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पीआरएस 2018

विविध

जून 2018

  • 03 Oct 2018
  • 43 min read

PRS कैप्सूल जून 2018

PRS की प्रमुख हाइलाइट्स

  • भारत में पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री
  • दिवाला एवं दिवालियापन (संशोधन) अध्यादेश, 2018 को मिली मंज़ूरी
  • सीमा पार ऋणशोधन क्षमता
  • बांध सुरक्षा विधेयक, 2018
  • कावेरी जल प्रबंधन योजना, 2018
  • समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, 2018
  • शिलांग का 100वीं स्मार्ट सिटी के रूप में चयन
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये राष्ट्रीय रणनीति
  • चीनी उद्योग में संकट
  • नए राष्ट्रीय बायोगैस और कार्बनिक खाद कार्यक्रम के लिये दिशानिर्देश
  • ऑफ-ग्रिड और विकेंद्रीयकृत सौर पीवी अनुप्रयोग कार्यक्रम चरण-3
  • सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों के लिये इथेनॉल मूल्य निर्धारण में संशोधन
  • डिजिधन मिशन

भारत में पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री बनाने की आवश्यकता और संभावना का विश्लेषण करने के लिये वाई. एम. देवस्थली की अध्यक्षता में एक हाई लेवल टास्क फोर्स का गठन किया था जिसने निम्नलिखित रिपोर्ट सौंपी-

ऋण संबंधी सूचनाओं की मौजूदा उपलब्धता

वर्तमान में भारत में विभिन्न संस्थाएँ क्रेडिट डाटा सर करती हैं। जैसे कि

  • निजी क्षेत्र की चार क्रेडिट सूचना कंपनियाँ-
  • ट्रांसयूनियन सिबिल
  • ईक्विफैक्स
  • एक्सपीरियन
  • क्रिफ हाई मार्क

ये सभी संस्थाएँ कर्ज़दारों की ऋण संबंधी सूचनाओं को संग्रह करती हैं।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के अंतर्गत कार्य करने वाली संस्थाएँ- सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इनफार्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (CRILC) तथा बेसिक स्टैटिस्टिकल रिटर्न-1 (BSR-1)।
  • CRILC में ऐसे सभी कर्ज़दारों की क्रेडिट संबंधी सूचनाएँ होती हैं जिनका ऋण पाँच करोड़ रुपए से अधिक का है। BSR-1 सभी ऋणों का क्षेत्र आधारित विवरण प्रदान करता है।

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रणालियाँ भी हैं जो विशिष्ट ऋण संबंधी सूचनाओं को दर्ज करती हैं जैसे दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 के अंतर्गत पंजीकृत इनफॉर्मेशन यूटीलिटीज़, इसमें ऋण देनदारियों जैसी वित्तीय सूचनाओं और बैलेंस शीट संबंधी विवरण को स्टोर किया जाता है।

मौजूदा संरचनाओं की चुनौतियाँ

टास्क फोर्स ने देश में ऋण सूचनाओं से जुड़ी मौजूदा संरचनाओं में अनेक प्रकार की कमियों का पता लगाया है जो निम्नलिखित हैं:

  • स्टोर किया गया डेटा विस्तृत नहीं है और विभिन्न कंपनियों के बीच बँटा हुआ है, जैसे बैंक से क़र्ज़, कॉर्पोरेट्स में आपसी उधारियाँ, विदेशी उधारियाँ आदि एक रिपॉजिटरी में उपलब्ध नहीं हैं।
  • कर्ज़दार द्वारा स्वयं किये जाने वाले खुलासों पर निर्भरता।
  • डेटा को दोबारा पुष्ट (Cross Validate) करना।
  • सूचनाओं के सभी स्रोतों के बीच समय अंतराल (time lags) और विसंगतियाँ।
  • ऋण संस्थाओं पर सूचना दर्ज कराने का अत्यधिक दबाव, क्योंकि उन्हें अलग-अलग संस्थाओं में सूचनाएँ दर्ज करानी पड़ती है।

मौजूदा संरचना के परिणाम

मौजूदा संरचनाओं में सूचनाएँ अलग-अलग खंडों में दर्ज कराई जाती है तथा उनमें एकरूपता भी नहीं होती है जिसके परिणामस्वरूप ऋण बाज़ार की कार्यक्षमता पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:

  • ऋण संस्थानों के पास सभी कर्ज़दारों के बारे में पूरी सूचना नहीं होती, इसलिये सभी कर्ज़दारों को एकसमान ब्याज चुकाना पड़ता है, भले ही उनकी जोखिम या क्रेडिट रेटिंग कुछ भी हो।
  • ऋणदाताओं द्वारा उन ग्राहकों को क़र्ज़ देने में आशंका की स्थिति बनी रहती है जिन्होंने पूर्व में कोई चूक या अपराध किया हो पर इसके बारे में ऋणदाताओं के पास कोई जानकारी उपलब्ध न हो। इस प्रकार प्रकार ऋणदाताओं को अधिक बड़े ऋण जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  • इससे बाज़ार के कुछ उपवर्गों को ऋण मिलने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है। उदहारण के लिये छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराना पहले से ही जोखिमपूर्ण मान लिया जाता है और अक्सर ऋण संबंधी विवरण पूर्ण न हो पाने के कारण उन्हें जरूरत के समय ऋण नहीं मिल पता है।

पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री

एक सार्वजनिक क्रेडिट रजिस्ट्री उधारकर्त्ताओं की क्रेडिट जानकारी का एक व्यापक डेटाबेस है जो सभी उधार और क्रेडिट निर्णय लेने वाले संस्थानों के लिये सुलभ होता है। आम तौर पर इस रजिस्ट्री को देश के केंद्रीय बैंक जैसे सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा प्रबंधित किया जाता है और ऋणदाताओं और/या उधारकर्त्ताओं द्वारा ऋण विवरण की रिपोर्ट कि रजिस्ट्री कानूनन अनिवार्य होता है।

ऋण बाज़ार में दक्षता और पारदर्शिता लाने के लिये एक सार्वजनिक क्रेडिट रजिस्ट्री तैयार की जानी चाहिये जिसके लिये आवश्यक है कि:

  • उसे उपयुक्त कानूनी ढाँचे का समर्थन मिले।
  • उसमें सभी प्रकार के ऋणों की सूचना स्टोर होनी चाहिये चाहे ऋण की राशि कोई भी हो।
  • उसमें ऐसी सूचनाएँ भी स्टोर होनी चाहिये जिन्हें वर्तमान में क्रेडिट इनफार्मेशन सिस्टम में रिकॉर्ड नहीं किया जाता। जैसे- बाहरी उधारियों से संबंधित डाटा।
  • उसमें सप्लीमेंटरी क्रेडिट डाटा स्टोर होना चाहिये। जैसे- पूर्व में किये गए यूटिलिटी बिल के भुगतान, इससे ऐसे लोगों को भी ऋण का लाभ मिल सकेगा जिन्होंने पहले कोई ऋण न लिया हो।
  • उसे सभी प्रकार की सूचनाओं की सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करनी चाहिये।

दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2018

यह विधेयक दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन करता है। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच ऋणशोधन क्षमता का समाधान करने के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया का प्रावधान करती है।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ

रियल एस्टेट एलॉटी

विधेयक स्पष्ट करता है कि रियल एस्टेट परियोजनाओं में आवंटिती या एलॉटी (Allottee) को वित्तीय ऋणदाता (Financial Creditor) माना जाएगा। एलॉटी में ऐसे सभी लोग शामिल हैं जिन्हें प्लाट, अपार्टमेंट या बिल्डिंग एलॉट की गई है, बेची गई है या प्रमोटर (रियल एस्टेट डेवलपर या डेवलपमेंट अथॉरिटी) द्वारा ट्रांसफर की गई है।

वित्तीय लेनदार (Financal Creditors)

संहिता स्पष्ट करती है कि वितीय लेनदार (Financal Creditors) ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका वित्तीय ऋण बकाया होता है। इस ऋण में ऐसी कोई भी राशि शामिल हो सकती है जिसे वाणिज्यिक स्तर पर उधार लेकर जमा किया गया है। वित्तीय लेनदार, लेनदारों की समिति का एक हिस्सा है, जो समाधान से संबंधित मुख्य निर्णय लेने के लिये जिम्मेदार है।

वित्तीय लेनदारों के प्रतिनिधि

  • विधेयक स्पष्ट करता है कि कुछ मामलों में (जैसे- वित्तीय लेनदारों के समूह पर बकाया), वित्तीय लेनदारों की समिति में वित्तीय लेनदार का प्रतिनिधित्त्व अधिकृत प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा।
  • ये प्रतिनिधि लेनदारों से मिलने वाले निर्देश के अनुसार लेनदारों के समूह में वोट देंगे।

वित्तीय लेनदार समिति की वोटिंग सीमा

संहिता यह स्पष्ट करती है कि वित्तीय लेनदार समूह अर्थात कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स अपने फैसले वित्तीय लेनदारों के कम-से-कम 75% बहुमत के साथ लेगी। लेकिन संशोधित विधेयक इस सीमा को कम करके 51% करता है। समिति के कुछ फैसलों के लिये वोटिंग की सीमा 75% से कम करके 66% की गई है, इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल की नियुक्ति और उसका रिप्लेसमेंट
  2. रेज़ोल्यूशन प्लान को मंज़ूरी।

सूक्ष्म, लघु और माध्यम दर्जे के उपक्रमों (MSMEs) पर संहिता का लागू होना

संशोधित विधेयक के अनुसार, MSMEs के रेज़ोल्यूशन के लिये आवेदन करने वाले व्यक्तियों पर NPAs और गारंटरों से संबंधित अयोग्यता के मानदंड लागू नहीं होंगे। संहिता के प्रावधानों को MSMEs पर लागू करते समय केंद्र सरकार उनमें परिवर्तन कर सकती है या उन्हें हटा सकती है।

कॉर्पोरेट रेज़ोल्यूशन

विधेयक प्रावधान करता है कि दिवालियापन रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया को शुरू करने वाले कॉर्पोरेट आवेदक को स्पेशल रेज़ोल्यूशन सौंपना होगा। इस स्पेशल रेज़ोल्यूशन को कॉर्पोरेट देनदारों के कम-से-कम तीन-चौथाई पार्टनर्स द्वारा मंज़ूर किया जाना चाहिये।

सौंपे गए आवेदन को वापिस लेना

प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत रेज़ोल्यूशन आवेदक राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) में दायर किये गए किसी भी आवेदन को वापस ले सकता है। वापसी के इस प्रस्ताव को लेनदारों के समूह के 90% वोट द्वारा मंज़ूर किया जाना चाहिये।

रेज़ोल्यूशन प्लान को लागू करना

अध्यादेश स्पष्ट करता है कि NCLT को किसी भी रेज़ोल्यूशन प्लान को मंज़ूर करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसे प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है। एक बार प्लान के मंज़ूर हो जाने के बाद रेज़ोल्यूशन आवेदक को एक वर्ष के अंदर सभी आवश्यक मंज़ूरियाँ हासिल करनी होंगी जो कानून के हिसाब से ज़रूरी हों। यह विधेयक इसमें भी एक शर्त जोड़ता है कि अगर रेज़ोल्यूशन प्लान में उद्यम के अधिग्रहण या मर्जर का कोई प्रावधान है तो रेज़ोल्यूशन आवेदक को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग से इस संबंध में मंज़ूरी हासिल करनी होगी। यह मंज़ूरी लेनदारों की समिति द्वारा रेज़ोल्यूशन प्लान मंज़ूर करने से पहले प्राप्त करनी होगी।

सीमा पार दिवालियापन (Cross Border Insolvency)

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने सीमा पार शोधन अक्षमता और दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016-IBC) के तहत मसौदा मानदंड जारी किया है।

  • मानदंड सीमा पार दिवालियापन, 1997 के UNCITRAL मॉडल कानून पर आधारित है जो सीमा पार दिवालियापन के लिये एक समान तंत्र प्रदान करता है।
  • IBC के तहत केंद्र सरकार को सीमा पार दिवाला से संबंधित कार्यवाही शुरू करने के लिये विभिन्न देशों के साथ समझौता करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, अन्य देशों में स्थित संपत्तियों तक पहुँच बनाने के लिये एक अनुरोध पत्र जारी किया गया है।

ड्राफ्ट मानदंडों की मुख्य विशेषताएँ

व्यावहारिकता (Applicability)- ड्राफ्ट मानदंड उन मामलों में लागू होंगे जहाँ:

  • विदेशी न्यायालय या विदेशी दिवालियापन पेशेवर द्वारा भारत में सहायता मांगी जाती है, या
  • IBC के तहत कार्यवाही के संबंध में एक अन्य देश में सहायता मांगी जाती है, या
  • एक अन्य देश लेनदारों के संबंध में IBC के तहत कार्यवाही शुरू करना चाहता है या उसमें भाग लेना चाहता है, या
  • आईबीसी के तहत कार्यवाही तथा विदेशी कार्यवाही एक साथ चल रही है।

विदेशी कार्यवाही :

विदेशी कार्यवाही का तात्पर्य एक अन्य देश में न्यायिक या प्रशासनिक दिवालियापन कार्यवाही से है, जहाँ मान्यता या ऋण मुक्ति (liquidation) के उद्देश्य के लिये कॉर्पोरेट देनदार की संपत्ति विदेशी न्यायालय के नियंत्रण या पर्यवेक्षण में होती है। भारत के साथ सीमा (border) पार दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के लिये एक विदेशी प्रतिनिधि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) में आवेदन कर सकता है।

विदेशी अदालतों के साथ सहयोग: केंद्र सरकार, एनसीएलटी के परामर्श से एनसीएलटी और विदेशी अदालतों के बीच सीमा पार दिवालियापन से संबंधित मामलों में संवाद और सहयोग के लिये दिशा-निर्देशों को अधिसूचित करेगी।

बांध सुरक्षा विधेयक 2018

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 13 जून, 2018 को बांध सुरक्षा विधेयक (Dam Safety Bill), 2018 को संसद में प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी। इस विधेयक का उद्देश्य बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एकसमान देशव्यापी प्रक्रियाएँ विकसित करने में सहायता देना है।

  • बांध सुरक्षा विधेयक, 2018 के प्रावधानों से केंद्र और राज्यों में बांध सुरक्षा की संस्थागत व्यवस्थाओं को शक्तियाँ प्राप्त होंगी और इससे पूरे देश में मानकीकरण एवं बांध सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करने में मदद मिलेगी।
  • विधेयक में बांध सुरक्षा संबंधी सभी विषयों को शामिल किया गया है। इसमें बांध का नियमित निरीक्षण, आपात कार्य-योजना, विस्‍तृत सुरक्षा के लिये पर्याप्‍त मरम्‍मत और रख-रखाव कोष, इंस्‍ट्रूमेंटेशन तथा सुरक्षा मैनुअल शामिल हैं।
  • इसमें बांध सुरक्षा का दायित्‍व बांध के स्‍वामी पर है और विफलता के लिये दंड का प्रावधान भी है।

बांध सुरक्षा विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ

बांध सुरक्षा विधेयक, 2018 के अंतर्गत बांध सुरक्षा के लिये संस्थागत ढाँचे का प्रावधान है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  A . बांध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (National Committee on Dam Safety -NCDS)

  • विधेयक में बांध सुरक्षा पर राष्‍ट्रीय समिति गठित करने का प्रावधान है। यह समिति बांध सुरक्षा नीतियों को विकसित करेगी और आवश्‍यक नियमों की सिफारिश करेगी।

    B. राष्‍ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority - NDSA)
  • विधेयक नियामक संस्था के रूप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है। यह प्राधिकरण देश में बांध सुरक्षा के लिये नीति, दिशा-निर्देशों तथा मानकों को लागू करने का दायित्व निभाएगा।
  • यह प्राधिकरण बांध सुरक्षा संबंधी डेटा और व्‍यवहारों के मानकीकरण के लिये राज्‍य बांध सुरक्षा संगठनों तथा बांधों के मालिकों के साथ संपर्क बनाए रखेगा।
  • प्राधिकरण राज्‍यों तथा राज्‍य बांध सुरक्षा संगठनों को तकनीकी और प्रबंधकीय सहायता उपलब्‍ध कराएगा।
  • प्राधिकरण देश के सभी बांधों का राष्‍ट्रीय स्‍तर पर डाटाबेस तथा प्रमुख बांध विफलताओं का रिकॉर्ड रखेगा।
  • प्राधिकरण किसी प्रमुख बांध की विफलता के कारणों की जाँच करेगा।
  • प्राधिकरण नियमित निरीक्षण तथा बांधों की विस्‍तृत जाँच के लिये मानक व दिशा-निर्देशों, नियंत्रण सूचियों को प्रकाशित और अद्यतन करेगा।
  • प्राधिकरण उन संगठनों की मान्‍यता या प्रत्‍यायन का रिकॉर्ड रखेगा, जिन्‍हें जाँच, नए बांधों की डिज़ाइन और निर्माण का कार्य सौंपा जा सकता है।
  • प्राधिकरण दो राज्‍यों के राज्‍य बांध सुरक्षा संगठनों के बीच या किसी राज्‍य बांध सुरक्षा संगठन और उस राज्‍य के बांध के स्‍वामी के बीच विवाद का उचित समाधान करेगा।
  • कुछ मामलों में जैसे- एक राज्‍य का बांध दूसरे राज्‍य के भू-भाग में आता है तो राष्‍ट्रीय प्राधिकरण राज्‍य बांध सुरक्षा संगठन की भूमिका भी निभाएगा और इस तरह अंतर-राज्‍यीय विवादों के संभावित कारणों को दूर करेगा।

   C . बांध सुरक्षा पर राज्‍य समिति (State Committee on Dam Safety - SCDS)

  • विधेयक में राज्य सरकार द्वारा बांध सुरक्षा पर राज्य समिति गठित करने का प्रावधान है।
  • यह समिति राज्‍य में निर्दिष्‍ट सभी बांधों की उचित निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रख-रखाव सुनिश्‍चित करेगी।
  • समिति यह सुनिश्‍चित करेगी की बांध सुरक्षा के साथ काम कर रहे हैं। इसमें प्रत्‍येक राज्‍य में राज्‍य बांध सुरक्षा संगठन स्‍थापित करने का प्रावधान है।
  • यह संगठन फील्‍ड बांध सुरक्षा के अधिकारियों द्वारा चलाया जाएगा। इन अधिकारियों में प्राथमिक रूप से बांध डिज़ाइन, हाईड्रो-मैकेनिकल इंजीनियरिंग, हाईड्रोलॉजी, भू-तकनीकी जाँच और बांध पुनर्वास क्षेत्र के अधिकारी होंगे।

    D. राज्य बांध सुरक्षा संगठन (State Dam Safety Organizations -SDSO)
  • विधेयक में निर्दिष्ट संख्या में बांध वाले प्रत्‍येक राज्‍य में राज्‍य बांध सुरक्षा संगठन स्‍थापित करने का प्रावधान है। यह संगठन फील्‍ड बांध सुरक्षा के अधिकारियों द्वारा चलाया जाएगा।

कावेरी जल प्रबंधन योजना, 2018

कावेरी जल प्रबंधन योजना, 2018 को सरकार ने फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संशोधित कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के फैसले को लागू करने के लिये प्रतिपादित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक के हिस्से में 14.75 टीएमसी जल की वृद्धि की तथा तमिलनाडु के हिस्से में इतने ही जल की कमी की। इस योजना को लागू करने के लिये सरकार ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण और कावेरी जल विनियमन समिति गठित की है।

महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ

CWMA की संरचना : कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) का एक अध्यक्ष होगा और इसमें दो पूर्णकालिक सदस्य, दो-अंशकालिक सदस्य जो क्रमशः जल संसाधन और कृषि मंत्रालय के सरकारी प्रतिनिधि होंगे तथा केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा पुद्दुचेरी (प्रत्येक से एक) से कुल चार अंशकालिक सदस्य होंगे।

CWMA के कार्य :

  • कावेरी के जल का भंडारण, विभाजन, विनियमन और नियंत्रण।
  • जलाशयों के संचालन और जल प्रवाह को विनियमित करने का पर्यवेक्षण।
  • कर्नाटक द्वारा कर्नाटक तथा तमिलनाडु के अंतर-राज्य संपर्क बिंदु पर जल के प्रवाह को विनियमित करना।

CWRC की संरचना : कावेरी जल विनियमन समिति (CWRC) का प्रमुख इसका अध्यक्ष होगा और इसमें आठ अन्य सदस्य होंगे जिसमें तीन राज्यों और एक संघ शासित प्रदेश, भारतीय मौसम विभाग, केंद्रीय जल आयोग और कृषि मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल हैं।

CWRC के कार्य

  • कावेरी के आठ जलाशयों में दैनिक जल स्तर, प्रवाह और भंडारण की स्थिति की जानकारी संग्रहीत करना।
  • सीडब्ल्यूएमए द्वारा निर्देशित जलाशयों से मासिक आधार पर जल के 10 दिवसीय प्रवाह सुनिश्चित करना।
  • जल के बारे में मौसमी और वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना और इसे अन्य चीजों के साथ CWMA में जमा करना।

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक

नीति आयोग द्वारा जारी ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ के मुताबिक, भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट की स्थिति का सामना कर रहा है और लाखों लोगों की आजीविका खतरे में है। नीति आयोग के द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय देश में 60 करोड़ लोग जल समस्या से जूझ रहे हैं| वहीं स्वच्छ जल उपलब्ध न होने के कारण हर साल करीब दो लाख लोगों की मौत हो जाती है| रिपोर्ट के अनुसार 2030  तक देश में जल की मांग आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी होने और देश के जीडीपी में 6% की कमी होने का अनुमान है| इससे करोड़ों लोगों के सामने जल संकट की स्थिति उत्पन्न होगी|

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार देश की सबसे बड़ी समस्या जल प्रबंधन की है। इस रिपोर्ट ने प्रतिबिंबित किया है कि जिन राज्यों ने पानी को सही तरीके से प्रबंधित किया है, उन्होंने उच्च कृषि वृद्धि दर प्रदर्शित की है।
  • मध्य प्रदेश में 22-23 फीसदी की वृद्धि दर है, जबकि गुजरात में 18 फीसदी की वृद्धि दर है। इसका मतलब है कि ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्थाओं ने बेहतर विकास किया है, साथ ही प्रवास को कम किया है और शहरी आधारभूत संरचना पर दबाव कम किया है।
  • जल प्रबंधन के मानकों पर राज्यवार प्रदर्शन रिपोर्ट, 2016-2017 के संदर्भ में गुजरात पहले स्थान पर है, इसके बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र हैं।
  • सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और झारखंड हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं जहाँ दूषित पानी के शोधन की क्षमता विकसित ही नहीं की गई है। भू-जल के इस्तेमाल का नियमन भी इन राज्यों में नहीं है। वहीं, ग्रामीण बसावट में साफ पेयजल की आपूर्ति लगभग नगण्य है।
  • MoWR के एकीकृत जल संसाधन विकास के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च उपयोग परिदृश्य में 2050 तक पानी की आवश्यकता 1,180 BCM होने की संभावना है, जबकि वर्तमान में उपलब्धता मात्र 695 BCM है।
  • देश में प्रस्तावित जल की मांग 1137 BCM की तुलना में अभी भी काफी कम है|
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे जल संसाधनों और उनके उपयोग के लिये हमारी समझ को बढ़ाने और ऐसी जगहों पर हस्तक्षेप करने की तत्काल आवश्यकता है जहाँ पानी को स्वच्छ और टिकाऊ बनाया जा सके|
  • सूचकांक (2015-16 स्तर से अधिक) में वृद्धिशील परिवर्तन के मामले में, राजस्थान अन्य सामान्य राज्यों में पहले स्थान पर है, जबकि उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा पहले स्थान पर है।
  • आयोग ने भविष्य में इन रैंकों को वार्षिक आधार पर प्रकाशित करने का प्रस्ताव दिया है|
  • सूचकांक में 28 विभिन्न संकेतकों के साथ नौ व्यापक क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें भू-जल के विभिन्न पहलुओं, जल निकायों की बहाली, सिंचाई, कृषि प्रथाओं, पेयजल, नीति और शासन शामिल हैं।
  • विश्लेषण के प्रयोजन के लिये विभिन्न जलविद्युत स्थितियों के कारण राज्यों को दो विशेष समूहों - 'उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों' तथा 'अन्य राज्यों' में बाँटा गया था।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सूचकांक राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों / विभागों के लिये उपयोगी जानकारी प्रदान करेगा, जिससे उन्हें जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिये उपयुक्त रणनीति तैयार करने और उसे कार्यान्वित करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये राष्ट्रीय रणनीति

  • नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये राष्ट्रीय रणनीति पर एक परिचर्चा पत्र जारी किया है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मशीनों की ज्ञानात्मक कार्यों जैसे- सोचना, समझना, समस्या निवारण और निर्णय लेने की क्षमता को संदर्भित करता है।
  • परिचर्चा पत्र इस बात पर केंद्रित है कि भारत सरकार की विकास प्राथमिकताओं के अनुरूप विकास को सुनिश्चित करने के लिये AI का लाभ कैसे उठाया जा सकता है। यह (i) कृषि (ii) शिक्षा (iii) स्वास्थ्य देखभाल (iv) स्मार्ट शहरों और बुनियादी ढाँचा (v) स्मार्ट गतिशीलता तथा परिवहन के लिये AI समाधानों को अपनाने पर ज़ोर देता है।

चिन्हित मुख्य चुनौतियाँ

  • अनुसंधान और एआई के अनुप्रयोग में विशेषज्ञता की कमी।
  • सफलता पूर्वक अपनाने के लिये उपयुक्त गुणवत्तापूर्ण डेटा पारिस्थितिकी तंत्र की कमी।
  • एआई को अपनाने के लिये उच्च संसाधन लागत और कम जागरूकता।
  • औपचारिक गोपनीयता, सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित नियमों की कमी।
  • एआई को अपनाने और उसके अनुप्रयोग के लिये सहयोगी दृष्टिकोण की अनुपस्थिति।

सिफारिशें

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये इस परिचर्चा पत्र में सिफारिशों की एक श्रृंखला प्रदान की गई है, जिसमें शामिल हैं:

  • अनुसंधान और कौशल विकास : यह AI में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में अकादमिक और अनुप्रयोगात्मक अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की सिफारिश करता है। यह अभिनव मार्गों को बढ़ावा देगा और कार्यबल की स्किलिंग तथा रीस्किलिंग में सहायता करेगा। इसे रोज़गार के पैटर्न को बदलने तथा रोज़गार के लिये बाज़ार और उद्यमशील क्षेत्रों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाएगा।
  • बाज़ार आधारित स्वीकृति : यह सरकार को राष्ट्रीय AI मार्केट प्लेस के निर्माण की सुविधा प्रदान करने की सिफारिश करता है। यह अनुकूल बाज़ार तैयार करने के लिये निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करेगा:
  • डेटा संग्रहण तथा एकत्रीकरण।
  • डेटा व्याख्या (annotation) या अंतर्दृष्टि।
  • क्षेत्र-विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिये उपयोग योग्य मॉडल।
  • इस मॉडल का उपयोग करके एआई को अपनाना होगा जहाँ सरकार मांग और साझेदारी में सामंजस्य बनाकर उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी।
  • नियामकीय चुनौतियाँ : यह मज़बूत कानूनी ढाँचे को तैयार कर सरकार से नियामकीय चुनौतियों का समाधान करने की सिफारिश करता है। इसमें गोपनीयता, सुरक्षा और नैतिकता पर डेटा संरक्षण, बौद्धिक संपदा और क्षेत्र-विशिष्ट नियमों से संबंधित तंत्र शामिल होंगे। इससे अंतर्राष्ट्रीय मानकों और प्रथाओं को अपनाने में मदद मिलेगी।

चीनी (sugar) के क्षेत्र में संकट

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चीनी मिलों की तरलता में सुधार के लिये कई उपायों को मंज़ूरी दी है और किसानों को उनके गन्ना मूल्य बकाये का भुगतान करने के लिये कई कदम उठाए हैं।

  • बफर स्टॉक का निर्माण : खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने 1 जुलाई, 2018 से चीनी मिलों द्वारा 30 लाख मीट्रिक टन चीनी के बफर स्टॉक के निर्माण और रखरखाव के लिये एक योजना को अधिसूचित किया है। इस योजना के तहत प्रतिपूर्ति (अदायगी) त्रैमासिक आधार पर की जाएगी, जिसे चीनी मिलों की ओर से किसानों के गन्ना मूल्य बकाए की राशि को सीधे उनके खाते में जमा किया जाएगा।
  • चीनी मूल्य (नियंत्रण) आदेश, 2018 : केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत चीनी मूल्य (नियंत्रण) आदेश, 2018 को अधिसूचित किया है। यह आदेश परिष्कृत (सफेद) चीनी की न्यूनतम बिक्री मूल्य को तय करता है जिससे कम मूल्य पर कोई भी उत्पादक घरेलू बाज़ार में सफेद चीनी न तो बेच सकता है, न ही वितरित कर सकता है। परिष्कृत चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य गन्ने के उचित लाभकारी मूल्य और परिष्कृत चीनी की न्यूनतम रूपांतरण लागत (conversion cost) पर आधारित होगा। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने चीनी की दर को 29 रुपए प्रति किलोग्राम तय किया है।
  • चीनी मिलों की बढ़ती क्षमता : सरकार चीनी मिलों से जुड़ी मौजूदा डिस्टिलरीज़ की क्षमता को निम्नलिखित तरीकों से अपग्रेड करेगी: (i) भस्मीकरण (incineration) बॉयलर स्थापित करना (ii) चीनी मिलों में नई डिस्टिलरीज़ स्थापित करना। सरकार पाँच साल की अवधि में 1,332 करोड़ रुपए की ब्याज सब्सिडी प्रदान करेगी।

नए राष्ट्रीय बायोगैस और कार्बनिक खाद कार्यक्रम के लिये दिशा-निर्देश

नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने नए राष्ट्रीय बायोगैस और कार्बनिक खाद कार्यक्रम के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है  जो मुख्य रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी परिवारों हेतु बायोगैस संयंत्रों की स्थापना करने के लिये शुरू की गई है। एक बायोगैस संयंत्र कार्बनिक पदार्थों के उपयोग यथा-मवेशियों का गोबर और अन्य अपघटन योग्य (biodegradable) सामग्रियों जैसे कि खेतों, बागानों तथा किचेन के बायोमास से बायोगैस उत्पन्न करता है।

मुख्य दिशा-निर्देश

  • खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन प्रदान करना तथा किसानों और परिवारों की अन्य छोटी-मोटी बिज़ली की ज़रूरतों को पूरा करना।
  • महिलाओं के कठिन परिश्रम के क्यों को आसान बनाना जो कि तथा उन्हें अन्य आजीविका गतिविधियों के लिये समय बचाने में मदद करेगा।
  • गोबर बायोगैस संयंत्रों के साथ सैनिटरी शौचालयों को जोड़कर ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों की स्वच्छता में सुधार करना।
  • ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोककर जलवायु परिवर्तन के कारकों में कमी लाने में मदद करना।
  • भौतिक लक्ष्य : 2017-18 के लिये 65,180 बायोगैस संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। 2018-19 के लिये यह लक्ष्य बढ़ाकर एक लाख संयंत्र कर दिया गया है।
  • केंद्रीय सहायता : दिशा-निर्देश में केंद्रीय सहायता का विवरण भी प्रदान किया गया है जिसके अंतर्गत राज्य (जिसमें संयंत्र स्थित है) द्वारा संयंत्र के आकार के आधार पर सहायता प्रदान की जाएगी। संयंत्र की स्थापना के बाद यह सहायता राशि लाभार्थी खातों में सीधे संवितरित की जाएगी।

ऑफ-ग्रिड और विकेंद्रीकृत सौर पीवी अनुप्रयोग कार्यक्रम - चरण III

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने ऑफ-ग्रिड सोलर फोटो वोल्टिक (PV) क्षमता हासिल करने के लिये ऑफ-ग्रिड और विकेंद्रीकृत सौर पीवी अनुप्रयोग कार्यक्रम के तीसरे चरण को लागू किये जाने की स्‍वीकृति दे दी।

इस चरण के निम्नलिखित घटक होंगे-

  • सोलर स्ट्रीट लाइट : पूरे देश में तीन लाख सोलर स्ट्रीट लाइट लगाए जाएंगे। उन क्षेत्रों पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा जहाँ ग्रिड पावर, जैसे उत्तर- पूर्वी (NE) राज्यों और लेफ्ट विंग चरमपंथ (LWE) प्रभावित ज़िलों की सड़कों पर स्ट्रीट लाइट प्रणाली जैसी कोई सुविधा नहीं है।
  • स्टैंड अलोन सौर ऊर्जा संयंत्र : 25 किलोवाट पीक (kwp) तक के आकार के सौर ऊर्जा संयंत्रों को उन क्षेत्रों में बढ़ावा दिया जाएगा जहाँ ग्रिड पावर नहीं पहुँच पाई है या अगर है भी तो विश्वसनीय नहीं है। ये संयंत्र स्कूलों, हॉस्टल, पंचायत, पुलिस स्टेशनों और अन्य सार्वजनिक सेवा संस्थानों को बिजली प्रदान करेंगे। सौर ऊर्जा संयंत्रों की कुल क्षमता 100 मेगावाट होगी।
  • सोलर स्टडी लैंप : पूर्वोत्तर राज्यों (NE) और LWE प्रभावित ज़िलों में 25 लाख सोलर स्टडी लैंप लगाए जाएंगे।
  • केंद्रीय सहायता : तीनों घटकों की कुल लागत 1,895 करोड़ रुपए है। इनमें से 637 करोड़ रुपए केंद्रीय वित्तीय सहायता के रूप में प्रदान किये जाएंगे। सौर स्ट्रीट लाइट और सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिये सिस्टम की बेंचमार्क लागत के 30% तक का वित्तीय समर्थन प्रदान किया जाएगा। पूर्वोत्तर राज्यों, पहाड़ी राज्यों और द्वीपों वाले संघ शासित प्रदेशों के लिये बेंचमार्क लागत का 90% तक प्रदान किया जाएगा।

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों के लिये एथेनॉल मूल्य निर्धारण संशोधित

केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने एथेनॉल युक्त पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम (Ethanol Blended Petrol-EBP) चलाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों द्वारा खरीद व्यवस्था बनाने तथा सार्वजनिक तेल कंपनियों को सप्लाई के लिये एथेनॉल मूल्य की समीक्षा करने की मंज़ूरी दे दी है।

  • वर्तमान में निर्माण के तरीके के बावजूद एथेनॉल के लिये एक फ्लैट दर है।
  • पेट्रोल के साथ एथेनॉल मिश्रण से वाहन से निकलने वाले उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है और पेट्रोलियम का आयात बोझ कम हो जाता है।
  • वैकल्पिक और पर्यावरण अनुकूल ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये 2003 में एथेनॉल युक्त पेट्रोल कार्यक्रम शुरू किया गया था। हालाँकि, 2006 से तेल विपणन कंपनियाँ एथेनॉल के मूल्य निर्धारण मुद्दों के कारण आवश्यक मात्रा में एथेनॉल की खरीद करने में सक्षम नहीं थीं। इसलिये सरकार दिसंबर 2014 से कार्यक्रम के तहत एथेनॉल की कीमत प्रशासित कर रही है।
  • यह संशोधन 1 दिसंबर, 2018 से 30 नवंबर, 2019 के बीच एथेनॉल आपूर्ति अवधि के लिये विभिन्न स्रोतों से निर्मित एथेनॉल के लिये अलग-अलग दरों को मंज़ूरी देता है।

मुख्य परिवर्तन

  • सी- भारी शीरा (C-heavy molasses) (सुगर प्रसंस्करण के दौरान प्राप्त अंतिम उत्पाद) 43.70 रुपए प्रति लीटर होगा।
  • बी- भारी शीरे (B-heavy molasses) से निकाले गए एथेनॉल (सुगर प्रसंस्करण के दौरान प्राप्त मध्यवर्ती उत्पाद) तथा गन्ने का रस 47.49 रुपए प्रति लीटर होगा।
  • चूँकि एथेनॉल की कीमत गन्ना सत्र 2018-19 के लिये अनुमानित निष्पक्ष और लाभकारी मूल्य (FRP) पर आधारित है, इसलिये इसे केंद्र सरकार द्वारा घोषित वास्तविक एफआरपी के अनुसार पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा संशोधित किया जाएगा।
  • एथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2019-20 के लिये एथेनॉल की कीमतों को शीरे तथा गन्ने के एफआरपी से प्राप्त चीनी के अनुसार मंत्रालय द्वारा संशोधित किया जाएगा।

डिजिधन मिशन

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डिजिधन मिशन में कुछ संशोधन जारी किये। यह मिशन डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत लागू किया गया है और इसका उद्देश्य 2017-18 में 2,500 करोड़ के डिजिटल लेनदेन का लक्ष्य हासिल करना है।

प्रमुख संशोधन

  • इस मिशन को 31 मार्च, 2020 तक बढ़ाया गया है।
  • मिशन के उद्देश्यों में से 2017-18 में 2,500 करोड़ के डिजिटल लेनदेन हासिल करने के लक्ष्य को हटा दिया गया है।
  • इसके बाद, मिशन की रणनीति को बदल दिया गया है (i) देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और (ii) डिजिटल भुगतान स्वीकृति बुनियादी ढाँचे में वृद्धि।
  • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये कर प्रोत्साहन तैयार करने हेतु नए नीति उपायों और हस्तक्षेप के प्रस्ताव को शामिल किया जाएगा।
  • डिजिटल भुगतान लेनदेन के जिओ-टैगिंग द्वारा डिजिटल भुगतान के क्षेत्रीय प्रवेश की निगरानी के लिये तंत्र तैयार किये जाएंगे।



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