि कुछ आरक्षित श्रेणियों को सरकारी पदों में नियुक्ति और पदोन्नति में तथा प्रोफेशनल संस्थानों में दाखिले में आरक्षण दिया जाएगा।
  • प्रोफेशनल संस्थानों में सरकारी मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज और पॉलिटेक्निक्स शामिल हैं।

विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • नियुक्ति में आरक्षण का दायरा बढ़ा: एक्ट सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों के लिये राज्य सरकार के कुछ पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करता है।
    • अधिनियम के अनुसार, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोग शामिल हैं। विधेयक में इसमें संशोधन किया गया है और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी इसमें शामिल किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त अधिनियम में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को नियंत्रण रेखा के पास के क्षेत्र में निवास करने के आधार पर नियुक्त किया गया है तो उसे उन क्षेत्रों में कम-से-कम सात साल तक सेवारत रहना होगा। विधेयक इस शर्त को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर भी लागू करता है।
  • आरक्षण से बाहर: अधिनियम कहता है कि जिस व्यक्ति की वार्षिक आय तीन लाख रुपए या राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट राशि से अधिक है, उसे सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों में शामिल नहीं किया जाएगा।
    • हालाँकि यह प्रावधान वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर लागू नहीं होगा। विधेयक कहता है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा।

विदेशी (प्राधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन

गृह मामलों के मंत्रालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश, [Foreigners (Tribunals) Order] 1964 में संशोधन जारी किये। इस आदेश में ऐसे प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान है जो कि यह फैसला देते हैं कि क्या कोई व्यक्ति विदेशी है। विदेशी वह व्यक्ति होता है जो कि भारत का नागरिक नहीं होता। मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:

  • प्राधिकरण को संदर्भित होने वाले मामले: 1964 के आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार प्राधिकरण को ऐसे मामले संदर्भित करती है कि कोई व्यक्ति विदेशी है अथवा नहीं। संशोधन कहता है कि केंद्र सरकार के अतिरिक्त (i) राज्य सरकार (ii) केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन या (iii) डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट भी ऐसे मामलों को प्राधिकरण को संदर्भित कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के लिये अपील की प्रक्रिया: अगर किसी व्यक्ति का नाम असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC) से हटा दिया गया है या गलत तरीके से शामिल किया गया है तो वह NRC के स्थानीय रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज करा सकता है।
    • रजिस्ट्रार के किसी फैसले के खिलाफ शिकायत आदेश के अंतर्गत स्थापित ट्रिब्यूनल में की जा सकती है, वह भी 60 दिनों के भीतर। संशोधन में ऐसी अपीलों से निपटने के प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।
  • संशोधन कहता है कि अपील दायर करने वाले व्यक्ति को NRC अथॉरिटी द्वारा दिये गए रिजेक्शन ऑर्डर की कॉपी देनी होगी। इसके बाद ट्रिब्यूनल को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी करना होगा कि वह नोटिस के 30 दिनों के भीतर NRC का रिकॉर्ड पेश करे।
    • रिकॉर्ड दिये जाने के 120 दिनों के भीतर ट्रिब्यूनल का अंतिम आदेश आ जाना चाहिये, जो तय करेगा कि उस व्यक्ति का नाम NRC में शामिल होगा है अथवा नहीं।
    • अगर कोई व्यक्ति 60 दिनों के भीतर अपील नहीं करता है तो केंद्र/राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रशासन या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल को यह मामला सौंप सकते हैं कि कोई व्यक्ति विदेशी है अथवा नहीं।

वाणिज्य और उद्योग

विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) विधेयक, 2019

विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) विधेयक [Special Economic Zone- SEZ] 2019 को संसद में पेश और पारित किया गया। यह विधेयक विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 में संशोधन करता है और 2 मार्च, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। अधिनियम निर्यात को बढ़ावा देने के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना, विकास और प्रबंधन का प्रावधान करता है।

  • व्यक्ति की परिभाषा: एक्ट के अंतर्गत व्यक्ति की परिभाषा में व्यक्ति, हिंदू अविभाजित परिवार, कंपनी, कोऑपरेटिव सोसायटी, फर्म या व्यक्तियों का संगठन शामिल है। विधेयक इस परिभाषा में दो श्रेणियों को और शामिल करता है। ये हैं, ट्रस्ट या कोई ऐसी एंटिटी जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित कर सकती है।

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कॉपीराइट नियम, 2013 में संशोधन का मसौदा

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने पब्लिक फीडबैक के लिये कॉपीराइट नियम, 2013 में संशोधन का मसौदा [Draft Copyright (Amendment Rule)] जारी किया। कॉपीराइट नियम, 2013 को कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अंतर्गत अधिसूचित किया गया था। अधिनियम लेखकों के क्रिएटिव वर्क जैसे- किताबें, नाटक, संगीत, फिल्म और कला के अन्य कार्यों तथा कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के अधिकार को पारिभाषित करता है। संशोधन मसौदे में प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित हैं:

  • अपीलीय बोर्ड: कॉपीराइट एक्ट, 1957 एक कॉपीराइट बोर्ड की स्थापना करता है जो कि एक्ट के अंतर्गत विवादों पर फैसला सुनाए। ये कॉपीराइट के एसाइनमेंट और उसकी शर्तों से संबंधित विवाद हो सकते हैं।
    • 2017 में कॉपीराइट बोर्ड के कार्यों को बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड में समाहित कर दिया गया जो कि ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 के अंतर्गत स्थापित किया गया था। संशोधन मसौदा यह कहता है कि इस नियम में जहाँ भी कॉपीराइट बोर्ड का उल्लेख है, उसके स्थान पर अब बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड का प्रयोग किया जाएगा।
  • पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग: कॉपीराइट एक्ट कॉपीराइट के ओनर की सहमति के बिना लिटररी या म्यूज़िकल वर्क्स और साउंड रिकॉर्डिंग के पब्लिक ब्रॉडकास्ट की अनुमति देता है। पब्लिक ब्रॉडकास्ट के मामले में ब्रॉडकास्टर से निम्नलिखित की अपेक्षा की जाती है:
  1. ओनर को इस बात की पूर्व सूचना देना कि वह उसके वर्क के पब्लिक ब्रॉडकास्ट का इरादा रखता है और
  2. अपीलीय बोर्ड द्वारा निर्धारित रॉयल्टी चुकाना।
  • 2013 के नियम कहते हैं कि रेडियो या टेलीविज़न ब्रॉडकास्ट के लिये अलग-अलग नोटिस दिये जाने चाहिये और यह कि अपीलीय बोर्ड को रेडियो और टेलीविज़न के लिये अलग-अलग रॉयल्टी निर्धारित करनी चाहिये।
  • संशोधन मसौदा रेडियो और टेलीविज़न के संदर्भ को हटाने का प्रयास करता है और कहता है कि अलग नोटिस दिये जाने चाहिये और प्रत्येक प्रकार के ब्रॉडकास्ट के लिये रॉयल्टी निर्धारित की जानी चाहिये।
  • कॉपीराइट सोसायटीज़: कॉपीराइट एक्ट कॉपीराइट सोसायटीज़ का प्रावधान करता है जो कि कॉपीराइट वर्क्स के लिये लाइसेंस जारी करती हैं और लाइसेंस फीस को लेखकों के बीच बाँटा जाता है।
    • संशोधन मसौदा के अनुसार, प्रत्येक कॉपीराइट सोसायटी को अपनी वेबसाइट पर वार्षिक ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट पब्लिश करनी होगी। रिपोर्ट में निम्नलिखित से संबधित सूचनाएं शामिल होनी चाहिये: (i) वित्तीय वर्ष की गतिविधियाँ और (ii) सोसायटी द्वारा प्रबंधित किये जाने वाले अधिकार की प्रत्येक श्रेणी के लिये राजस्व।

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आवास और शहरी मामले

सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक 2019

केंद्रीय कैबिनेट ने सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक [The Public Premises (Eviction of Unauthorized Occupants) Amendment Bill, 2019] 2019 को पेश करने की मंज़ूरी दी।

2019 का विधेयक सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2017 का स्थान लेता है जो कि 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ लैप्स हो गया था।

  • विधेयक सरकारी आवास से अनधिकृत कब्ज़ाधारियों को तुरंत निकालने और ऐसे आवासों को सुपात्र व्यक्तियों को जल्द-से-जल्द उपलब्ध कराने का प्रयास करता है।
  • विधेयक एस्टेट ऑफिसर को यह अधिकार देता है कि वह एक विशिष्ट तरीके से सरकारी आवास से एक अनधिकृत कब्ज़ाधारी को निकाल सके। अधिकारी मुकदमे के दौरान आवास को होने वाले नुकसान पर शुल्क भी वसूल सकता है।

ऊर्जा

वायु/सौर ऊर्जा क्षेत्र हेतु विवाद निवारण की प्रणाली को मंज़ूरी

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) ने सौर/वायु ऊर्जा के उत्पादकों और भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India- SECI)/राष्ट्रीय तापीय ऊर्जा निगम (National Thermal Power Corporation- NTPC) के बीच विवाद निवारण प्रणाली को गठित करने को मंज़ूरी दी।

  • इस प्रणाली के अंतर्गत तीन सदस्यीय विवाद निवारण समिति की स्थापना की जाएगी। समिति सदस्य दिल्ली NCR की प्रतिष्ठित शख्सियतें होंगी। यह व्यवस्था सभी सौर/वायु योजनाओं पर लागू होगी जिन्हें SECI/NTPC द्वारा संचालित किया जाता है।
  • समिति निम्नलिखित प्रकार के मामलों पर विचार करेगी:

(i) अनुबंध की शर्तों के आधार पर समयावधि बढ़ाने के एसईसीआई के सभी फैसलों के खिलाफ अपील के मामले

(ii) अनुबंध के शर्तो के दायरे में न आने वाले एक्सटेंशन के मामले।

  • समिति के सुझावों और मंत्रालय के निष्कर्षों को अंतिम फैसले के लिये नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री के समक्ष पेश किया जाएगा।

भारतीय विद्युत् ग्रिड कोड की समीक्षा हेतु एक्सपर्ट ग्रुप

केन्द्रीय विद्युत् नियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission- CERC) ने भारतीय विद्युत् ग्रिड कोड की समीक्षा करने के लिये एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया। ग्रुप की अध्यक्षता केंद्रीय विद्युत अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष और विद्युत अपीलीय ट्रिब्यूनल के पूर्व सदस्य राकेश नाथ कर रहे हैं।

  • कोड नियम और मानदंड बनाता है। विभिन्न एजेंसियाँ और पावर सिस्टम के भागीदार योजना बनाने, उसे विकसित करने, उसके रखरखाव और उसे परिचालित करने के लिये इन नियमों और मानदंडों का अनुपालन करते हैं।
  • बिजली के उत्पादन और आपूर्ति में स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा प्रदान करते हुए, सिस्टम को सबसे कुशल, विश्वसनीय, आर्थिक और सुरक्षित तरीके से संचालित किया जाना चाहिये।

सड़क परिवहन और राजमार्ग

एयर इंडिया में विनिवेश को मंज़ूरी

आर्थिक मामलों की मत्रिमंडलीय समिति ने को एयर इंडिया और उसकी पाँच उप-इकाई में रणनीतिक विनिवेश को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी। इसके बाद समिति ने एयर इंडिया स्पेसिफिक ऑल्टरनेटिव मैकेनिज्म (Air India Specific Alternative Mechanism-AISAM) की स्थापना की।

  • 28 मार्च, 2018 को AISAM ने फैसला किया कि विनिवेश न किया जाए जिसका कारण कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता और विदेशी मुद्रा की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव था। इसके बाद से एयर इंडिया के वित्तीय और परिचालनगत प्रदर्शन में सुधार हुआ है। इसलिये केंद्र सरकार ने एआईएसएएम के सुझावों के अनुसार कंपनी के विनिवेश का फैसला किया है।

केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 का संशोधन मसौदा

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 (Central Motor Vehicles Rules, 1989) का संशोधन मसौदा जारी किया। नियम ड्राइवरों की लाइसेंसिंग, मोटर वाहनों के निर्माण, रखरखाव और रजिस्ट्रेशन, वाहनों के परमिट और ट्रैफिक के नियंत्रण से संबंधित विवरण प्रदान करते हैं।

  • बैटरी चालित वाहनों को छूट: पहली मसौदा अधिसूचना बैटरी चालित वाहनों (बिजली चालित वाहनों) को कुछ मामलों में फीस चुकाने से छूट देने के लिये नियमों में संशोधन का प्रयास करती है। इन मामलों में रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी करना या उसे रिन्यू करना या नए रजिस्ट्रेशन मार्क (या नंबर) देना शामिल है।
  • परिवहन वाहनों के ड्राइवरों के लिये न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता: वर्तमान में नियमों के अंतर्गत वाहन चालकों को ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिये आठवीं कक्षा पास होना चाहिये। दूसरी मसौदा अधिसूचना इस शर्त कू समाप्त करती है। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत परिवहन वाहन का अर्थ सार्वजनिक सेवा वाहन, गुड्स कैरिज़, शैक्षणिक संस्था की बस या निजी सेवा वाहन है।

जल शक्ति

जल शक्ति अभियान

पेयजल और स्वच्छता विभाग (Department of Drinking Water and Sanitation) द्वारा जुलाई 2019 से जल शक्ति अभियान (Jalshakti Abhiyaan) शुरू करने की घोषणा की गई। इस अभियान का उद्देश्य पानी की कमी वाले देश के 225 ज़िलों में वर्षा जल का संचयन और पानी का संरक्षण करना है।

  • इस अभियान के लिये ऐसे ज़िलों को वॉटर स्ट्रेस्ड घोषित किया जाएगा जिनमें भूजल का स्तर काफी निम्न है या उसका अतिदोहन किया गया है।
  • भूजल संसाधनों का आकलन यूनिट्स यानी ब्लॉक/ताल्लुका/मंडल/वॉटरशेड में किया जाता है। भूजल विकास के लिये इन यूनिट्स को दो आधारों पर श्रेणीबद्ध किया जाता है:

(i) भूजल विकास का चरण

(ii) मानसून पूर्व और उपरांत जल स्तर की दीर्घकालीन प्रवृत्ति (आम तौर पर 10 वर्ष की अवधि के लिये)।

  • 100% से अधिक भूजल विकास के चरण वाली यूनिट्स के लिये माना जाता है कि उनका अतिदोहन किया गया है। 90% से अधिक और दीर्घकालीन जल स्तर की गिरावट (मानसून पूर्व और उपरांत) वाली यूनिट्स को गंभीर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • इस अभियान को दो चरणों में शुरू किया जाएगा। पहले चरण में देश के सभी राज्य शामिल होंगे और इसे 1 जुलाई से 15 सितंबर, 2019 तक संचालित किया जाएगा। दूसरे चरण में उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जहाँ मानसून पीछे हट रहा है और यह चरण 1 अक्तूबर से 30 नवंबर, 2019 तक चलेगा।

विदेशी मामले

प्रधानमंत्री की किर्गिज़ गणराज्य और मालदीव की यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किर्गिज़ गणराज्य और मालदीव का दौरा किया। इन देशों के साथ निम्नलिखित संधियों पर हस्ताक्षर किये गए:

  • मालदीव: भारत और मालदीव के बीच छह संधियों पर हस्ताक्षर किये गए। इनमें निम्नलिखित से संबंधित संधियाँ थीं:

(i) स्वास्थ्य

(ii) हाइड्रोग्राफी (समुद्र और तटीय क्षेत्रों को नापना)

(iii) मालदीव के लोकसेवकों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम।

  • किर्गिज़ गणराज्य: भारत और किर्गीज़ गणराज्य ने विभिन्न क्षेत्रों में समन्वय से संबंधित 15 संधियों पर हस्ताक्षर किये, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i) व्यापार और निवेश

(ii) स्वास्थ्य

(iii) सूचना प्रौद्योगिकी

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