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प्रारंभिक परीक्षा

प्रारंभिक परीक्षा की रणनीति

  • 18 Jun 2018
  • 13 min read

परीक्षा का स्वरूप 

  • सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा की रणनीति पर चर्चा करने से पहले हमें इसके स्वरूप एवं ‘पाठ्यक्रम’ की संरचना को समझाना ज़रूरी है| 

  • वर्तमान में प्रारम्भिक परीक्षा में दो प्रश्नपत्र शामिल हैं। प्रथम प्रश्नपत्र ‘सामान्य अध्ययन’ का होता है जिसमें सामान्य अध्ययन के विभिन्न विषयों मसलन, इतिहास, राजव्यवस्था, अर्थव्यवस्था तथा अन्य     से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं| प्रारंभीक परीक्षा में द्वितीय प्रश्नपत्र ‘सिविल सेवा अभिवृत्ति परीक्षा’ (Civil Services Aptitude Test) जिसे ‘सीसैट’ कहे जाने का प्रचलन है, का होता है| इस प्रश्नपत्र में दसवीं कक्षा के स्तर तक के गणित, रीज़निग, हिन्दी-अंग्रेज़ी (द्विभाषी) बोधगम्यत और निर्णयन (Decision making) इत्यादि से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं| द्वितीय प्रश्नपत्र क्वालिफाइंग प्रकृति का होता है। 

  • प्रारंभिक परीक्षा कुल 200 अंकों की होती है| चूँकि, द्वितीय प्रश्नपत्र क्वालीफाइंग प्रकृति का होता है, इसलिये सिर्फ योग्यता सूची का निर्धारण सिर्फ प्रथम प्रश्नपत्र के आधार पर होता है|  

  • प्रथम प्रश्नपत्र में 2-2 अंकों के 100 प्रश्न होते हैं, जबकि द्वितीय प्रश्नपत्र (सीसैट) में 2.5-2.5 अंकों के 80 प्रश्न होते हैं।

  • प्रारंभिक परीक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रकृति (Objective type) के प्रश्न पूछे जाते हैं, जिसके अंतर्गत प्रत्येक प्रश्न के लिये दिये गए चार संभावित विकल्पों (a, b, c और d) में से एक सही विकल्प का चयन करना होता है। 

  • इस परीक्षा में गलत उत्तर के लिये ऋणात्मक अंक (Negative marking) का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत प्रत्येक गलत उत्तर के लिये एक-तिहाई (1/3) अंक काटे जाते हैं। मौटे तौर पर तीन गलत उत्तर देने पर एक सही प्रश्न के बराबर अंक काट लिये जाते हैं| हालाँकि, सीसैट में ‘निर्णयन’ (Decision making) से संबंधित प्रश्नों में गलत उत्तर के लिये ऋणात्मक अंक का प्रावधान नहीं है।   

  • यदि कोई अभ्यर्थी किसी प्रश्न के एक से अधिक उत्तर देता है, तो उस उत्तर को गलत माना जाएगा, फिर चाहे उसके द्वारा दिये गए उत्तरों में से एक सही भी हो|

  • यदि कोई अभ्यर्थी किसी प्रश्न को छोड़ देता है, यानी उस प्रश्न का उत्तर नहीं देता है, तो उस प्रश्न के लिये कोई दण्ड नहीं होगा।   

  • चूँकि अब सीसैट का प्रश्नपत्र सिर्फ क्वालिफाइंग कर दिया गया है इसलिये प्रारंभिक परीक्षा पास करने के लिये किसी भी उम्मीदवार को इस प्रश्नपत्र में सिर्फ 33 प्रतिशत अंक (लगभग 27 प्रश्न या 66 अंक) प्राप्त करने आवश्यक हैं। अगर कोई अभ्यर्थी इससे कम अंक प्राप्त करता है तो उसे अनुत्तीर्ण माना जाता है और उसके प्रथम प्रश्नपत्र का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा। 

  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 से प्रारंभिक परीक्षा की कट-ऑफ (जितने अंकों के साथ अंतिम अभ्यर्थी सफल होता है, उसे कट-ऑफ कहते हैं) का निर्धारण सिर्फ प्रथम प्रश्नपत्र के आधार पर किया जाता है। 

  • हालाँकि, कट-ऑफ हमेशा स्थिर नहीं रहता है। यह अभ्यर्थियों की संख्या, उनकी योग्यता तथा प्रश्नपत्रों के कठिनाई स्तर के बदलने के साथ-साथ प्रत्येक वर्ष कुछ ज़्यादा या कम होता रहता है।

  • 2014 तक प्रारंभिक परीक्षा में दोनों प्रश्नपत्रों के संयुक्त अंकों के आधार पर परीक्षा परिणाम निकाला जाता था, यानी कट-ऑफ का निर्धारण दोनों प्रश्नपत्रों के आधार पर होता था; परंतु 2015 के बाद कट-ऑफ का निर्धारण सिर्फ ‘सामान्य अध्ययन’ के प्रश्नपत्र के आधार पर तय किया जाने लगा है| इसलिये कट-ऑफ स्तर में आमूलचूल परिवर्तन आया है (वर्ष 2015 में सामान्य वर्ग का कट-ऑफ 107.34 रहा)।

  • हालाँकि 2016 की परीक्षा का कट-ऑफ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, लेकिन अनुमानतः सामान्य वर्ग के लिये कट-ऑफ 110-115 की रेंज में रह सकता है। इस आधार पर 2017 का कट-ऑफ भी लगभग इसी के आस-पास यानी 110-120 की रेंज में ही रहने की उम्मीद की जा सकती है।  

क्या रणनीति अपनाई जाए ? 

  • प्रारम्भिक परीक्षा के स्वरूप एवं प्रवृत्तियों को समझने के बाद प्रश्न यह उठता है कि इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिये क्या पढ़ा जाए, कितना पढ़ा जाए और कैसे पढ़ा जाए? 

  • तैयारी की रणनीति सभी के लिये एक जैसी नहीं हो सकती क्योंकि परीक्षार्थियों की अकादमिक पृष्ठभूमि में पर्याप्त अंतर होता है। उदाहरण के लिये, अगर किसी उम्मीदवार ने इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र विषयों के साथ स्नातक स्तर की पढ़ाई की है किंतु उसे विज्ञान पढ़ने में समस्या होती है तो उसकी रणनीति इन्हीं तथ्यों के आलोक में बनेगी। इसके विपरीत, कुछ उम्मीदवार ऐसे भी होंगे जो इंजीनियर या डॉक्टर होने के कारण विज्ञान में अत्यंत सहज हैं किंतु उनका मन इतिहास की पुस्तकों को देखने का भी नहीं होता। ऐसे में, स्वाभाविक रूप से रणनीति भी अलग तरीके से ही बनेगी।

  • सिविल सेवा परीक्षा के इस चरण में सफलता सुनिश्चित करने के लिये विगत 6 वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का सूक्ष्म अवलोकन करें और उन बिंदुओं तथा शीर्षकों पर ज़्यादा ध्यान दें, जिनसे विगत वर्षों में प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति ज़्यादा रही है।

  • उम्मीदवार को सभी खंडों पर बराबर बल देने की बजाय कम-से-कम इतने खंड अवश्य चुन लेने चाहियें जिनसे सम्मिलित रूप से 80-85 प्रश्न आने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती हो ताकि वह गंभीर तैयारी से लगभग 65-70 प्रश्न ठीक कर सके। शेष एकाध खंड को छोड़ देना अच्छी बात तो नहीं है, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा नज़दीक होने पर आपात योजना के रूप में इसे ठीक माना जा सकता है।

  • अगर आप गौर से पुराने प्रश्नपत्रों को देखें तो पाएंगे कि सभी खंडों के भीतर कुछ विशेष उप-खंडों से प्रायः ज़्यादा प्रश्न पूछे जाते हैं। अतः बेहतर होगा कि आप उन पर अधिक समय दें।

  • ध्यान देने योग्य एक अन्य बात यह है कि उम्मीदवार को ज़्यादा मेहनत उन खंडों के लिये करनी चाहिये जो मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं। इससे परीक्षा के आगामी तथा वास्तविक चरणों में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिये, इतिहास खंड को देखें तो आधुनिक भारत का इतिहास मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल है जबकि प्राचीन और मध्यकालीन भारत का इतिहास नहीं। अतः प्रारंभिक परीक्षा में आधुनिक भारत का इतिहास विस्तारपूर्वक पढ़ने पर मुख्य परीक्षा में भी बेहतर परिणाम की संभावना बढ़ जाती है।

  • इस बात पर भी ध्यान दें कि सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम के जो खंड सिर्फ मुख्य परीक्षा में पूछे जाते हैं, उन्हें प्रारंभिक परीक्षा के लिये शेष बचे दो-ढाई महीनों में न पढ़ा जाए। इन खंडों में अंतर्राष्ट्रीय संबंध, सामाजिक न्याय, आंतरिक सुरक्षा, विश्व इतिहास तथा एथिक्स आदि शामिल हैं।

  • सामान्य अध्ययन की तैयारी में यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि इसमें सभी खंडों के प्रश्न काफी गहरे स्तर के होते हैं और वे विषय की सूक्ष्म समझ की मांग करते हैं। आमतौर पर हर प्रश्न में कुछ तथ्य या कथन देकर उनके संयोजन से जटिल विकल्प बनाए जाते हैं ताकि स्थूल समझ वाले उम्मीदवार सफल न हो सकें। उदाहरण के लिये, अधिकांश प्रश्नों में आरंभ में 3-4 कथन या तथ्य दिये जाते हैं जिनमें से कुछ सही होते हैं और कुछ गलत। प्रायः ऐसा होता है कि उम्मीदवार उनमें से कुछ तथ्यों से परिचित होता है और कुछ से नहीं। उसके बाद, उन तथ्यों को आपस में जोड़कर उम्मीदवार को 4 जटिल विकल्प दिये जाते हैं, जैसे (i) कथन 1, 3 तथा 4 ठीक हैं और कथन 2 गलत, (ii) कथन 1, 2 तथा 4 ठीक हैं और कथन 3 गलत। उम्मीदवार को ऐसे जटिल विकल्पों में से एक सही विकल्प चुनना होता है। इसमें प्रश्न के गलत होने का खतरा तो होता ही है, साथ ही कठिन विकल्पों के कारण प्रश्नों को हल करने में ज़्यादा समय भी लगता है और अंत में समय-प्रबंधन खुद एक चुनौती बन जाता है।

  • इस चुनौती से निपटने का तरीका यह है कि पेपर में सबसे पहले वही प्रश्न किये जाएँ जो अभ्यर्थी की जानकारी के क्षेत्र से हैं और उन्हें पर्याप्त समय दिया जाए। बीच-बीच में जो प्रश्न नहीं आते हैं या जिन पर गहरा अध्ययन नहीं है, उन्हें निशान लगाकर छोड़ देना चाहिये और अगर अंत में समय बचे तो उनका उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये। 

  • इस परीक्षा के पाठ्यक्रम और विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों की प्रकृति का सूक्ष्म अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि इसके कुछ खण्डों की गहरी अवधारणात्मक एवं तथ्यात्मक जानकारी अनिवार्य है।  

  • प्रारम्भिक परीक्षा में प्रश्नों की प्रकृति वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार की होती हैं जिनमें तथ्यों एवं अवधारणाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जैसे- भारतीय इतिहास के मध्यकाल में ‘बंजारे’ सामान्यत: कौन थे? राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिये गठित निर्वाचक मंडल में कौन-कौन शामिल हैं ? मरूस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का/के क्या महत्त्व हैं? इत्यादि ।

  • इन प्रश्नों को याद रखने और हल करने का सबसे आसान तरीका है कि विषय की तथ्यात्मक जानकारी एवं अवधारणात्मक पहलुओं से सम्बंधित बिन्दुवार संक्षिप्त नोट्स बना लिया जाए और उसका नियमित अध्ययन किया जाए। 

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